दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती अपने ही पिता द्वारा आयोजित यज्ञ समारोह में अपने पती शिव का अपमान सह न पाई । इस कारण यज्ञवेदी में कूदकर देवी सती ने अपना जीवन समाप्त किया । भगवान शिव को जितना क्रोध अपने अपमान का नहीं आया, उससे भी कई गुना अधिक दुःख सती की मृत्यु से हुआ । इस दुर्घटना से भगवान शिव अस्वस्थ हुए । उन्होंने सती की मृत देह को अपने कंधों पर लेकर प्रलयंकारी तांडव नृत्य आरंभ किया । इससे पूरा विश्व विनाश के मार्गपर आ पहुंचा । इस स्थिति को देखकर सभी देवी-देवताओं ने श्रीविष्णु के पास जाकर इस प्रलय को रोकने की प्रार्थना की । देवी-देवताओं की विनती से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से सती की देह ५१ टुकडों में धीर-धीरे खंडित की । इस प्रकार सती की देह के ५१ भाग हुए । जहां-जहां देवी सती की देह का अंश गिर रहा था, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए । इन ५१ शक्तिपीठों में से एक स्थान है, पाटलीपुत्र (पटना) की ग्रामदेवी ‘भगवती पटनेश्वरी’, जिनका यहां मंदिर है । यहां पर देवी सती की दाईं जांघ पडी थी, जिसका चिह्न आज भी यहां पाया जाता है ।
पटना (बिहार) में पटन देवी के २ मंदिर हैं । बडी पटन देवी और छोटी पटन देवी ! मान सिंह नामक राजा ने पहले पश्चिम द्वार से प्रवेश किया, इसलिए मंदिर ‘बडी पटन देवी मंदिर’ कहलाया । तत्पश्चात पूर्वद्वार से आकर मंदिर देखा, इसलिए वह छोटी पटनदेवी का मंदिर कहलाया । बडी पटन देवी के मंदिर में श्री लक्ष्मी, श्री सरस्वती एवं श्री काली की मूर्तियां हैं । यहां पर इनकी स्थापना किसने की इसकी कोई जानकारी नहीं है । छोटी पटन देवी मंदिर शिवपिंडी के रूप में है । विजय शंकर गिरी यहां के महंत हैं ।
सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ चार वर्ष से भी अधिक काल से भारत-भ्रमण कर, प्राचीन मंदिर, भवन, दुर्ग और अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के छायाचित्र इकट्ठा कर रही हैं । इसीलिए, हमें उनके घरबैठे दर्शन हो रहे हैं । इसके लिए, हम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करेंगे !
आइए, सभी देवियों को नमस्कार करें !