लशुनादि वटी एक उत्तम पाचक औषधि है ।
१. गुणधर्म एवं संभावित उपयोग
‘यह एक उत्तम पाचक औषधि है । विकारों में इसका संभावित उपयोग आगे दिया है; प्रकृति, प्रदेश, ऋतु एवं अन्य विकारों के अनुसार उपचारों में परिवर्तन हो सकता है । इसलिए वैद्यों के मार्गदर्शन में ही औषधि लें ।
उपयोग | औषधि लेने की पद्धति | अवधि |
---|---|---|
अ. मुख में स्वाद न रहना, भूख न लगना, अपचन, भोजन के उपरांत पेट भारी होना, पेट में गैस होना, बार-बार डकारें आना, हिचकी आना एवं शरीर ठंडा पडना | दिन में २-३ बार २-२ गोलियां चूसकर खाएं अथवा गुनगुने पानी अथवा छाछ के साथ लें । | १ – २ दिन |
आ. उलटी एवं अतिसार (दस्त) | आधे घंटे के अंतर से दिनभर में अधिकाधिक ५ बार २ – २ गोलियां चूसकर खाएं । | तात्कालिक |
इ. कृमि (पेट में कीडे) | दोनों समय भोजन के आधे घंटे पहले २ गोलियां तथा २ गोलियां गन्धर्व हरीतकी वटी अथवा १ चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें । | १५ दिन |
२. सूचना
अ. आयुवर्ग ३ से ७ के लिए चौथाई एवं ८ से १४ के लिए चूर्ण आधी मात्रा में लें ।
आ. उष्णता के लक्षण (उष्ण पदार्थ न सह पाना, मुंह में छाले होना, देह में जलन होना, मूत्रमार्ग में जलन होना, देह पर फोडे-फुंसी होना, चक्कर आना आदि) हों एवं मल कडा होता हो, तो इस औषधि का उपयोग न करें ।
इ. यह औषधि उष्ण होने के कारण, ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु के उपरांत आनेवाली शरद ऋतु (अक्टूबर हीट) के काल में इस औषधि का उपयोग सावधानी से करें ।
ई. इन गोलियों में सेंधा नमक है, इसलिए यह अधिक समय वायु के संपर्क में आने पर वायु की आर्द्रता से गीली होकर खराब होती हैं । वैसा न हो, इसलिए डिब्बी का ढक्कन कसकर लगाएं ।’
३. औषधि का सुयोग्य परिणाम होने हेतु यह न करें !
मैदा और बेसन के पदार्थ; खट्टे, नमकीन, अति तैलीय और तीखे पदार्थ, आईस्क्रीम, दही, पनीर, चीज, बासी, असमय और अति भोजन, धूप में घूमना तथा रात्रि जागरण
४. औषधि लेते समय उपास्य देवता से प्रार्थना करें !
हे देवता, यह औषधि मैं आपके चरणों में अर्पण कर आपका ‘प्रसाद’ समझकर ग्रहण कर रहा हूं । इस औषधि से मेरे विकार दूर होने दें ।
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (११.६.२०२१)