अनुक्रमणिका
- १. एकाएक उद्भव होनेवाला पेटदर्द एवं पानी
- २. पेट के गंभीर विकार में पानी भी पीना धोकादायक
- ३. ज्वर (बुखार) के समय कौन-सा पानी पीएं ?
- ४. पानी के स्थान पर शरबत पीएं क्या ?
- ५. पानी उष्ण (गरम) अथवा ठंडा पीएं ?
- ६. पेट साफ न हो रहा हो तो अधिक बार थोडा-थोडा पानी पीएं ।
- ७. ‘दिनभर में ८ गिलास पानी पीना चाहिए’, यह पेट के लिए योग्य है क्या ?
- ८. भाेजन करते समय पानी पीएं अथवा नहीं ?
- ९. शौच हाेने के लिए लोटाभर पानी पीने की आदत छोडें
- १०. सवेरे उठते-उठते ही भरपूर पानी पीना के पेट के लिए ठिक है ?
१. एकाएक उद्भव होनेवाला पेटदर्द एवं पानी
‘किसी भी कारणवश एकाएक पेट में वेदना हो रही हो, तो २ से ४ गिलास गुनगुना पानी पीएं और आराम से बैठ जाएं । मुंह में उंगली डालकर उलटी करने का प्रयत्न न करें । यह उपाय एक बार ही करें । पानी पीने से कोई हानि नहीं होती । अधिक पानी पीने से कई बार पेशाब के माध्यम से बाहर निकल जाता है । पानी पीकर २ घंटों में भी ठीक न लग रहा हो, तो विशेषज्ञ से परामर्श करें ।
उपरोक्त समान पानी पीने से आगे दिए लाभ होते हैं । अपचन होने से अन्न पेट में भरा होने से पेट दुख रहा हो तो अपनेआप मितली होकर उलटी होती है और भरा हुआ अन्न बाहर निकलने से अच्छा लगता है । छोटी पथरी (renal stone) अटकने से पेट में वेदना हो रही हो, तो पीया हुआ पानी पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाता है और साथ में कभी-कभी पथरी भी निकल जाती है और उसे अच्छा लगता है ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
२. पेट के गंभीर विकार में पानी भी पीना धोकादायक
‘पेट में तीव्र वेदना एवं एक से अधिक उलटी हुई हों, तो पेट के गंभीर विकार होने की संभावना है, उदा. जठर का व्रण (अल्सर) फूटना । ऐसे रोगी को मुंह से पानी पीना भी धोकादायक हो सकता है । इसलिए ऐसे प्रसंग में घरेलु उपचार न करते हुए तुरंत आधुनिक वैद्य को दिखाएं ।’
– आधुनिक वैद्य (डॉ.) रवींद्र भोसले, शल्यचिकित्सक एवं जठरांत्ररोगतज्ञ (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट), नगर (२४.११.२०२२)
३. ज्वर (बुखार) के समय कौन-सा पानी पीएं ?
‘ज्वर के समय सादा (ठंडा) पानी न पीएं । एक लीटर पानी में (चाय का) पाव चम्मच ‘मुस्ता (नागरमोथा) चूर्ण’ डालकर ५ मिनट पानी उबालें । यह पानी थर्मास में रखकर प्यास लगने पर थोडा-थोडा गुनगुना कर पीएं । ऐसा पानी पीने से ज्वर उतरने में सहायता होती है और शक्ति भी टिकी रहती है ।’
४. पानी के स्थान पर शरबत पीएं क्या ?
‘कभी-कभार शरबत लें तो ठीक है; परंतु प्रतिदिन शरबत पीने की आदत स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं । शरबत से अनावश्यक शक्कर पेट में जाती है । शक्कर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है । यदि शक्कर के स्थान पर गुड भी डालें, तो भी गुड का अधिक मात्रा में प्रतिदिन सेवन करना ठीक नहीं । गुड के पदार्थ बारंबार खाने से प्रतिदिन उन्हें खाने की इच्छा होती है । इसलिए शरबत के स्थान पर सादा पानी ही पीएं ।’
५. पानी उष्ण (गरम) अथवा ठंडा पीएं ?
‘ठंड के दिनों में उष्ण और गर्मियों के दिनों में ठंडा पानी पीएं । ठंडा पानी, अर्थात प्रशीतक (फ्रिज) का नहीं, अपितु गर्मियों में मिट्टी के घडे का पानी पीने से मन प्रसन्न होता है । अन्य ऋतुओं में घडे का पानी न पीएं । छींकें आना, सर्दी, गले में कफ आना, ज्वर, दमा जैसे विकार होते समय सादा ठंडा (बिना उबाले) पानी न पीएं । वह उबाला हुआ पानी गुनगुना अथवा ठंडा कर पीएं ।’
६. पेट साफ न हो रहा हो तो अधिक बार थोडा-थोडा पानी पीएं ।
‘पेट साफ होने के लिए भरपूर पानी पीना गलत है । उसके स्थान पर अधिक बार थोडा-थोडा पानी पीएं । एक बार में अधिक मात्रा में पानी पीने से वह पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाता है । उस पानी का शरीर को कोई उपयोग नहीं होता । गमले में लगे पौधे को भरपूर पानी डालने पर वह गमले के तले पर बने छिद्र से पानी बाहर निकल जाता है, उसीप्रकार यह भी है । पौधे को ठीक से पानी मिले, इसलिए टपक सिंचाई (drip irrigation) करते हैं । इसमें एक समय पर अधिक पानी न देते हुए बूंद-बूंद पानी दिया जाता है । इससे पौधे को इस पानी का पूरा-पूरा उपयोग होता है । उसीप्रकार शरीर को भी पर्याप्त पानी मिले, इसके लिए गटागट पानी न पीते हुए थोडी-थोडी देर में एक-एक घूंट पानी पीएं ।’
७. ‘दिनभर में ८ गिलास पानी पीना चाहिए’, यह पेट के लिए योग्य है क्या ?
‘शरीर के लिए कितना पानी आवश्यक है’, यह प्रदेश, वातावरण की उष्णता अथवा वातावरण में शीतलता, शारीरिक श्रम अथवा शरीर को होनेवाला श्रम, आहार इत्यादि अनेक घटकों पर निर्भर होता है । ‘जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां’ होने से प्रत्येक व्यक्ति की पानी की आवश्यकता भिन्न हो सकती है । इसलिए कितना पानी पीएं, इस संबंध में अपनी बुद्धि से निर्णय लेने की अपेक्षा ईश्वरीय संवेदनानुसार जब प्यास लगती है, तब थोडा-थोडा पानी पीएं ।’
८. भाेजन करते समय पानी पीएं अथवा नहीं ?
‘आटा गूंधते समय पानी के कम होने पर वह कडा होता है और रोटियां बनाते समय कठिनाई होती है । यदि बहुत पतला हो जाए तो रोटियां चकले पर चिपक जाती हैं । इसलिए आटा गूंधते समय पानी की मात्रा योग्य होगी, तब ही रोटियां ठीक से बेली जा पाती हैं । अन्न का योग्य पचन होने के लिए भी वह अधिक कडा अथवा पतला न हो । इसलिए आयुर्वेद में बताया है कि भोजन के समय आवश्यकता के अनुसार बीच-बीच में थोडा-थोडा पानी पीएं ।
९. शौच हाेने के लिए लोटाभर पानी पीने की आदत छोडें
‘सवेरे उठते ही पानी पीने के पश्चात ही शौच होती है’, ऐसी आदत हो, तब भी सवेरे की यह पानी पीने की आदत छोडें । पानी पीकर शौच होने से अधिक महत्त्वपूर्ण है कि जठराग्नि (पचनशक्ति) अच्छी होना । वह अच्छी हो, तो योग्य समय पर अपने आप ही शौच होगी और इसके साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है ।’
१०. सवेरे उठते-उठते ही भरपूर पानी पीना के पेट के लिए ठिक है ?
‘जग में ७० प्रतिशत पानी ही है । कहते हैं ’जल जीवन है’, यद्यपि ऐसा है तब भी चूल्हा जलना आरंभ होते ही उस पर लोटा भर पानी डाल दिया जाए तो क्या स्थिति होगी ? सवेरे उठते-उठते ही भरपूर पानी पीने से जठराग्नि के (पचनशक्ति के) संदर्भ में भी ऐसा ही होता है । इसलिए सवेरे प्यास लगने पर थोडा-थोडा पानी पीएं ।’