अनुक्रमणिका
१. स्तोत्र शब्दकी परिभाषा
‘स्तूयते अनेन इति’ अर्थात् जिसके योगसे देवताका स्तवन किया जाए, उसे स्तोत्र कहते हैं।
२. स्तोत्रपठनसे होनेवाले लाभ
२ अ. वाणी शुद्ध होना एवं चैतन्यकी प्राप्ति होना
स्तोत्र संतोंकी वाणीद्वारा स्वयं सिद्ध होकर मानवके कल्याण हेतु निर्माण हुए हैं । इसलिए(ये) स्तोत्रपाठ करनेसे पठनकर्ताकी वाणी शुद्ध होती है तथा उसे चैतन्यका लाभ होता है।
२ आ. चैतन्यका ग्रहण तथा प्रक्षेपण होना
स्तोत्रके माध्यमसे प्रक्षेपित आघातात्मक नादतरंगोंमें पठनकर्ताके सर्व ओर विद्यमान रज-तमात्मक आवरणको छेदकर पठनकर्ताकी अंतःस्थ रिक्तिमें प्रवेश करनेकी क्षमता होती है । ये तरंगें पठनकर्ताकी पंचप्राणात्मक ऊर्जाको गति प्रदान कर पठनकर्ताद्वारा होनेवाली चैतन्य ग्रहण तथा प्रक्षेपणकी प्रक्रियामें सहायता करती है ।
२ इ. स्तोत्रपठनके कारण अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा होना
स्तोत्र किसी अंगरक्षकके समान पठनकर्ताकी रक्षाके लिए कार्य करता है । स्तोत्र ईश्वरकी तेजोमय शक्तिसे संबंधित होनेके कारण स्वयंप्रेरित शक्तिसे पठनकर्ताके सर्व(चारों) ओर सुरक्षाकवच बनाकर अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणसे उसकी रक्षा करते हैं । स्तोत्रोंकें अंतमें फलश्रुति दी जाती है। इसके पीछे रचयिताका संकल्प होता है । फलश्रुतिके पठनसेही पठनकर्ताको फलप्राप्ति होती है । ऋषि-मुनियोंद्वारा रचित विभिन्न देवताओंके विविध स्तोत्र हैं । ऐसेही प्रभु श्रीरामजीके विविध स्तोत्रोंमेसे एक है, श्रीरामरक्षास्तोत्र ।
३. राम रक्षा स्तोत्र का पठन
जिस स्तोत्रका पठन करनेवालोंका श्रीरामद्वारा रक्षण होता है, वह स्तोत्र है श्रीरामरक्षास्तोत्र । भगवान शंकरने बुधकौशिक ऋषिको स्वप्नमें दर्शन देकर, उन्हें रामरक्षा सुनाई और प्रातःकाल उठनेपर उन्होंने वह लिख ली । यह स्तोत्र संस्कृत भाषामें है । इस स्तोत्रकी फलश्रुतिमें बताया गया है, कि ‘जो इस स्तोत्रका पठन करेगा, वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी तथा विनयसंपन्न होगा’। इसके अतिरिक्त इस स्तोत्रमें श्रीरामचंद्रका यथार्थ वर्णन, रामायणकी रूपरेखा, रामवंदन, रामभक्तिस्तुति, पूर्वजोंको वंदन एवं उनकी स्तुति, रामनामकी महिमा इत्यादि विषय समाविष्ट हैं । इस स्तोत्रके नित्य पठनसे घरकी सर्व पीडा तथा भूतबाधा भी दूर होती है । श्रीरामरक्षास्तोत्रका विशिष्ट लयमें उच्चारण करना महत्त्वपूर्ण है ।
श्रीगणेशाय नमः । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिकऋषिः । श्रीसीतारामचन्द्रो देवता । अनुष्टुप् छन्दः । सीता शक्तिः । श्रीमत् हनुमान् कीलकम् । श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।
।। अथ ध्यानम् ।।
ध्यायेदाजानुबाहुन्, धृतशरधनुषम्, बद्धपद्मासनस्थम् पीतं वासो वसानन्, नवकमलदलस्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम् । वामाङ्कारूढसीता, मुखकमलमिलल्, लोचनन् नीरदाभम् नानाऽलङ्कारदीप्तन्, दधतमुरुजटा, मण्डलम् रामचन्द्रम् ।।
।। इति ध्यानम् ।।
चरितम् रघुनाथस्य, शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमक्षरम् पुंसाम्, महापातकनाशनम् ।।१।।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामम्, रामम् राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतञ्, जटामुकुटमण्डितम् ।।२।।
सासितूणधनुर्बाण, पाणिन् नक्तञ्चरान्तकम् । स्वलीलया जगत्त्रातुम्, आविर्भूतमजं विभुम् ।।३।।
रामरक्षाम् पठेत्प्राज्ञः, पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघवः पातु, भालन् दशरथात्मजः ।।४।।
कौसल्येयो दृशौ पातु, विश्वामित्रप्रियः श्रुती । घ्राणम् पातु मखत्राता, मुखं सौमित्रिवत्सलः ।।५।।
जिह्वां विद्यानिधिः पातु, कण्ठम् भरतवन्दितः । स्कन्धौ दिव्यायुध पातु, भुजौ भग्नेशकार्मुकः ।।६।।
करौ सीतापतिः पातु, हृदयञ् जामदग्न्यजित् । मध्यम् पातु खरध्वंसी, नाभिञ् जाम्बवदाश्रयः ।।७।।
सुग्रीवेशः कटी पातु, सक्थिनी हनुमत्प्रभुः । ऊरू रघूत्तमः पातु, रक्षःकुलविनाशकृत् ।।८।।
जानुनी सेतुकृत् पातु, जङ्घे दशमुखान्तकः । पादौ बिभीषणश्रीदः, पातु रामोऽखिलं वपुः ।।९।।
एताम् रामबलोपेताम्, रक्षां यः सुकृती पठेत् । स चिरायुः सुखी पुत्री, विजयी विनयी भवेत् ।।१०।।
पातालभूतलव्योम, चारिणश्छद्मचारिणः । न द्रष्टुमपि शक्तास्ते, रक्षितम् रामनामभिः ।।११।।
रामेति रामभद्रेति, रामचन्द्रेति वा स्मरन् । नरो न लिप्यते पापैर्, भुक्तिम् मुक्तिञ् च विन्दति ।।१२।।
जगज्जैत्रेकमन्त्रेण, रामनाम्नाऽभिरक्षितम् । यः कण्ठे धारयेत्तस्य, करस्थाः सर्वसिद्धयः ।।१३।।
वज्रपञ्जरनामेदं, यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञः सर्वत्र, लभते जयमङ्गलम् ।।१४।।
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने, रामरक्षामिमां हरः । तथा लिखितवान् प्रातः, प्रबुद्धो बुधकौशिकः ।।१५।।
आरामः कल्पवृक्षाणां, विरामः सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानाम्, रामः श्रीमान् स नः प्रभुः ।।१६।।
तरुणौ रूपसम्पन्नौ, सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ, चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ।।१७।।
फलमूलाशिनौ दान्तौ, तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ, भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ।।१८।।
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां, श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । रक्षःकुलनिहन्तारौ, त्रायेतान् नौ रघूत्तमौ ।।१९।।
आत्तसज्जधनुषा, विषुस्पृशा-वक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः,पथि सदैव गच्छताम् ।।२०।।
सन्नद्धः कवची खड्गी, चापबाणधरो युवा । गच्छन्मनोरथोऽस्माकम्, रामः पातु सलक्ष्मणः ।।२१।।
रामो दाशरथिः शूरो, लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः, कौसल्येयो रघूत्तमः ।।२२।।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः, पुराणपुरुषोत्तमः । जानकीवल्लभः श्रीमान्, अप्रमेयपराक्रमः ।।२३।।
इत्येतानि जपन्नित्यम्, मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः । अश्वमेधाधिकम् पुण्यं, सम्प्राप्नोति न संशयः ।।२४।।
रामन् दूर्वादलश्यामम्, पद्माक्षम् पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्, न ते संसारिणो नरः ।।२५।।
रामं लक्ष्मणपूर्वजम् रघुवरम्, सीतापतिं सुन्दरम् काकुत्स्थङ् करुणार्णवङ् गुणनिधिं, विप्रप्रियन् धार्मिकम् । राजेन्द्रं सत्यसन्धन्, दशरथतनयं, श्यामलं शान्तमूर्तिम् वन्दे लोकाभिरामम्, रघुकुलतिलकम्, राघवम् रावणारिम् ।।२६।।
रामाय रामभद्राय, रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय, सीतायाः पतये नमः ।।२७।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणम् भव राम राम ।।२८।।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणम् प्रपद्ये ।।२९।।
माता रामो, मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो, मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वम् मे, रामचन्द्रो दयालुर्, नान्यञ् जाने, नैव जाने न जाने ।।३०।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य, वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य, तं वन्दे रघुनन्दनम् ।।३१।।
लोकाभिरामम् रणरङ्गधीरम्, राजीवनेत्रम् रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपङ् करुणाकरन् तम्, श्रीरामचन्द्रं शरणम् प्रपद्ये ।।३२।।
मनोजवम् मारुततुल्यवेगञ्, जितेन्द्रियम् बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये ।।३३।।
कूजन्तम् रामरामेति, मधुरम् मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां, वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ।।३४।।
आपदामपहर्तारन्, दातारं सर्वसम्पदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामम्, भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।३५।।
भर्जनम् भवबीजानाम्, अर्जनं सुखसम्पदाम् । तर्जनं यमदूतानाम्, रामरामेति गर्जनम् ।।३६।।
रामो राजमणिः सदा विजयते, रामम् रमेशम् भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू, रामाय तस्मै नमः । रामान्नास्ति परायणम् परतरम्, रामस्य दासोऽस्म्यहम् रामे चित्तलयः सदा भवतु मे, भो राम मामुद्धर ।।३७।।
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यम्, रामनाम वरानने ।।३८।।
।। इति श्रीबुधकौशिकविरचितं, श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
।। श्रीसीतारामचन्द्रार्पणमस्तु ।।
४. राम रक्षा स्तोत्र का पठन किस प्रकार किया जाता है ?
जब निर्धारित लय एवं सुरमें रामरक्षास्तोत्रपाठ किया जाता है, तब एक विशिष्ट शक्ति निर्माण होती है ।
५. राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करनेसे हुई एक अनुभूति
यह अनुभूति है, महाराष्ट्रके मिरज नगर (शहर) की श्रीमती स्मिता कानडेकी ।
‘‘दिनांक २७ मार्च २००७ को श्री राम नवमीके दिन श्री रामरक्षा का पठन करते समय प्रत्येक शब्दके उच्चारणसे क्या अनुभव हो रहा है यह मैं देख रही थी । उस समय मेरा मन निर्विचार हो गया था । और मेरे शरीरके अंदर एवं बाहर प्रकाश है ऐसा अनुभव हो रहा था । तब शब्द मानों समाप्त हो गए थे एवं उनमेंसे प्रकट होनेवाला भाव ही अनुभव हो रहा था । रामरक्षा में कौशल्या माता शब्दसे वात्सल्य भाव परब्रह्म शब्दसे चैतन्य सीता शब्दसे श्री रामसमान प्रीति प्रकट हो रही थी । वैसे ही श्री राम यह केवल शब्द न होकर वह मेरे संपूर्ण शरीर में समा गया है ऐसा मुझे लग रहा था ।’’
यह अनुभूति सुनकर रामरक्षास्तोत्रका पठन करनेसे होनेवाले लाभ हमारे समझमें आए होंगे ।
Ram ki mahima Nirali hai
Vichar matra se samsya Hal Kar dete h aisa anubhav Kiya hai
Apko sadhuwad
Please keep it up!