भारतीय संस्कृति की ‘प्रतीक पूजा’

Article also available in :

प्रतीक अर्थपूर्ण, सामर्थ्यशाली और प्रभावशाली होते हैं । इसीलिए हमें अपना राष्ट्रध्वज भी कई गुना सर्वश्रेष्ठ लगता है । हमारा तिरंगा झंडा प्रत्येक भारतीय के प्राण एवं आत्मा का प्रतीक है । उसे आदरपूर्वक नमस्कार करना ही उचित है । भारतीयों की प्रखर राष्ट्रीय भावनाएं तिरंगे झंडे के पीछे अखण्डरूप से कार्यरत हैं । उसमें स्वधर्म, देशप्रेम और राष्ट्रवाद अखण्डरुप से जागृत है ।

नारी के हाथ की हरी चूडियां तथा माथे पर लगा सिंदूर सुहागिन होने के प्रतीक हैं । जब पत्थर को सिंदूर लगाकर उसका श्रद्धापूर्वक पूजन किया जाता है, तब इस पत्थररूपी प्रतीक में देवत्व प्रकट हो जाता है, जो मनुष्य के लिए तारक सिद्ध होता है । प्रतीक, मौन की ही महापूजा है । प्रतीकों का पूजन अर्थात शब्दों के बिना भाव, भावना, श्रद्धा, निष्ठा और विश्‍वास व्यक्त करने की महान जीवनकला है ।

 

१. ॐकार

सभी मंत्रों में ‘ॐकार’ मुख्य प्रतीक है । ॐकार ईश्‍वर की प्रथम ध्वनि है । ईश्‍वर की प्रथम हुंकार है । ॐकार साक्षात ब्रह्म है । ॐ साढेतीन मात्राओं से बना है । इसमें पहली मात्रा ‘अ’कार, दूसरी मात्रा ‘उ’कार तथा तीसरी मात्रा ‘म’कार है । आधी मात्रा चंद्रबिंदु है । जीवन की तीन अवस्थाएं विश्‍व, तेजस, प्राज्ञ अर्थात ‘अ’कार, ‘उ’कार तथा ‘म’कार हैं । ये तीन मात्राएं मानवीय जीवनशक्ति के प्रतीक हैं । आधी मात्रा हमें पाप-पुण्य अथवा सुख-दुःख से अलिप्त रखती है । वेदमंत्रों का उच्चारण ॐकारपूर्वक किया जाना चाहिए । समग्र विश्‍व ॐकार में समाया है । ऐसे ॐकार का योगी लोग अखण्ड ध्यान करते हैं ।

 

२. कमल

भारतीय संस्कृति में कमल, एक प्रभावी प्रतीक है । जल में होकर भी जिसकी जीवनसुगंध मीलों दूर फैलती है, जिसकी डंठल सुदृृढ है और मुख कोमल । जिसका गुणसंग्रह सुखदायक है, ऐसा यह ‘कमल’, एक प्रतीक है । कमल कीचड में खिलता है और सभी को सुखदायक दर्शन देता है । जो मनुष्य विषयों के कीचड से कमलपत्र की भांति अलिप्त रहकर अनासक्त जीवन जीता है । वही खरा मनुष्य है ! गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कमल को जीवन का आदर्श माना है । कमल की भांति भारतीय संस्कृति की अनेक पंखुडियां हैं । कमल जीवनसौंदर्य का प्रतीक है । हस्तकमल, चरणकमल, हृदयकमल, नयनकमल अथवा वदनकमल, ये सभी कमल के प्रतीक के ही सुंदर नाम हैं ।

 

३. कलश

भारतीय वैदिक संस्कृति में ‘कलश’ का प्रतीक श्रेष्ठ है । मंदिर पर कलश शोभायमान है । प्रत्येक शुभकार्य में श्री गणेश एवं कलश का पूजन किया जाता है । ‘स्वस्तिक’ का चिह्न बनाते ही सूर्यदेवता उस पर आसनस्थ होते हैं । इसीप्रकार कलश को सजाते ही उसमें वरुणदेवता विराजमान होते हैं । कलश पूजन के समय कलश का जल शुद्ध एवं पवित्र बनता है । इसे ‘कुंभ’ भी कहते हैं । नई वास्तु में प्रवेश करते समय कुंभ रखने की प्रथा है । कुंभ पर श्रीफल (नारियल) रखने से उसकी शोभा दुगुनी होती है । कलश प्रतीक इस दुर्लभ मानवीय देह का प्रतीक है । शरीर पवित्र, सुंदर एवं दर्शनीय है । इसीप्रकार कलश पवित्र, सुंदर और दर्शनीय है । संतों के आगमन के समय श्रीफल युक्त कलश से उनका सम्मान किया जाता है । संत शिरोमणि ज्ञानेश्‍वर महाराज ने ज्ञानेश्‍वरी के १८ वें अध्याय को ‘कलशाध्याय’ कहा है ।

 

४. स्वस्तिक

भारतीय संस्कृति में ‘स्वस्तिक’ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । वेदों में भी स्वस्तिक मंत्रों का अत्यधिक महत्त्व है । कोई कार्य निर्विघ्नरुप से संपन्न होने हेतु स्वस्तिक पूजन किया जाता है । देवता की शक्ति स्वस्तिक में समाई है । एक खडी रेखा, एक आडी रेखा तथा ४ भुजाओं से स्वस्तिक सिद्ध होता है । ये ४ भुजाएं श्रीविष्णु की भुजाएं हैं । भगवान विष्णु ४ हाथों से ४ दिशाओं की रक्षा करते हैं । स्वस्तिक सर्वांग से सभी की रक्षा करता है । स्वस्तिक शांति, समृद्धि, पवित्रता एवं मंगलता का प्रतीक है । भारतीय शिल्पकला में भी स्वस्तिक का अत्यधिक महत्त्व है । स्वस्तिक पूजन से मनुष्य जीवन समृद्ध होता है । हिन्दू महिलाएं घर की दहलीज पर स्वस्तिक बनाती हैं । इससे घर में शांति आती है ।

 

५. श्रीफल (नारियल)

हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में अथवा कार्य के आरंभ में श्रीफल का अनन्य स्थान है । यह बाहर से कठोर, परंतु भीतर से मृदु है । वैभव अर्थात ‘श्री’ । किसी भी शुभकार्य में देवता के समक्ष श्रीफल अर्पण कर, उसे तोडते हैं । श्रीफल से ही गणेशपूजन किया जाता है ।

 

६. मिट्टी का घडा

मनुष्य देह की क्षणभंगुरता, मिट्टी का घडा सिखाता है । मृत व्यक्ति को अग्नि देते समय मिट्टी के घडे का उपयोग किया जाता है । नरदेह क्षणभंगुर है । वह मिट्टी से बनी है और मिट्टी में ही मिलनेवाली है । मिट्टी का घडा मनुष्य को आसक्ति विरहित बनने की सीख देता है । मनुष्य देह की नश्‍वरता का दर्शन करानेवाला मिट्टी का घडा ! यदि मनुष्य अपने जीवन का प्रत्येक क्षण जी सकेगा, तो उसके जीवन का कच्चा घडा पक्का हो जाएगा ।

 

७. श्री सरस्वतीदेवी एवं श्री लक्ष्मीदेवी

जैसे श्री सरस्वतीदेवी १४ विद्याओं एवं ६४ कलाओं की जननी हैं, उसीप्रकार सभी लौकिक एवं अलौकिक वैभव की जननी श्री लक्ष्मीदेवी हैं ।

 

८. अर्धनारी नटेश्‍वर

अर्धनारी नटेश्‍वर भारतीय संस्कृति का प्रधान जीवनोपयोगी प्रतीक है । स्त्री एवं पुरुष में अर्धनारी नटेश्‍वर का अखंड अंगीभूत स्वाभाविक आविर्भाव तथा आविष्कार दिखाई देता है । स्त्री का एक अंग पुरुषप्रधान, तो दूसरा अंग स्त्रीप्रधान होता है और पुरुष का आधा अंग स्त्रीप्रधान होता है; इसीलिए हम सभी अर्धनारी नटेश्‍वर ही हैं ।

 

९. देवद्रव्य

देवद्रव्य भी दैवी प्रतीक है । इस विश्‍व में मेरा कुछ भी नहीं, अपितु सब कुछ प्रभु का ही है । अपनी आय का एक भाग हमें ‘देवद्रव्य’, अर्थात ईश्‍वरीय कार्य के लिए ही अर्पण करना चाहिए ।’

– (संदर्भ : मासिक दीपावली, ‘हरि विजय’ २०११)

Leave a Comment