हिन्दू धर्म एवं हिन्दू राष्ट्र के कार्य के लिए त्याग
करना ही कालानुसार गुरुतत्त्व को अपेक्षित गुरुदक्षिणा है ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने एवं गुरुकार्य की वृद्धि के लिए त्याग करने का संकल्प लेने का दिन है । व्यापक स्वरूप का गुरुकार्य हिन्दू धर्म का कार्य है एवं वर्तमान कालानुसार व्यापक गुरुकार्य धर्मसंस्थापना का कार्य अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य है । अध्यात्म के अनेक अधिकारी संत यह कार्य कर रहे हैं । गुरुपूर्णिमा के दिन ऐसे संतों के मार्गदर्शन में हिन्दू धर्म एवं हिन्दू राष्ट्र के कार्य के लिए तन-मन-धन का त्याग करने का संकल्प करना ही कालानुसार गुरुतत्त्व को अपेक्षित गुरुदक्षिणा होगी ।
त्याग हिन्दू धर्म की सीख है । तन-मन-धन एवं आगे सर्वस्व का त्याग किए बिना आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती । तन का त्याग अर्थात शरीर से राष्ट्र एवं धर्म के लिए कार्य करना, मन का त्याग अर्थात नामस्मरण करना अथवा राष्ट्र एवं धर्म के कार्य का चिंतन करना तथा धन का त्याग अर्थात इस कार्य के लिए स्वयं का धन अर्पित करना । यह त्याग चरण-प्रति-चरण करने के उपरांत एक दिन सर्वस्व का त्याग करने की मन की तैयारी होती है । वर्तमान काल में सर्वस्व का त्याग अर्थात स्वयं का संपूर्ण जीवन हिन्दू धर्म एवं हिन्दू राष्ट्र के कार्य के लिए समर्पित करना है । धर्मनिष्ठ हिन्दुओं, साधकों एवं शिष्यों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए हिन्दू धर्म एवं हिन्दू राष्ट्र के कार्य के लिए अपनी क्षमता के अनुसार त्याग करने की बुद्धि हो, यह श्री गुरु के चरणों में प्रार्थना है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था.
श्री गुरु के प्रति निष्ठा, श्रद्धा एवं भक्ति बढाएं ! – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ
‘श्री गुरु के मार्गदर्शन में साधना करते समय साधक एवं शिष्य का ध्येय होता है आध्यात्मिक उन्नति करना । गुरु के प्रति निष्ठा अर्थात शिष्य की संदेहरहित अवस्था, गुरु के प्रति श्रद्धा अर्थात ‘गुरु के कारण मेरा परममंगल अवश्य होगा !’ यह दृढता से लगना । गुरु के प्रति भक्ति अर्थात गुरु को जो भाता है, वह भक्तिभाव से करना । गुरु को व्यापक धर्मकार्य प्रिय है । वह लगन से करना सच्ची ‘गुरुभक्ति’ है । यह कार्य करते समय कोई भी संदेह न रखना सच्ची गुरुनिष्ठा है एवं ‘यह धर्मकार्य परिपूर्ण करने से मेरी आत्मोन्नति निश्चित ही होगी’, यही ‘गुरु के प्रति’ श्रद्धा है ! इसीलिए गुरुपूर्णिमा से श्री गुरु के प्रति निष्ठा, श्रद्धा व भक्ति बढाएं ।’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी
हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए आवश्यक सद्गुण बढाएं ! – श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ
‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का काल समीप है; परंतु हम उसे सहजता से अनुभव कर पाएंगे, ऐसा नहीं है । उसके लिए ईश्वरभक्ति, सत् के लिए त्याग करने की तैयारी आदि सद्गुण हममें होने चाहिए ।
उसे संग्रहित करने के लिए गुरुपूर्णिमा जैसा अवसर नहीं है । गुरुपूर्णिमा के निमित्त एक सहस्र गुना कार्यरत गुरुतत्त्व का लाभ उठाने के लिए तन-मन-धन अर्पित कर इस उत्सव में सम्मिलित हों । गुरु से लगन से प्रार्थना करें कि ‘हमें हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में सम्मिलित करवा लें । गुरुकार्य में नित्य सम्मिलित हों एवं जीवन सार्थक कर लें !’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी