अनुक्रमणिका
- १. अन्नपचन ठीक न होने से बननेवाली शारीरिक स्थिति हानिकारक विषाणु और जीवाणु के बढने के लिए पोषक होना
- २. केवल बैठकर काम करनेवाले लोगों के लिए दिन में ४ बार न खाते हुए केवल २ बार ही आहार लेना उचित
- ३. वर्षा ऋतु में आरोग्यदायी दिनक्रम
- ४. केवल २ बार भोजन की आदत डालते समय कष्ट न हो, इसलिए यह करें !
- ५. ४ के बजाय केवल २ बार खाने पर क्या कमजोरी आएगी ?
- ६. ऋतु बदलने पर आहार में परिवर्तन करना आवश्यक !
- ७. दिन में ४ – ४ बार खाना टालें !
१. अन्नपचन ठीक न होने से बननेवाली शारीरिक स्थिति हानिकारक विषाणु और जीवाणु के बढने के लिए पोषक होना
‘वर्षा में विशेषरूप से कोकण समान भरपूर वर्षावाले प्रदेशों में निरंतर वर्षा के कारण शरीर की अग्नि (पचनशक्ति) मंद हो चुकी होती है । जिसप्रकार चूल्हे में अग्नि ठीक से प्रज्वलित न होने पर यदि उसमें ईधन लकडी डाल दें, तो वह ठीक से नहीं जलती । उसीप्रकार जठर की अग्नि ठीक से प्रज्वलित न होते हुए भी आहार लेने पर वह ठीक से नहीं पचता । अग्नि के मंद होते हुए भी दिन में ४ – ४ बार खाने पर एक बार खाया हुआ पूर्णरूप से पचे बिना ही दूसरा अन्न जठर में आता है । इससे पूरा अन्न ठीक से नहीं पचता । अन्न ठीक से न पचने से दूषित अन्नरस निर्माण होता है । जिसप्रकार नमी होने पर जंतुओं की पैदावार वेग से होती है, उसीप्रकार शरीर में दूषित अन्नरस शरीर के क्लेद के कारण (अतिरिक्त नमी के कारण) शरीर हानिकारक विषाणु और जीवाणु की वृद्धि के लिए पूरक होता है । इसकारण सर्दी, खांसी, ज्वर (बुखार) इत्यादि विकार होने की संभावना बढ जाती है ।
२. केवल बैठकर काम करनेवाले लोगों के लिए दिन में ४ बार न खाते हुए केवल २ बार ही आहार लेना उचित
वर्षा ऋतु में दिन में केवल २ बार आहार लेने की आदत डालने से एक बार लिया हुआ अन्न पूर्णरूप से पचने के पश्चात ही दूसरा अन्न जठर में आता है । इससे अन्नपचन ठीक होता है । शरीर को अतिरिक्त २ बार अन्न पचाने का श्रम नहीं होता है । इसलिए बची हुई शक्ति अब बदले हुए वातावरण के अनुकूल बनने के लिए उपयोग में आती है । इससे केवल बैठकर काम करनेवाले व्यक्तियों को दिन में ४ – ४ बार न खाते हुए केवल २ बार भोजन की आदत लगाने पर वर्षा में होनेवाली सर्दी, खांसी, ज्वर (बुखार) इत्यादि विकारों को प्रतिबंधित होने में सहायता होती है ।
३. वर्षा ऋतु में आरोग्यदायी दिनक्रम
सवेरे उठने पर स्नान के पहले थोडा व्यायाम और प्राणायाम करें । इससे शरीर का क्लेद (अतिरिक्त नमी) नष्ट होने में सहायता होती है । तदुपरांत भूख लगने पर ही चाय, कशाय अथवा गरम पानी पीएं । सवेरे ११ के पश्चात जब भूख लगे, तब खाएं । दोपहर ४ के आसपास पुन: सवेरे समान चाय अथवा कशाय या फिर गरम पानी पी सकते हैं । कुछ खाना संभवत: टालें । यदि कोई फल खाना हो, तो चाय न लेते हुए उस समय केवल फल खाएं । रात ८ बजने से पहले भोजन करें और रात ११ बजे तक सो जाएं । चाय इत्यादि न लेते हुए केवल २ बार भोजन करना आदर्श है; परंतु ऐसा संभव न हो तो ऊपर दिए अनुसार दिनक्रम रखें । ऐसे दिनक्रम का पालन करने से शरीर निरोगी रहने में सहायता होती है । शारीरिक श्रम करनेवाले व्यक्तियों को अथवा कमजोर लोग अपनी भूख के अनुसार सवेरे थोडा अल्पाहार कर सकते हैं; परंतु अल्पाहार करने के पश्चात दोपहर का भोजन थोडी देर से, अच्छी भूख लगने पर करें ! (लगभग १ अथवा डेढ बजने के उपरांत) करें । दिन भर में कुछ खाने का मन करे तो बीच-बीच में न खाते हुए भोजन के समय खाएं ।
४. केवल २ बार भोजन की आदत डालते समय कष्ट न हो, इसलिए यह करें !
दिन में ४ – ४ बार आहार लेने की आदत होने पर एकाएक २ बार ही आहार लेना संभव होगा क्या ? ऐसा प्रश्न कुछ लोगों के मन में आ सकता है । किसी भी परिवर्तन में थोडा-बहुत कष्ट तो होता ही है; ऐसे में सवेरे के खाने के समय गरम पानी में थोडा गुड डालकर पानी पीएं । ऐसे करने से शरीर को आवश्यक ऊर्जा मिलती है और सिरदर्द होना टल जाता है । ऐसे कुछ दिन करने से शरीर को दिन में दो बार ही आहार लेने की आदत लग जाती है ।
५. ४ के बजाय केवल २ बार खाने पर क्या कमजोरी आएगी ?
वर्षा ऋतु के दिनों में इसप्रकार आहार अल्प करने से थकान नहीं आती; कारण शरीर की शक्ति इस पर निर्भर नहीं होती कि हम कितना खाते हैं, अपितु इस पर निर्भर होती है कि हम कितना पचा पाते हैं । २ बार आहार लेने से पूरा अन्न ठीक से पच जाने से थकान नहीं आती ।
६. ऋतु बदलने पर आहार में परिवर्तन करना आवश्यक !
वर्षा के उपरांत कुछ दिनों तक शरद ऋतु होती है । यह वर्षा और सर्दियों के मौसम के बीच का संधिकाल है । ऐसे समय पर आहार ऊपर दिए अनुसार अल्प ही रखें । शरद ऋतु के उपरांत सर्दियां शुरू हो जाती हैं । ठंड के दिन शुरू होते ही भूख भी बढ जाती है । उस समय दिन में ४ बार आहार लेने पर भी वह पच जाता है । सामान्यत: मार्च माह में वसंत ऋतु में कफ बढने से अग्नि मंद हो जाती है । उस समय ऊपर दिए अनुसार अल्प आहार रखें । पुन: कडी गर्मियों में भूख के अनुसार आहार लें; पर उस समय तरल (लिक्विड) आहार की मात्रा अधिक रखें ।’
७. दिन में ४ – ४ बार खाना टालें !
अ. स्वास्थ्य अच्छा रहने के लिए दिन में कितनी बार आहार लें ?
‘दिन में केवल २ बार आहार लेना’, आदर्श है । इससे शरीर निरोगी रहता है । यह संभव न हो तो अधिकाधिक ३ बार आहार लें । सवेरे शौच साफ होने पर, शरीर हलका होना और अच्छी भूख लगना, ये लक्षण होने पर ही सवेरे का अल्पाहार लें । ये लक्षण न हों, तो सवेरे १० बजे तक कुछ न खाएं । प्यास लगने पर केवल गरम पानी पीएं । सवेरे १० बजने के पश्चात अल्पाहार (‘अल्प’ आहार) करें । ऐसे समय पर दोपहर का भोजन लगभग १ से २ बजे तक लें । शाम ७ बजे रात का भोजन लें । इसप्रकार ३ बार आहार लेना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा है ।
आ. खाने के पदार्थ सहज उपलब्ध हों, तब भी अधिक खाने का मोह टालें !
घर पर डिब्बों में कुछ न कुछ नाश्ता रखा होता है । कई बार नौकरी के स्थान पर सवेरे-शाम की चाय होती है । होटल में तो हर समय ही खाने के पदार्थ उपलब्ध होते हैं । अनेक लोग जब एक स्थान पर रहते हैं, तब वहां ४ – ४ बार आहार उपलब्ध होता है । ऐसा होते हुए भी केवल ३ से भी अधिक समय पर आहार लेना अथवा दिनभर खाते रहना, यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुचित है । कभी-कभार भूख लगी है या कुछ बदलाव चाहिए, इसलिए अतिरिक्त समय खाना चल जाता है; परंतु प्रतिदिन ही अधिक बार खाना टालें ।’