अनुक्रमणिका
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ॐ का महत्त्व !
- १. वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक कारणों से ॐका जप करना लाभदायी !
- २. मंत्र के अक्षरों का शरीर के विविध अवयवों पर होनेवाला परिणाम
- ३. जिज्ञासावश वैज्ञानिकों का ॐ मंत्रजप से होनेवाले लाभ का प्रयोगों द्वारा परीक्षण
- ४. ॐ के जप से कष्ट न हो, इसलिए योग्य अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण समझ लें !
- ५. जिज्ञासुओ, विश्व के रहस्य जानने की क्षमता विज्ञान में नहीं, अपितु सूक्ष्म ज्ञान से परिचित करवानेवाले इस अध्यात्म में ही है !
- ६. ॐ का आध्यात्मिक महत्त्व स्पष्ट करनेवाला प्रयोग !
- ७. मानव के शरीर, मन, बुद्धि एवं चित्त पर सकारात्मक परिणाम करनेवाला एवं पूर्णत्व की अनुभूति देनेवाला ॐ
- ८. ॐ अक्षर को आदिबीज संबोधित करने का कारण
- ९. विज्ञान की सहायता से सिद्ध हुई ॐ की महिमा
- १०. ध्यानधारणा से ग्रहण किए हुए ॐकार की अनमोल देन विश्व को देनेवाले ऋषि-मुनियों के चरणों में कृतज्ञता !
- ॐ की आध्यात्मिक स्तरीय विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) नामक उपकरण द्वारा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परीक्षण !
- १. वैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य
- २. परीक्षण का स्वरूप
- ३. यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) उपकरण
- ४. परीक्षण में समानता आने के लिए रखी जानेवाली सावधानी
- ५. यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) उपकरण द्वारा किए निरीक्षण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ॐ का महत्त्व !
कुछ दिनों पूर्व नासा (नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) नामक अमेरिका की संस्था ने उपग्रह सेेेेे सूर्य के नाद का ध्वनिमुद्रण किया था, जो यू-ट्यूब पर उपलब्ध है । यह ध्वनिमुद्रण सुनने पर सूर्य के नाद एवं ॐकार में आश्चर्यजनक समानता ध्यान में आई । इस पृष्ठभूमि पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ॐ का क्या महत्त्व है, यह विषद करनेवाला जालस्थल पर दिया यह लेख पाठकों के लिए प्रस्तुत है ।
१. वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक कारणों से ॐका जप करना लाभदायी !
ॐ मंत्र के विषय में अनेक सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं । ॐ एक वैश्विक ध्वनि (कॉस्मिक साउंड) होने से उससे विश्व की निर्मिति हुई है, यह उसमें से सर्वाधिक प्रचलित सिद्धांत है; परंतु भारतीय (हिन्दू) संस्कृति में ॐ का नियमित जप करने के पीछे केवल वही एकमेव कारण नहीं, अपितु हिन्दू संस्कृति के अन्य पारंपरिक धार्मिक कृतियां पीछे होती हैं, वैसे मनुष्य को दीर्घकालीन लाभ देनेवाले कुछ शास्त्रीय एवं व्यवहारिक कारण भी हैं । (ये कारण ध्वनि, कंपन एवं अनुनाद (रेजोनन्स) से संबंधित शास्त्र पर आधारित हैं ।)
‘ॐ’ का जप सुनने के लिए यहां उपलब्ध है ।
ॐ का तारक जप
ॐ का मारक जप
२. मंत्र के अक्षरों का शरीर के विविध अवयवों पर होनेवाला परिणाम
मंत्र के अक्षर ध्वनि (कंपन) उत्पन्न करते हैं । विविध अक्षरों के उच्चारण से विविध कंपन निर्माण होते हैं और उनका शरीर के विविध अवयवों पर परिणाम होता है । प्रत्येक अक्षर की ध्वनि का शरीर के विशिष्ट अवयवों से संबंध होने से वह ध्वनि उस अवयव के स्थान पर प्रतिध्वनित (रेजोनेट) होती है । अ, उ एवं म, इन तीन अक्षरों को एकत्र करने पर ॐ मंत्र बनता है । उन अक्षरों के उच्चारण से होनेवाला परिणाम आगे दिया है ।
२ अ. अ का उच्चारण
अ अ अ… ऐसा उच्चार करने से छाती एवं पेट से संबंधित मज्जासंस्थाओं में संवेदना प्रतीत होती है और उस स्थान पर वह प्रतिध्वनित होती है ।
२ आ. उ का उच्चारण
उ उ उ… यह उच्चार गले एवं छाती के भागों में संवेदना निर्माण पर वहां प्रतिध्वनित होता है ।
२ इ. म का उच्चारण
म म म … यह उच्चार दोनों नासिकाएं एवं खोपडी में प्रतिध्वनित होता है । इससे ॐ के सलग उच्चार से पेट, पीठ (रीढ की हड्डी), गला, नाक एवं मस्तिष्क का भाग कार्यरत होता है । ऊर्जा पेट से ऊपरी दिशा तक प्रवाहित होती है ।
३. जिज्ञासावश वैज्ञानिकों का ॐ मंत्रजप से होनेवाले लाभ का प्रयोगों द्वारा परीक्षण
योगियों का कहना है कि ॐ के जप से मन की एकाग्रता बढना, मन स्थिर एवं शांत होना, मानसिक तनाव घटना आदि अनुभव आते हैं । इस संदर्भ में अधिक जानने एवं आधुनिक विज्ञान एवं तंत्रज्ञान की सहायता से उनकी निश्चिती करने की जिज्ञासा वैज्ञानिकों में थी । इसलिए उन्होंने कुछ प्रयोग किए और उससे योगियों के बताए अनुभवों को पुष्टि मिली । (इस संदर्भ में कुछ उदाहरण आगे दिए सूत्रों में हैं ।)
३ अ. ॐ के नियमित जप से व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर होनेवाला सकारात्मक परिणाम
३ अ १. शारीरिक लाभ
अ. रक्तदाब न्यून होना
ॐ के नियमित जप से रक्तदाब कम हो सकता है, यह वैद्यकीय क्षेत्र के आधुनिक शोध से सिद्ध हुआ है । ध्यानधारणा एवं ॐ का मंत्रजप कर श्रीमती क्लॉडिया जेफ ने उच्च रक्तदाब की बीमारी पर नियंत्रण पाया । आश्चर्य की बात है कि अब उनकी दवाईयां बंद हो गई हैं और उनका हृदयविकार अपनेआप ठीक हो गया है । (संदर्भ : chants_bp News Report: http://www.dailymail.co.uk/health/article-1258234/Chants-fine-thing-It-sound-daft-doctors-believe-med
४. ॐ के जप से कष्ट न हो, इसलिए योग्य अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण समझ लें !
१. निर्गुण (ब्रह्म) तत्त्व से सगुण की (माया की) निर्मिति होने हेतु प्रचंड शक्ति लगती है । उस प्रकार की शक्ति ओंकार के (ॐ के) जप से निर्माण होने से अनधिकारी को ओंकार का नामजप करने से उसे शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट होने की संभावना होती है । किसी विशेष कारणवश, उदा. अनिष्ट शक्तियों के निवारण हेतु नामजप को ॐ लगाना आवश्यक होगा, तो नामजप के समय ॐ का उच्चार अधिक समय तक न करें ।
ॐ के जप से महिलाओं को कष्ट होने की संभावना अधिक होती है । यह सूत्र आगे दिए उदाहरण से ध्यान में आएगा । ॐ कार के कारण निर्माण होनेवाले स्पंदनों से शरीर में काफी शक्ति (उष्णता) निर्माण होती है । पुरुषों की जननेंद्रिय शरीर के बाहर होती हैं । इसलिए निर्माण होनेवाली उष्णता का उनकी जननेंद्रियों पर परिणाम नहीं होता । महिलाओं की जननेंद्रिय पेट के निचले भाग में होने से इस उष्णता का उनकी जननेंद्रिय पर परिणाम होता है और उन्हें कष्ट हो सकता है । उन्हें माहवारी अधिक आना, न आना, माहवारी के समय वेदना होना, गर्भधारणा न होना, इस प्रकार की विविध व्याधियां हो सकती हैं; इसलिए महिलाओं को नामजप करते समय यदि गुरु द्वारा न बताया गया हो, तो नामजप के साथ न लगाएं, उदा. ॐ नमः शिवाय । ऐसा न कहते हुए केवल ‘नमः शिवाय ।।’ कहें अन्यथा ‘श्री’ लगाएं । ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर की महिलाएं नामजप के साथ ॐ लगा सकती हैं ।
२. ॐ में बहुत शक्ति होती है । इसलिए किसी विशेष कारण के लिए उदा. अनिष्ट शक्तियों के निवारण के लिए किसी देवता का नामजप करना आवश्यक हो, तो उस देवता का नामजप करने से पूर्व ॐ लगाते हैं, उदा. श्री गणपतये नमः ।।, ऐसान कहते हुए केवल ॐ गँ गणपतये नमः ।। ऐसा नामजप करें ।।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ अध्यात्म का प्रास्ताविक विवेचन)
५. जिज्ञासुओ, विश्व के रहस्य जानने की क्षमता विज्ञान में नहीं, अपितु सूक्ष्म ज्ञान से परिचित करवानेवाले इस अध्यात्म में ही है !
यदि किसी को विश्व के रहस्य जानने हैं, तो उसे शक्ति (एनर्जी), बारंबारता (फ्रिक्वेन्सी) एवं स्पंदन (वायब्रेशन्स), इन संज्ञाओं के दृष्टिकोण से विचार करना होगा ।
– निकोला टेस्ला (अमेरिका में हुए एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक)
(संदर्भ : http://guruprasad.net/posts/why-indians-chant-om-mantra-scientific-reason/)
शक्ति (एनर्जी), बारंबारता (फ्रिक्वेन्सी) एवं स्पंदन (वाइब्रेशन्स) सूक्ष्म के घटक हैं । अध्यात्म का एक मूलभूत सिद्धांत ही है कि स्थूल की तुलना में सूक्ष्म श्रेष्ठ होता है । सूक्ष्म समझने की क्षमता साधना से ही विकसित होती है । ऋषि-मुनियाें में यह क्षमता होने से ही वे विश्व के सूक्ष्म रहस्य अचूकता से किसी भी बाह्य उपकरणों के बिना समझ पाए ! – संकलक
६. ॐ का आध्यात्मिक महत्त्व स्पष्ट करनेवाला प्रयोग !
प्रयोग १ : अगले वाक्य का ॐ विरहित उच्चार करने पर क्या अनुभव होता है ?
प्रयोग २ : अगली पंक्तियों का ॐ सहित उच्चार करने पर क्या लगता है ?
ॐ शान्तिप्रियः प्रसन्नात्मा प्रशान्तः प्रशमप्रियः।
ॐ उदारकर्मा सुनयः सुवर्चा वर्चसोज्ज्वलः ॥ – सूर्यसहस्रनामस्तोत्र
७. मानव के शरीर, मन, बुद्धि एवं चित्त पर सकारात्मक परिणाम करनेवाला एवं पूर्णत्व की अनुभूति देनेवाला ॐ
प्रयोग १ का उत्तर : इस मंत्र का ॐविरहित उच्चार करने पर मंत्र में कुछ अपूर्णता प्रतीत होती है ।
प्रयोग २ का उत्तर : ॐसहित उच्चार करने पर मंत्र में शक्ति कार्यरत होती प्रतीत होना और मन आनंदी होकर पूर्णत्व की अनुभूति होती है ।
नादब्रह्मस्वरूप, अनादि एवं अनंत परमेश्वर का सगुण-साकार रूप है ॐकार !
८. ॐ अक्षर को आदिबीज संबोधित करने का कारण
अनेक ऋषि-मुनियों ने निर्गुण-निराकार ब्रह्मांड का नाद ध्यानधारणा से ग्रहण किया और उसे सगुण-साकार रूप दिया । इस ॐकार से अक्षरब्रह्म की निर्मिति हुई और उससे संस्कृत भाषा निर्माण हुई । प्रत्येक आकार के विशेष स्पंदन होते हैं, उसीप्रकार ॐ अक्षर के भी अपने स्पंदन हैं । किसी अक्षर का जब हम मुख से उच्चारण करते हैं, तब उससे निकलनेवाली ध्वनितरंगों से निर्धारित स्पंदन आते हैं । ॐ ही एकमेव ऐसा अक्षर है कि जिसके उच्चार से शक्ति, चैतन्य, आनंद एवं शांति की आवश्यकता अनुसार अनुभूति होती है । इसीलिए ॐ को आदिबीज संबोधित किया गया है ।
९. विज्ञान की सहायता से सिद्ध हुई ॐ की महिमा
प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. आर्.एन्. शुक्ल ने ‘विश्वचैतन्य का विज्ञान’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि आकार एवं ऊर्जा के संबंध का शोध करते हुए वर्ष १८७० में बोवीस नामक शास्त्रज्ञ ने बोवीस पेंड्यूलम नामक उपकरण से अनेक शोध लगाए । उससे बोवीस परिमाण प्रचलित हुआ । बोवीस एवं मिलीवोल्ट आज की परिभाषा के परिमाण हैं । एक सहस्र बोवीस अर्थात एक मिलीवाेल्ट है । ॐ का आकार बनाने पर इस आकार में शास्त्रज्ञों के मतानुसार अन्य चिन्हों का अनेक गुणा अधिक अर्थात दस लाख बोवीस ऊर्जा एवं चैतन्य है ।
ॐकार, सर्वव्यापक एवं स्वस्वरूप होने से परिपूर्ण होता है, इसके साथ ही वह पूर्णत्व की प्राप्ति करवानेवाला है । ऐसे शब्दब्रह्म की अनुभूति देनेवाले ॐकार के संदर्भ में देश एवं विदेश में अनेक स्थानों पर शोध किया गया है । हाल ही में अमेरिका के नासा के शोधकर्ता संगठन ने ॐकार नाद के संदर्भ में भी शोध किया । इस शोध में नादस्वरूप ॐकार का मानव के शरीर, मन, बुद्धि एवं चित्त पर सकारात्मक परिणाम प्रमाणित हुआ ।
१०. ध्यानधारणा से ग्रहण किए हुए ॐकार की अनमोल देन विश्व को देनेवाले ऋषि-मुनियों के चरणों में कृतज्ञता !
आज का युग अर्थात तकनीकी युग अथवा वैज्ञानिक युग है । प्रत्येक बात वैज्ञानिक उपकरण द्वारा प्रमाणसहित सिद्ध करने के पश्चात ही संपूर्ण जगत उसे स्वीकार करता है । पूर्व के काल में कोई भी वैज्ञानिक उपकरण न होते हुए भी अपने ऋषि-मुनियों ने निर्गुण-निराकार ब्रह्मांड का नाद, ध्यानधारणा से ग्रहण किया एवं उसे सगुण-साकार रूप दिया । इसके साथ ही उन्होंने अनेक शोध भी किए, जो वर्तमान के आधुनिक प्रगत विज्ञान के लिए संभव नहीं । यह हमारा सौभाग्य है कि सर्वव्यापी समष्टि कार्य करनेवाले ऋषियों के कारण हमें ॐकार का सगुण रूप मिला है । अत: इन ऋषियों के श्रीचरणों में हमारा त्रिवार प्रणाम !
– कु. प्रियांका लोटलीकर, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय (४.७.२०१६)
ॐ की आध्यात्मिक स्तरीय विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) नामक उपकरण द्वारा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परीक्षण !
प्रत्येक आकार के विशेष स्पंदन होते हैं, उसीप्रकार ॐ के भी उसके अपने स्पंदन हैं । जब हम किसी अक्षर का उच्चारण करते हैं, तब मुख से निकलनेवाली ध्वनितरंगों से निर्धारित स्पंदन बाहर निकलते हैं ।
यहां मंत्र का ॐविरहित उच्चार करने पर एवं ॐसहित उच्चार करने पर व्यक्ति पर होनेवाला परिणाम वैज्ञानिकदृष्टि से अध्ययन करने के उद्देश्य से यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) नामक उपकरण की सहायता से परीक्षण किया गया । इस परीक्षण का निरीक्षण एवं उसका विवरण आगे दिया है । यहां दिए गए वैज्ञानिक परीक्षण से ॐ का महत्त्व ध्यान में आकर उसका आध्यात्मिक स्तर पर लाभ लेने की प्रेरणा सभी को मिले, ऐसी ईश्वरचरणों में प्रार्थना है !
१. वैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य
किसी घटक में (वस्तु, वास्तु एवं व्यक्ति में) कितने प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन हैं, वह घटक सात्त्विक है या नहीं अथवा वह घटक आध्यात्मिकदृष्टि से लाभदायक है अथवा नहीं, यह बताने के लिए सूक्ष्म का समझना आवश्यक होता है । संत सूक्ष्म का समझ सकते हैं इसलिए वे प्रत्येक घटक के स्पंदनों का अचूक निदान कर सकते हैं । श्रद्धालु एवं साधक संतों द्वारा बताए शब्द प्रमाण मानकर उस पर श्रद्धा रखते हैं; परंतु बुद्धिवादियों को शब्दप्रमाण नहीं, अपितु प्रत्यक्ष प्रमाण चाहिए होता है । उन्हें प्रत्येक बात वैज्ञानिक परीक्षण द्वारा, अर्थात यंत्र से प्रमाणित कर दिखाई जाने पर ही उन्हें वह खरी लगती है ।
२. परीक्षण का स्वरूप
इस परीक्षण में योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा दिए गए ॐ आनंदं हिमालयं विष्णुं गरुडध्वजं ॐ । ॐ शिवं दत्तं गायत्री सरस्वती महालक्ष्मी प्रणमाम्यहं ॐ ॥ मंत्र का यू.ए.एस्. उपकरण द्वारा परीक्षण किया गया । एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए मंत्र का ॐविरहित उच्चार एवं ॐसहित उच्चार, इन दोनों परीक्षणों का तुलनात्मक अभ्यास किया गया ।
३. यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) उपकरण
३ अ. उपकरण का परिचय
इस उपकरण को ‘ऑरा स्कैनर’ भी कहते हैं । इस उपकरण द्वारा घटक की (व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तु की) ऊर्जा एवं उनका प्रभामंडल नाप सकते हैं । यह उपकरण भाग्यनगर, तेलंगना के भूतपूर्व परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मन्नम मूर्ति ने वर्ष २००३ में विकसित किया । उनका कहना है कि इस उपकरण का उपयोग वास्तु, वैद्यकीयशास्त्र, पशुवैद्यकीय शास्त्र के साथ-साथ वैदिक शास्त्र में भी आनेवाली अडचनों के निदान (डायग्नोसिस) के लिए इस उपकरण का उपयोग कर सकते हैं ।
३ आ. उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक एवं उनका विवरण
३ आ १. नकारात्मक ऊर्जा : यह ऊर्जा हानिकारक होती है । इसके अंतर्गत आगे दिए दो प्रकार आते हैं
अ. अवरक्त ऊर्जा (इन्फ्रारेड) : इसमें घटक से प्रक्षेपित होनेवाली इन्फ्रारेड ऊर्जा नापते हैं ।
आ. जंबुपार ऊर्जा (अल्ट्रावॉयलेट) : इसमें घटक से प्रक्षेपित होनेवाली अल्ट्रावॉयलेट ऊर्जा नापते हैं ।
३ आ २. सकारात्मक ऊर्जा : यह ऊर्जा लाभदायी होने से उसे नापने के लिए स्कैनर में सकारात्मक ऊर्जा दिखानेवाला +Ve नमूना रखते हैं ।
३ आ ३. घटक का प्रभामंडल : इसे नापने के लिए उस घटक के सर्वाधिक स्पंदनों से युक्त नमूने का उपयोग करते हैं , उदा. व्यक्ति के संदर्भ में उसकी लार अथवा छायाचित्र एवं वनस्पतियों के संदर्भ में उनके पत्ते ।
४. परीक्षण में समानता आने के लिए रखी जानेवाली सावधानी
अ. उपकरण उपयोग करनेवाले व्यक्ति को आध्यात्मिक कष्ट (नकारात्मक स्पंदन) विरहित था ।
आ. उस व्यक्ति के वस्त्रों के रंग का परिणाम परीक्षण पर न हो, इसलिए उस व्यक्ति ने सफेद वस्त्र परिधान किए थे ।
५. यू.ए.एस्. (Universal Aura Scanner) उपकरण द्वारा किए निरीक्षण
निरीक्षण के सूत्र | मंत्रोच्चार करने से पूर्व व्यक्ति का किया परीक्षी | ‘आनंदं हिमालयं…’ मंत्रजप करना | ‘आनंदं हिमालयं…’ मंत्रजप करना |
---|---|---|---|
‘यू.ए.एस्.’ उपकरण द्वारा प्रविष्टी (रीडिंग) लेने का समय | दोपहर ३.४५ | दोपहर ४.३० | दोपहर ४.४५ |
१. नकारात्मक ऊर्जा (इसका विश्लेषण ५ अ १ सूत्र में दिया है ।) | |||
१ अ. इन्फ्रारेड | |||
१. स्कैनर द्वारा बनाया कोण (अंश) | ० | ० | ० |
२. प्रभामंडल (मीटर) (टिप्पणी) | नहीं | नहीं | नहीं |
१ आ. अल्ट्रावॉयलेट | |||
१. स्कैनर द्वारा बनाया कोण (अंश) | ० | ० | ० |
२. प्रभामंडल (मीटर) (टिप्पणी) | नहीं | नहीं | नहीं |
२. सकारात्मक ऊर्जा (का विश्लेषण ५ अ २ सूत्र में दिया है ।) | |||
१. स्कैनर द्वारा बनाया कोण (अंश) | ३० | १८० | १८० |
२. प्रभामंडल (मीटर) (टिप्पणी) | नहीं | २.७६ | ३.१२ |
म ३. नामस्मरण करनेवाले व्यक्ति की लार के नमूने का उपयोग कर नापा गया प्रभामंडल (मीटर) (इसका विश्लेषण ५ अ ३ सूत्र में दिया है ।) | – | ३.८१ | ४.०८ |
टिप्पणी : स्कैनर १८० अंश के कोण में खुलने पर ही उस घटक का प्रभामंडल नाप सकते हैं । उसकी तुलना में कम अंश के कोण में स्कैनर खुलने पर उसका अर्थ होता है कि उस घटक के सर्व ओर प्रभामंडल नहीं है ।
५ अ. निरीक्षणों का विवेचन
५ अ १. नकारात्मक ऊर्जा न पाई जाना : सर्वसाधारण वास्तु अथवा व्यक्ति के परीक्षण में नकारात्मक ऊर्जा हो सकती है; परंतु परीक्षण के दोनों समय मंत्र का उच्चारण करने पर नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल भी नहीं पाई गई । संतों की संकल्पशक्ति के कारण इस मंत्र के प्रत्येक शब्द में सात्त्विक ऊर्जा निर्माण होने से मंत्र का ॐविरहित उच्चारण करने पर भी नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।
५ अ २. ॐविरहित एवं ॐसहित मंत्र के उच्चारण, इन दोनों परीक्षणों के समय सकारात्मक ऊर्जा मिलना : ऐसा नहीं है कि सभी व्यक्ति, वस्तु अथवा वास्तु में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा पाई ही जाती है; परंतु ॐविरहित एवं ॐसहित मंत्र का उच्चारण, इन दोनों परीक्षणों के समय स्कैनर की भुजाएं १८० अंश के कोण में खुलीं और तब प्रभामंडल में लगभग आधा मीटर वृद्धि हुई, अर्थात उस स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।
५ अ ३. मंत्र के ॐविरहित उच्चार की तुलना में एवं ॐसहित उच्चार करने से काफी शक्ति प्रक्षेपित होना : इस स्थान पर व्यक्ति का परीक्षण करने पर स्कैनर की भुजा केवल ३० अंश के कोण में खुलीं और उसका प्रभामंडल नहीं आया । उसी व्यक्ति के ॐविरहित मंत्र का उच्चारण कऱने पर प्रभामंडल ३.८९ मीटर से भी अधिक और ॐसहित मंत्र का उच्चारण करने पर प्रभामंडल ४.०८ मीटर अर्थात सर्वसाधारण व्यक्ति के प्रभामंडल की तुलना में बहुत अधिक था ।
अनेक ऋषि-मुनियों द्वारा निर्गुण-निराकार ब्रह्मांड का नाद ध्यानधारणा से ग्रहण किया एवं उसे सगुण-साकार रूप दिया । इस ॐकार से अक्षरब्रह्म की निर्मिति हुई और उससे संस्कृत भाषा निर्माण हुई । प्रत्येक आकार के विशिष्ट स्पंदन होते हैं । उसीप्रकार ॐ अक्षर के भी उसके अपने स्पंदन हैं । उपरोक्त परीक्षण से ॐ लगाकर मंत्र कहने पर प्रभामंडल से सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि दिखाई देती है । इससे ॐ का असाधारण महत्त्व ध्यान में आता है ।