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‘सब्जीमंडी’ यह सर्वसामान्यों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है ! बहुतांश सभी लोग दैनंदिन रसोई बनाने के लिए लगनेवाली शाक-सब्जियां, फल इत्यादि के लिए मंडी जाते हैं । कई बार मंडी में ताजी शाक-तरकारी, रसीले फल इत्यादि या तो मिलते नहीं, या फिर वे बहुत मंहगे होते हैं । ऐसा अनेकों का अनुभव है । ऐसे समय पर ‘आप घर के घर ही में अपने लिए खेती कर सकते हैं’, ऐसा यदि कोई बताए, तो उसपर हमारा विश्वास नहीं होगा; परंतु यह संभव है । घर के लिए खेती करने के लिए खेती अथवा आंगन ही होना चाहिए, ऐसा नहीं है । घरेलु खेती करने के लिए जगह की भी समस्या नहीं है । यहां तक की छज्जे में (बाल्कनी में), छत पर अथवा खिडकी में भी इसप्रकार की घरेलु खेती करना संभव है ।
घर के लिए आवश्यक खेती करने हेतु खेत अथवा आंगन ही होना चाहिए, यह आवश्यक नहीं । घर के लिए आवश्यक खेती करने में ‘स्थान’ समस्या नहीं है । घर की बालकनी में, छत पर (टेरेस पर) अथवा खिडकी में भी घरेलु खेती की जा सकती है । भावी आपातकाल की पृष्ठभूमि पर इस प्रकार के प्रयोगों की अत्यधिक आवश्यकता है । त्रिकालज्ञानी संत एवं भविष्यवक्ताओं के बताए अनुसार आपातकाल आरंभ हो गया है । आगामी ५-६ वर्ष महाभयंकर आपातकाल का सामना करना होगा । तब आज के समान सब्जी मंडी में सब्जी उपलब्ध होगी और हम वहां तक जा पाएंगे, ऐसा कोई भी निश्चितरूप से नहीं बता सकता । अभी कोरोना के काल में ही सब्जी इत्यादि मिलने के संदर्भ में कितनी अडचनें आई, वस्तुओं के मूल्यों में कितनी वृद्धि हुई, इसका अनुभव अनेक लोगों को हुआ है । ऐसे में अपने घर में घर के लिए आवश्यक सब्जी, फल उगाना संभव हो, तो क्यों न उसके लिए प्रयास करें ? इससे घर की उत्कृष्ट सब्जी भी मिलेगी, साथ ही पैसे और श्रम की भी बचत होगी । वर्तमान में जैविक अथवा प्राकृतिक खेती के अंतर्गत छत पर खेती (टेरेस गार्डनिंग) की नई संकल्पना उदित हो रही है । इस लेख से हम अपने घर शाक-तरकारी कैसे उगाएं ? इस विषय में जानकार लेंगे ।
अ. घरेलु खेती के अंतर्गत कौनसे पौधे लगा सकते हैं ?
१. शाक-सब्जी एवं रसोईघर में उपयोगी
लाल भाजी, पालक, मेथी, धनिया, शिमला मिरची, मिरची, बैंगन, करेला, चिचडा, लौकी, कद्दू, भिंडी, गोभी, प्याज, आलू, टमाटर, गाजर, ककडी, बीट, मूली, सहजन की फली, कढीपत्ता, नीबू, गन्ना, पुदिना, लहसुन, अदरक ।
२. औषधि वनस्पतियां
तुलसी, घृतकुमारी, अडुसा, ब्राह्मी, शतावरी, सब्जा
३. फल के पौधे
संतरा, अमरूद (पेरू), नीबू, पपीता, आम, अंजीर
४. फूल के पौधे
गुलाब, गेंदा, लिली, चमेली, गुडहल, मोगरा (बेला) आदि ।
आ. गमले का चयन
छत पर रोपण करने के लिए गमले अथवा कंटेनर का उपयोग कर सकते हैं । गमले का निचला भाग (base) बहुत कम न हो । गमले का ऊपरी व्यास १२ इंच का हो, तो तल १० इंच का होना चाहिए । गमले की किनार अंदर की ओर न मुडी हो । गमले का आकार मटके समान न हो । संभवत: मिट्टी का गमला लें । वह उपलब्ध न हो, तो पत्रे अथवा प्लास्टिक का डिब्बा, प्लास्टिक की बालटी, बडी प्लास्टिक की थैली, प्लास्टिक की बोतल, प्लास्टिक के पूर्ण अथवा आधे कटे हुए ड्रम, लकडी की चौखट की कुंडी भी ‘कंटेनर’ के रूप में उपयोग की जा सकती है । छत पर बागवानी करने के लिए नर्सरी में ‘ग्रो बैग्ज’ मिलते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं । बाजार में भी ऐसे कंटेनर उपलब्ध होते हैं । हम यदि बाजार से कंटेनर खरीदनेवाले हों, तो वह हलके रंग के हों । इससे उसमें उष्णता अधिक नहीं खींची जाएगी ।
छत पर रोपण करते समय बहुतांश पौधों को गमलों में ही उगाएं । शाक-सब्जी अथवा जिनकी जडें छोटी हैं, ऐसे पौधे गमले में भी लगा सकते हैं । टमाटर, मूली, गाजर जैसे पौधे मध्यम आकार के गमलों में लगाएं । बडे पौधों के लिए बडे कंटेनर अथवा प्लास्टिक के / पत्रे के ड्रम (कंटेनर) आवश्यक होते हैं । जो बेल-लताओं के चढने के लिए छत की दीवार अथवा खडे पाईपों का भी उपयोग कर सकते हैं, जिससे उपलब्ध जगह का अधिकाधिक उपयोग कर सकेंगे ।
इ. गमले अथवा कंटेनर में छिद्र करना
हवा का आवागमन होता रहे, इसलिए गमले अथवा कंटेनर में छिद्र होने आवश्यक हैं । सर्वसाधारण प्लास्टिक का गमला हो, तो उसके तल पर ४-५ और आजूबाजू १०-१२ लगभग ४-५ इंच के अंतर पर भरपूर छिद्र करें । प्लास्टिक का डिब्बा अथवा बालटी का उपयोग कर रहे हों, तो उसमें भी छिद्र करवा लें । बाजार में मिलनेवाले ‘ग्रो बैग्ज’ आमतौर पर छिद्र सहित ही मिलते हैं ।
ई. गमला कैसे भरना है ?
गमला भरने की अलग-अलग पद्धतियां हैं । एक तो हमारे पास उपलब्ध मिट्टी गमले में डाल सकते हैं अथवा मिट्टी, कोकोपीट एवं खाद मिश्रण का उपयोग कर सकते हैं अथवा मिट्टी विरहित बागवानी भी कर सकते हैं । मिट्टीविरहित बागवानी करते समय गीले एवं सूखे कचरे से (सूखे पत्तों इत्यादि) बननेवाली कंपोस्ट खत मिट्टी में पर्यायी माध्यम के रूप में उपयोग की जाती है ।
जिस मिट्टी में सेंद्रिय कर्ब (कार्बन) अधिक होता है, जिससे मिट्टी में सतत पानी नहीं डालना पडता; इसलिए कि ऐसी मिट्टी पानी को रोके रखती है । लाल मिट्टी में अन्नद्रव्य अल्प होते हैं, इसलिए पानी नीचे तक बह आता है । इसके विपरीत काली मिट्टी में अन्नद्रव्य अधिक होते हैं, वह पानी को सोख लेती है इसलिए पानी अधिक लगता है । छत पर बागवानी करते समय जिस मिट्टी में अन्नद्रव्य अधिक और पानी कम झरता हो, ऐसी मिट्टी आवश्यक होती है । हम यदि काली मिट्टी का उपयोग कर रहे हों, तो उसमें नदी किनारे की रेती अथवा इमारत के पास से मुठ्ठीभर बालू धोकर उसे भी गमले में डालें ।
हम यदि लाल मिट्टी का उपयोग कर रहे हों, तो कोकोपीट (नारियल के भूसे से बनी प्राकृतिक एवं रोगकारक जीवाणुमुक्त भुसी (यह भुसी कुछ प्रक्रिया के पश्चात ईंट के आकार में भी उपलब्ध है ।) का उपयोग करें; कारण यह कि वह पानी रोककर रखती है । यदि हमारा घर समुद्र के निकट है, तो कोकोपीट का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं; इसलिए कि समुद्री किनारे के क्षेत्र में वातावरण में नमी होती है । इसलिए वहां कोकोपीट का उपयोग करने से, पानी का अधिक अंश मिलने पर पौधे मर सकते हैं ।
सर्वप्रथम गमले के तल पर नारियल की जटाएं भली-भांति फैलाएं । उस पर सूखी लकडियां सीधे खोंस दें । तदुपरांत उसमें डेढ से २ इंच सूखे पत्तों की (अपने परिसर के वृक्षों के सूखे पत्तों की सतह) सतह दबाकर बिठाएं और उस पर मिट्टी डालें । गमले के ऊपर का २ इंच जितना भाग छोड दें । फिर पौधे लगाकर पुन: सूखे पत्तों की सतह बिठाएं । फिर पौधे लगाकर पुन: सूखे पत्तों की सतह बिठाएं और उस पर थोडे से पानी का छिडकाव करें ।
केवल मिट्टी के स्थान पर कोकोपीट एवं खत का एकत्रित मिश्रण कर उसे माध्यम के रूप में उपयोग कर सकते हैं । कोकोपीट ४ से ५ घंटे पानी में भिगोकर, फिर पानी को निकालकर अथवा दोनों हाथों से दबाकर उसका पानी निकाल दें और उसे मिट्टी में मिला दें । इस प्रकार मिट्टी गमले में भरकर उसमें सूखा कचरा अथवा नीम के सूखे पत्तों की सतह दें । इस प्रकार कुंडी भर जाने पर उसमें हम पौधे लगा सकते हैं अथवा बीज अंकुरित होने के लिए लगा सकते हैं ।
भाग २ पढने के लिए भेट दें आपातकाल में आधार देनेवाली छतवाटिका (Terrace Gardening) भाग-२