कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री विष्णु ने भगवान कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण किया । वह दिन था श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी । भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि के समय हुआ, जब रोहिणी नक्षत्र था और चंद्र वृषभ राशि में था । इस दिन श्री कृष्ण का तत्त्व पृथ्वी पर नित्य की तुलना में १००० गुना अधिक कार्यरत होता है । इसलिए इस दिन कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ का जाप समान अन्य कृष्ण की उपासना भावपूर्ण रूप से करने पर हमें उसका अधिक लाभ मिलता है ।
गोकुलाष्टमी को दिनभर उपवास रख, रात्रि बारह बजे एक पालने में बालकृष्ण का जन्म मनाया जाता है । उसके उपरांत प्रसाद ग्रहण कर उपवास छोडते हैं अथवा दूसरे दिन सवेरे दहीकाला का प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं । उसके उपरांत प्रसाद ग्रहण कर उपवास छोडते हैं अथवा दूसरे दिन सवेरे दहीकाला का प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं । विभिन्न खाद्यपदार्थ – दही, दूध, मक्खन, इन सबके मिश्रण को काला कहते हैं ।
भगवान श्री कृष्ण जन्म का समय रात्रि १२ होने के कारण उससे पूर्व जन्माष्टमी पूजन की तैयारी कर लें ।
कृष्ण जन्माष्टमी की पूजाविधि
मध्यरात्रि १२ बजे, कृष्ण जन्म के उपरांत श्री कृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र की पूजा करें । जिन्हे भगान कृष्ण की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव हो, उन्होंने वैसी पूजा करनी चाहिए । षोडशोपचार पूजन का संपूर्ण विधि पढने हेतु,
पंचोपचार पूजन : जिन्हे भगवान कृष्ण की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव नहीं है, वे ‘पंचोपचार पूजा’ कर सकते है । पूजन करते समय ‘सपरिवाराय श्रीकृष्णाय नमः ।’ का नाममंत्र कहतो हुए एक एक उपचार भगवान को अर्पण करना चाहिए । भगवान कृष्ण को दही-पोहे और मक्खन का भाेग चढाए । उसके उपरांक भगवान कृष्ण की आरती करें ।
(पंचोपचार पूजा अर्थात गंध, हलदी-कुमकुम, पुष्प, धूप, दीप तथा भोग लगाना इस क्रम से पूजा करना ।)
भगवान कृष्ण की मानसपूजा करना
यदि आपको किसी कारणवश भगवान कृष्ण की पूजा करना संभव न हों, तो भगवान की ‘मानसपूजा’ करें । ‘मानसपूजा’ अर्थात प्रत्यक्ष पूजा करना संभव न होने से पूजाविधि के सर्व उपचार मानसरूप से (मन में कल्पना कऱा) श्री कृष्ण को अर्पित करना ।)
जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के नाम का जाप करें
रात्रि को कृष्ण भगवान के जन्म के समय पूजाविधि करने के उपरांत, थोडे समय के लिए भगवान कृष्ण के नाम का जाप करें – ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’
पूजा, आरती, भजन इत्यादि उपासनापद्धतियों से देवता के तत्त्व का लाभ मिलता है; परंतु इन सर्व उपासनाओं काे स्थल, काल की मर्यादा होती है । देवता के तत्त्व का लाभ निरंतर प्राप्त होने के लिए, देवता की उपासना भी निरंतर करनी पडती है । ऐसी निरंतर हो पानेवाली उपासना एक ही है और वह है नामजप । कलियुग के लिए नामजप सरल एवं सर्वोत्तम उपासना है ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥ : कलिसंतरणोपनिषद् कृष्णयजुर्वेद में यह है तथा इसे हरिनामोपनिषद् भी कहते हैं । ये सोलह शब्द जीव के जन्म से मृत्यु तक की सोलह कलाओं से (अवस्थों से) संबंधित हैं एवं यह मंत्र आत्मा पर पडे माया के आवरण का नाश करता है ।
भगवान श्री कृष्ण को प्रार्थना करें
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में दिए हुए ‘न मे भक्तः प्रणश्यति ।’ अर्थात ‘मेरे भक्त का नाश नहीं होता है’ इस वचन का स्मरण कर स्वयं में ‘अर्जुन को समान निस्सीम भक्ति निर्माण हों’, इस हेतु भगवान कृष्ण को मन से प्रार्थना करें ।’
कालानुसार आवश्यक उपासना
आध्यात्मिक उन्नति हेतु स्वयं उपासना तथा धर्माचरण करना अर्थात व्यष्टि साधना । समाज की सात्त्विकता बढे, इस हेतु समाजको भी साधना एवं धर्माचरण करनेके लिए प्रेरित करना अर्थात समष्टि साधना । श्रीकृष्ण की उपासना परिपूर्ण ढंग से होनेके लिए श्रीकृष्णभक्तों को व्यष्टि एवं समष्टि दोनों प्रकार की साधना करना आवश्यक है ।
भगवान श्रीकृष्ण का अनादर रोकें !
वर्तमान में विविध प्रकार से देवताओं का अनादर हो रहा है । व्याख्यान, पुस्तक, नाटक-चलचित्र, उत्पाद आदि के माध्यम से देवताओं का अनादर किया जाता है ।
१. जिन विज्ञापनों व कार्यक्रमों में देवताओं का अनादर किया गया हो, उन उत्पादों, समाचार-पत्रों एवं कार्यक्रमों का, उदा. नाटकों का बहिष्कार कीजिए ! अपनी धार्मिक भावना आहत होने का लिखित परिवाद (शिकायत) पुलिस थाने में करें !
२. देवताओं की वेशभूषा धारण कर भीख मांगनेवालों को रोकिए !
उपरोक्त जानकारी सनातन के ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’ ग्रंथ में दी गई है । नागपंचमी समान अन्य त्योहारों की जानकारी देनेवाला यह ग्रंथ अवश्य पढें ।
हरे कृष्णा