नामजप न करते हुए और नामजप के साथ प्राणायाम

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यू.ए.एस. उपकरण द्वारा परीक्षण करते हुए श्री. आशिष सावंत

२१ जून विश्वभर में आंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है । योग इस शब्द का उगम ‘युज’ धातु से हुआ है । युग का अर्थ है संयोग होना । योग इस शब्द का मूल अर्थ जीवात्मा का परमात्मा से मिलन होना है । योगशास्त्र का उगम लगभग ५००० वर्षाें पूर्व भारत में हुआ है । वास्तव में योग एक जीवनशैली है । यह जीवनशैली स्वीकारने पर व्यक्ति अपने जीवन में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर यशस्वी होकर आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकता है । इसलिए योग भारत द्वारा संपूर्ण विश्व को दी हुई एक अमूल्य देन है ।

भारत के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी ने २७ सितंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में आंतरराष्ट्रीय योग दिन का प्रस्ताव पारित किया था । संपूर्ण विश्व के लिए व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए एक परिपूर्ण संदेश पहुंचाना, यह इसके पीछे का उद्देश्य था । इस प्रस्ताव में योगासनों के लाभ और उसका आरोग्य पर परिणामों का विस्तृत विवेचन किया गया था । इस प्रस्ताव को १९३ सदस्य के संयुक्त राष्ट्र महासभा के १७५ सदस्य सहप्रायोजक के रूप में मिले । यह आजतक हुए संयुक्त महासभा के किसी भी प्रस्ताव के सहप्रायोजकों की सर्वाधिक संख्या थी । विशेष बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा आयोग के कायमस्वरूप सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, इंग्लैंड एवं अमेरिका भी इस प्रस्ताव के सहप्रायोजक थे । ११ दिसंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वैश्विक स्वास्थ्य एवं विदेश नीति के अंतर्गत पूर्ण बहुमत से आंतरराष्ट्रीय योग दिवस २१ जून को मनाने की अनुमति दी । यह प्रस्ताव सबसे अल्प अवधि में पारित हुआ । इससे जगभर में योग के महत्त्व के विषय में हुई जागृति ध्यान में आती है ।

आज जगभर के बहुतांश देशों में अल्प-अधिक मात्रा में योगासन एवं प्राणायाम सिखानेवाले वर्ग आरंभ किए गए हैं । इन वर्गाें की बढती लोकप्रियता इस बात की सूचक है कि लोगों को इसका लाभ हो रहा है । योगासन एवं प्राणायाम की सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर होनेवाले लाभ का अभ्यास करने की दृष्टि से महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ इस आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण के माध्यम से किए जानेवाले परीक्षण की जानकारी इस लेख में दे रहे हैं ।

यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.) यह उपकरण भूतपूर्व अणु वैज्ञानिक डॉ. मन्नम मूर्ती ने विकसित किया है । यू.ए.एस. उपकरण द्वारा वस्तु, वास्तु, प्राणि अथवा व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा एवं सकारात्मक ऊर्जा नापी जा सकती है । सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तुओं में नकारात्मक ऊर्जा हो सकती है; परंतु सकारात्मक ऊर्जा होगी ही, ऐसा नहीं ।

 

१. सूर्यनमस्कार करते समय बिना सूर्य का नाम
लिए और सूर्य का नाम लेने पर व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जा पर
होनेवाले परिणाम का अध्ययन सूर्यनमस्कार करते हुए एक मुद्रा

अनेक लोगों का कहना है कि आज के भागदौड के जीवन में विविध योगासन करने के लिए समय नहीं मिलता । इस पर उत्तम पर्याय है सूर्यनमस्कार करना; कारण एक सूर्यनमस्कार के अंतर्गत कुल १२ योगासन आते हैं । इसलिए योगासनों का सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर होनेवाले लाभ का अभ्यास करने के लिए सूर्यनमस्कार का चयन किया गया ।

१ अ. सूर्यनमस्कार का महत्त्व

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने । जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते ॥

अर्थ : जो लोग सूर्य को प्रतिदिन नमस्कार करते हैं, उन्हें हजारों जन्मों तक दारिद्रता नहीं आती ।

१ आ. सूर्यनमस्कार करने से होनेवाले लाभ

१. सर्व महत्त्वपूर्ण अवयवों में रक्त की आपूर्ति बढती है ।

२. हृदय और फेफडों की कार्यक्षमता बढती है ।

३. भुजाओं और कमर के स्नायु सुदृढ होते हैं ।

४. रीढ की हड्डी और कमर का लचीलापन बढता है ।

५. पेट पर से चरबी पिघल कर वजन अल्प होने में सहायता होती है ।

६. पचनक्रिया में सुधार होता है ।

७. मन की एकाग्रता बढती है ।

१ इ. बिना सूर्य का नाम लिए और नामसहित सूर्यनमस्कार करने से
व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जा पर होनेवाले परिणाम का यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस्.) के माध्यम से किया अभ्यास

यह अभ्यास १ पुरुष और १ महिला, इसप्रकार २ साधकों पर किया गया । इसके लिए आगे दिए अनुसार परीक्षण किया गया ।

१. सूर्यनमस्कार करने से पूर्व दोनों का यू.ए.एस्. उपकरण से आभामंडल नापा गया । यह उनके मूल स्थिति की प्रविष्टी थी ।

२. तदुपरांत दोनों के बिना सूर्य का नाम लिए १२ सूर्यनमस्कार करने पर उनका आभामंडल पुन: यू.ए.एस्. उपकरण द्वारा नापा गया । इस प्रविष्टि से उनपर ‘सूर्य का नाम लिए बिना’ सूर्यनमस्कार करने से सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर हुआ परिणाम ध्यान में आया ।

३. अगले दिन उन दोनों की ‘मूल स्थिति’ की प्रविष्टि करने के पश्चात उन्होंने ‘सूर्य के नामसहित’ १२ सूर्यनमस्कार किए । फिर यू.ए.एस्. उपकरण से ली गईं प्रविष्टियां दर्ज की गईं । इससे सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर हुआ परिणाम ध्यान में आया ।

उपरोक्त परीक्षण की प्रविष्टियां आगे दिए अनुसार थीं ।

 

नकारात्मक ऊर्जा की आभा (मीटर) सकारात्मक ऊर्जा की आभा (मीटर)
पुरुष साधक द्वारा सूर्यनमस्कार सूर्य का नाम लिए बिना करने से पूर्व १:३५ १:८७
करने के पश्चात ४:२६
सूर्य का नाम लेकर करने से पूर्व १:८२ ३:२४
करने के पश्चात ७:४१
महिला साधिका द्वारा सूर्यनमस्कार सूर्य का नाम लिए बिना करने से पूर्व २:१२
करने के पश्चात ५:१७
सूर्य का नाम लेकर करने से पूर्व ३:९६
करने के पश्चात ८:६२

उपरोक्त सारणी अनुसार आगे दिए सूत्र स्पष्ट होते हैं ।

१. पुरुष साधक में सूर्यनमस्कार करने से पूर्व नकारात्मक ऊर्जा, दोनों प्रकार से अर्थात बिना सूर्य का नाम लिए और सूर्यका नाम लेकर सूर्यनमस्कार करना, पूर्णतः नष्ट हो गई ।

२. सूर्यनमस्कार करने से पूर्व पुरुष साधक में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा का आभामंडल, सूर्य का नाम लिए बिना सूर्यनमस्कार करने से २.३९ मीटर की वृद्धि हुई, अर्थात दुगुनी से भी अधिक बढ गई । तदुपरांत सूर्य का नाम लेने के पश्चात ४.१७ मीटर से भी अधिक बढ गई ।

३. महिला साधिका में नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी । उसमें विद्यमान सूर्यनमस्कार करने से पूर्व सकारात्मक ऊर्जा का आभामंडल सूर्य का नाम न लेते हुए भी करने पर ३.०५ मीटर बढ गई, अर्थात दुगुनी से भी अधिक वृद्धि हुई । सूर्यनमस्कार सूर्य का नाम लेकर करने के उपरांत आभामंडल में ४.६६ मीटर से भी अधिक बढ गई ।

 

२. नामजप न करते हुए और नामजप के साथ प्राणायाम
करने से व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जा पर होनेवाले परिणाम का अभ्यास

यह अभ्यास करने के लिए अनुलोम-विलोम इस प्राणायाम का प्रकार चुना गया ।

२ अ. अनुलोम-विलोम प्राणायाम कैसे करना चाहिए ?

१. पीठ सीधी रखकर आराम से बैठकर कंधे ढीले छोड दें । मुख पर मंद स्मित हास्य हो ।

२. अपना बायां हाथ अपने बाएं घुटने पर रखें, हथेली आकाश की दिशा में खुली रखें अथवा अंगूठे और तर्जनी का सिरा एकदूसरे से धीरे से स्पर्श करें ।

३. दाएं हाथ की तर्जनी एवं मध्यमा के सिरे भौहों के मध्यभाग में रखें, अनामिका और छिगुनी उंगली (सबसे छोटी उंगली) बाईं नासिका और अंगूठा दाईं नासिका पर रखें । अनामिका और छिगुनी उंगली बाईं नासिका बंद करने अथवा खोलने के लिए उपयोग करनी है और अंगूठा दाईं नासिका के लिए उपयोग करना है ।

४. अपने अंगूठे से दाईं नासिका बंद करें और बाईं नासिका से धीरे से श्वास छोडें ।

५. अब बाईं नासिका से श्वास लें और फिर अनामिका एवं छिगुनी से बाईं नासिका बंद करें । दाईं नासिका से अंगूठा हटा कर दाईं नासिका से श्वास छोडें ।

६. अब दाईं ओर से श्वास लें और बाईं से छोडें । इस प्रकार अनुलोम-विलोम प्राणायाम का एक चक्र पूर्ण हो गया है । बारी-बारी से दोनों नासिका से श्वास लेना और छोडना जारी रखें ।

७. इस प्रकार ९ चक्र पूर्ण करें । प्रत्येक बार श्वास छोडने पर उसी नासिका से श्वास लेना ध्यान में रखें । प्राणायाम के संपूर्ण समय आंखें बंद रखें और कोई भी जोर न देते हुए लंबी, गहरी और सहजता से श्वास लेते रहें ।

२ आ. अनुलोम-विलोम प्राणायाम के लाभ

१. शरीर का तापमान संतुलित रखता है ।

२. अनेक अभिसरण एवं श्वसन की समस्याओं पर चिकित्सा समान काम करता है ।

३. मस्तिष्क के बाएं और दाएं गोलार्ध में, जो अपने व्यक्तित्व का अनुक्रम से तार्किक और भावनिक पहलुओं से परस्परसंबंधित है, उनमें समन्वय लाने में सहायता करता है ।

४. शरीर एवं मन के संचित तनाव को प्रभावीरूप से दूर करने और तनावमुक्त होने में सहायता करता है ।

५. मन शांत और स्थिर करने के लिए प्राणायाम अत्यंत उत्तम श्वसन तंत्र है ।

६. मन वर्तमानकाल में रहता है ।

२ इ. अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने से व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जा
पर होनेवाले परिणाम का युनिवर्सल ऑरा स्कैनर के माध्यम से किया अभ्यास

यह अभ्यास सूत्र क्र. १ इ में यह परीक्षण १ पुरुष और १ महिला साधक पर किया गया । इस हेतु आगे दिए अनुसार परीक्षण किया गया ।

१. सूर्यनमस्कार करने के पश्चात की प्रविष्टि के उपरांत १० मिनट शवासन कर पुन: दोनों का यू.ए.एस्. उपकरण द्वारा आभामंडल नापने की प्रविष्टियां की गईं । यह उनके प्राणायाम के परिणाम का अभ्यास करने के लिए किए गए परीक्षण की मूल स्थिति थी ।

२. तदुपरांत दोनों ने ही प्रत्येक ९ बार नामजप न करते हुए अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने के उपरांत उनका पुन: यू.ए.एस. उपकरण द्वारा नापने की प्रविष्टि की गई ।

३. दूसरे दिन दोनों व्यक्तियों की मूल स्थिति की प्रविष्टी की गई । तदुपरांत पुन: उनके अनुलोम-विलोम प्राणायाम नामजप करते हुए करने पर उनका पुन: यू.ए.एस्. उपकरण द्वारा परीक्षण कर प्रविष्टि की गई ।

उपरोक्त परीक्षण की प्रविष्टियां आगे दिए अनुसार –

 

नकारात्मक ऊर्जा की आभा (मीटर) सकारात्मक ऊर्जा की आभा (मीटर)
पुरुष साधक द्वारा प्राणायाम बिना नामजप के करने से पूर्व ३:६२
करने के उपरांत ६:३१
नामजप करते हुए करने से पूर्व ४:८८
करने के उपरांत १०:८७
महिला साधिका द्वारा प्राणायाम बिना नामजप के करने से पूर्व ३:९४
करने के उपरांत ६:४१
नामजप करते हुए करने से पूर्व ५:३१
करने के उपरांत १०:७४

उपरोक्त सारणी से आगे दिए सूत्र स्पष्ट होते हैं ।

१. दोनों साधकों में अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने से पूर्व और पश्चात नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

२. पुरुष और स्त्री साधकों के नामजप न करते हुए प्राणायाम करने के उपरांत उनकी सकारात्मक ऊर्जा का आभामंडल अनुक्रम से २.६९ एवं २.४७ मीटर, अर्थात डेढ गुना अधिक बढ गया । दोनों ने नामजप करते हुए प्राणायाम करने के उपरांत वह अनुक्रम से ५.९९ एवं ५.४३ मीटर से, अर्थात दुगुने से भी अधिक बढ गई ।

 

३. परीक्षण का निष्कर्ष

सूर्यनमस्कार एवं अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने का आध्यात्मिक
स्तर पर बहुत लाभ होना; परंतु दोनों प्रकार नामजप सहित करने से सर्वाधिक लाभ होना

इस परीक्षण से सूर्यनमस्कार करने से एवं अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने से सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर होनेवाला लाभ ध्यान में आया । यह लाभ सूर्यनमस्कार एवं प्राणायाम नामजप करते हुए करने पर अधिक ही बढ जाता है, यह भी स्पष्ट हुआ । ये लाभ देखते हुए, ५००० वर्षाें पूर्व अपने ऋषि-मुनियों ने किसी भी बाह्य, स्थूल उपकरणों के आधार के बिना अद्वितीय योगासनों एवं प्राणायाम की निर्मिति की, यह ध्यान में आता है । इन्हें चैतन्यमय नामजप की जोड देने पर लाभ में होनेवाली वृद्धि को देखते हुए, अपने ऋषि-मुनियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्द कम पडते हैं और उनके चरणों में नतमस्तक हो जाते हैं । इस परीक्षण से नामजपसहित योगासन एवं प्राणायाम करने का लाभ ध्यान में रख अधिकाधिक लोग इसे अपनी दिनचर्या में अंतर्भूत कर लें, यही ईश्वचरणों में प्रार्थना है !

-आधुनिक वैद्या (श्रीमती) नंदिनी सामंत, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (१८.६.२०२०)

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