माघ स्नान अर्थात माघ माह में पवित्र तीर्थस्थलों पर जलस्त्रोतों में किया स्नान । ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य एवं अन्य सर्व देवता माघ माह में विविध तीर्थक्षेत्रों में आकर वहां स्नान करते हैं । इसलिए इस काल में माघ स्नान करने के लिए कहा है ।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के चौदहवे पीढी में महाराज भगीरथ हुए । पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन से मां गंगा ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर महाराज भागीरथ के पीछे-पीछे कपिल ऋषि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थी । इसलिए माघ स्नान का महत्व है ।
माघ स्नान की अवधि
पद्मपुराण एवं ब्रह्मपुराण के अनुसार माघ स्नान का आरंभ भारतीय कालगणना के शालिवाहन शक संवत्सरानुसार पौष शुक्ल पक्ष एकादशी को होता है एवं माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी को उसकी समाप्ति होती है ।वर्तमान की प्रथानुसार माघस्नान का आरंभ पौष पूर्णिमा को किया जाता है एवं माघ पूर्णिमा को उसकी समाप्ति होती है । इसके अनुसार अंग्रेजी कालगणनानुसार माघ स्नान सामान्यत: जनवरी-फरवरी माह में होता है । २०२४ में माघ स्नान का अवधि २५ जनवरी – २४ फरवरी तक है ।
माघ स्नान का महत्त्व
माघ स्नान के कारण आध्यात्मिक शक्ति मिलती है एवं शरीर निरोगी होता है !
माघ स्नान के कारण सभी पापों से मुक्ति मिलती है !
माघ स्नान के कारण सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति एवं मोक्षप्राप्ति होती है !
माघस्नान के लिए पवित्र जलस्त्रोत
माघ माह में प्रयाग, वाराणसी, नैमिषारण्य, हरिद्वार, नासिक इत्यादि पवित्र तीर्थक्षेत्रों के जलस्त्रोतों में स्नान किया जाता है । कन्याकुमारी एवं रामेश्वरम् जैसे तीर्थक्षेत्रों के स्थान पर किया गया स्नान भी धर्मशास्त्रानुसार उच्चकोटि के माने जाते हैं । इसके साथ ही राजस्थान के पुष्कर सरोवर में किया गया स्नान भी पवित्र है । इसके अतिरिक्त भारत के विविध राज्यों में अनेक पवित्र तीर्थक्षेत्र हैं । वहां भी लोग माघ माह में स्नान करने के लिए आते हैं ।
माघ स्नान के लिए उपयुक्त दिवस
‘संपूर्ण माघ माह में पवित्र जलस्त्रोतों में स्नान करें’, ऐसे बताया है; परंतु ऐसा करना संभव न हो, तो माघ माह में किसी भी ३ दिन स्नान करें । प्रयाग तीर्थक्षेत्र में तीन बार स्नान करने का फल दस सहस्र अश्वमेध यज्ञ करने से मिलनेवाले फल से भी अधिक होता है । तीन दिन स्नान करना संभव न होने पर माघ माह के किसी भी एक दिन तो माघ स्नान अवश्य करें । कुछ विशिष्ट तिथियों पर किया हुआ माघ स्नान विशेष फलदायी होता है । ये तिथियां आगे दिए अनुसार हैं : मकरसंक्रांत, पौष पूर्णिमा, पौष अमावास्या अर्थात मौनी अमावास्या, माघ शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात वसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा एवं महाशिवरात्र ।
यहां एक महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि मकरसंक्रांत का त्योहार प्रत्येक वर्ष माघ स्नान की कालावधि में आएगा, ऐसा नहीं है । इसके साथ ही महाशिवरात्रि भी माघ पूर्णिमा के उपरांत आती है; परंतु इन दोनों दिनों पर किया गया स्नान भी माघ स्नान में ही अंतर्भूत किया जाता हैं और उतना ही उपयुक्त एवं पवित्र भी माना जाता हैं ।
माघ स्नान का योग्य समय
सूर्योदय से पूर्व स्नान करना उत्तम माना जाता है । नारदपुराण के अनुसार माघ माह में ब्राह्ममुहूर्त पर, अर्थात सवेरे साढे तीन से चार बजे तक स्नान करने से सर्व महापातक दूर हो जाते हैं एवं प्राजापत्य यज्ञ करने का फल मिलता है । सूर्योदय के उपरांत किया गया स्नान आध्यात्मिक दृष्टि से अल्प लाभदायी अथवा कनिष्ठ माना जाता है ।
माघ स्नान के उपरांत सूर्य को अर्घ्य देने का महत्त्व
शास्त्र में माघ स्नान के उपरांत सूर्य को अर्घ्य देने के लिए कहा है । अर्घ्य देना, अर्थात अपनी अंजुली में पानी लेकर उसे सूर्यदेव को अर्पण करना । पद्मपुराणानुसार माघ माह में प्रातःकाल स्नान कर संपूर्ण विश्व को प्रकाश देनेवाले भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का अनन्य महत्त्व है । इसीलिए सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए एवं परमकृपालु जगदीश्वर की कृपा संपादन करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करने के उपरांत सूर्यमंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए । सूर्यमंत्र इसप्रकार है –
भास्कराय विद्महे । महद्द्युतिकराय धीमहि ।
तन्नो आदित्य प्रचोदयात ॥
अर्थ : तेज के आगर ऐसे सूर्य को हम जानते हैं । अत्यंत तेजस्वी एवं सभी को प्रकाशमान करनेवाले सूर्य का हम ध्यान करते हैं । यह आदित्य हमारी बुद्धि को सत्प्रेरणा दे ।
माघ माह में दान का महत्त्व एवं दान देने योग्य वस्तु
महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा है कि जो माघ में ब्राह्मणों को तिल का दान करेगा, उसे जंतुओं से भरे हुए नरक के दर्शन नहीं करने होंगे । – महाभारत, अनुशासन पर्व
माघ माह में यथाशक्ति गुड, ऊनी वस्त्र, रजाई, पादत्राण (चप्पलें) समान ठंड से रक्षा करनेवाली अन्य वस्तुओं का दान कर कहे ‘माधवः प्रीयताम् ।’ अर्थात ‘भगवान श्रीविष्णु की प्रीति एवं कृपा प्राप्त हो, इसलिए दान कर रहा हूं ।’
धर्मशास्त्र के अनुसार इस अवधी में किए गए दान, जप और धार्मिक अनुष्ठानों का बहुत महत्व होता है । सनातन संस्था के आध्यात्म प्रसार के कार्य के लिए दान देकर सहायता करें । वर्तमान में हम निम्नलिखित आवश्यक वस्तुओं के लिए धन इकट्ठा कर रहे हैं –
INR 51,00,000
अन्नदान
प्रति माह 1000 साधकों को 2 समय का आहार देने के लिए धान, सब्जियां, मसाले आदि
INR 9,10,000
चिकित्सकीय संसाधन
रुग्ण साधक एवं बुजुर्गों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए डिफाइब्रिलेटर, बीपी उपकरण, ईसीजी ट्रॉली आदि
INR 32,00,000
रसोई उपकरण
भोजन बनाने के लिए रोटी मशीन, आटा गूंदने का यंत्र, बडे बर्तन आदि
INR 10,00,000
विद्युत उपकरण
सनातन के आश्रमों के लिए वाटर फिल्टर, वॉशिंग मशीन, गीजर आदि
INR 65,00,000
कंप्यूटर हार्डवेयर
पुस्तकों और वेबसाइट प्रकाशन सेवा के लिए आवश्यक सर्वर, नेटवर्क स्विच, सॉफ्टवेयर लाइसेंस आदि
INR 33,00,000
परिवहन हेतु
अध्यात्म प्रसार के लिए इलेक्ट्रिक 2-व्हीलर, इलेक्ट्रिक 4-व्हीलर, गाडियों के लिए इंजन ऑयल, टायर, बेल्ट आदि
तीर्थक्षेत्रों पर जाकर माघ स्नान करना संभव न हो, तो क्या करें ?
प्राकृतिक जलस्त्रोत में स्नान करें ।
माघ माह में ऐसी विशेषता है कि इस काल में प्रत्येक प्राकृतिक जलस्त्रोत गंगा समान पवित्र होता है । माघ स्नान के लिए प्रयाग, वाराणसी इत्यादि स्थान पवित्र माने गए हैं; परंतु ऐसे स्थानों पर जाकर स्नान करना संभव न हो, तो हमारे निकट जो भी नदी, तालाब, कुंआं जैसे किसी भी प्राकृतिक जलस्त्रोत में स्नान करें ।
घर में माघ स्नान कैसे करें ?
पवित्र जलाशय में माघ स्नान करना संभव न हो, तो माघ स्नान के लिए रात में घर की छत पर मिट्टी की मटकी (घडे) में भरकर रखे गए अथवा दिन भर सूर्य-किरणों में गर्म हुए पानी से स्नान करें । घर में माघ स्नान करने के लिए सवेरे शीघ्र उठकर गंगा, यमुना, सरस्वती इत्यादि पवित्र नदियों का स्मरण कर, स्नान के पानी में उनका आवाहन करें । तदुपरांत उस जल से स्नान करें । तदुपरांत भगवान श्रीविष्णु का स्मरण कर उनका पंचोपचार पूजन करें । इसके पश्चात ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ यह नामजप अधिकाधिक करें । संभव हो तो उस दिन उपवास करें । इसके साथ ही अपनी पहले उल्लेखित वस्तुओं का दान करें ।
माघ मास में कल्पवास का महत्त्व
‘कल्प’ अर्थात वेदाध्ययन, मंत्रपठन एवं यज्ञादि कर्म । पुराणों में बताए अनुसार माघ माह में पवित्र नदियों के संगम के तट पर निवास कर इन धार्मिक कर्म करनेवाले को ‘कल्पवास’ कहते हैं । शास्त्र में कहा है कि भक्तिभाव से कल्पवास करनेवाले को सद्गति प्राप्त होती है । एक माह चलनेवाला पवित्र माघ स्नान मेला उत्तरप्रदेश के प्रयाग में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है । इस मेले को ‘कल्पवास’ भी कहते हैं ।
कल्पवास में प्रत्येक दिन प्रातःकाल स्नान, अर्घ्य, यज्ञ इत्यादि करने के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन देते हैं । विविध धार्मिक कथा-प्रवचन सुनते हुए पूर्ण दिन सत्संग में व्यतीत करते हैं । इस कालावधि में स्वयं को सर्व भौतिक सुखों से दूर रखा जाता है । इस कालावधि में झोपडी में रहते हैं और भूमि पर भूसी फैलाकर उसपर एक चटाई बिछाकर सोते हैं ।
भारतीय संस्कृति में विभिन्न त्योहारों को मनाने के पीछे के गहरा अर्थ समझकर हम उन्हें मनाने से अधिक आध्यात्मिक लाभ उठा सकते हैं। ऐसी ही उपयोगी जानकारी जानने के लिए…
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संदर्भ ग्रंथ
तीर्थक्षेत्र मानवजातिका उद्धार करनेवाले परमस्थान हैं । इसीलिए हिन्दू धर्म और संस्कृति में तीर्थक्षेत्र एवं तीर्थयात्रा का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।इसकी जानकारी देनेवाला यह ग्रंथ अवश्य पढें ।
यहां पर राष्ट्र के संदर्भ में धर्म के संदर्भ में हमारे धर्म में आने वाले त्योहार के संदर्भ में आयुर्वेद के संदर्भ में जीवन की प्रत्येक समस्या के संदर्भ में जो जानकारी जो ज्ञान उपलब्ध है वह बहुत उच्च श्रेणी का है क्योंकि सामाजिक स्थल पर किसी विषय में जानकारी प्राप्त करने पर वह सही है या किसी ने केवल अपनी प्रसिद्धि के लिए डाली है ऐसा संदेह मन में निर्माण होता है किंतु सनातन संस्था की इस जालस्थल पर हमने जो पढ़ा वो पढ़कर मन और बुद्धि को कोई संदेह ना होकर अंतर मे आनंद हुआ