योगराज गुग्गुलु उत्तम वातशामक औषधि है ।
१. गुणधर्म एवं संभावित उपयोग
‘यह उत्तम वातशामक औषधि है । विकारों में इसका संभावित उपयोग आगे दिया है; प्रकृति, प्रदेश, ऋतु एवं अन्य विकारों के अनुसार उपचारों में परिवर्तन हो सकता है । इसलिए वैद्यों के मार्गदर्शन में ही औषधि लें ।
उपयोग | औषधि लेने की पद्धति | अवधि |
---|---|---|
वात के विकार, पक्षाघात (शरीर का एक भाग शक्तिहीन होना), हाथ कांपना, चक्कर आना, उच्च रक्तचाप, मोटापा, आमवात (जोडों में जकडन, सूजन एवं वेदना होना) तथा हाथ-पैर में वेदना | दिन में २ – ३ बार २ – २ गोलियां गुनगुने पानी के साथ लें । | १ से ३ मास |
२. सूचना
अ. गोली चबाकर अथवा चूर्ण बनाकर लेने से उसकी परिणामकारकता बढती है ।
आ. आयुवर्ग ३ से ७ के लिए चौथाई एवं ८ से १४ के लिए गोलियों का चूर्ण आधी मात्रा में लें ।’
३. औषधि का सुयोग्य परिणाम होने हेतु यह न करें !
मैदा और बेसन के पदार्थ; खट्टे, नमकीन, अति तैलीय और तीखे पदार्थ, आईस्क्रीम, दही, पनीर, चीज, बासी, असमय और अति भोजन, धूप में घूमना तथा रात्रि जागरण
४. औषधि लेते समय उपास्य देवता से प्रार्थना करें !
हे देवता, यह औषधि मैं आपके चरणों में अर्पण कर आपका ‘प्रसाद’ समझकर ग्रहण कर रहा हूं । इस औषधि से मेरे विकार दूर होने दें ।
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (११.६.२०२१)