आंवला चूर्ण का गुणधर्म शीतल है तथा यह वात, पित्त एवं कफ का संतुलन बनाती है ।
१. गुणधर्म एवं संभावित उपयोग
‘इस औषधि का गुणधर्म शीतल है तथा यह वात, पित्त एवं कफ का संतुलन बनाती है । विकारों में इसका संभावित उपयोग आगे दिया है; प्रकृति, प्रदेश, ऋतु एवं अन्य विकारों के अनुसार उपचारों में परिवर्तन हो सकता है । इसलिए वैद्यों के मार्गदर्शन में ही औषधि लें ।
उपयोग | औषधि लेने की पद्धति | अवधि |
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अ. केश झडना, असमय श्वेत होना | आंवला, गिलोय एवं गोखरू का समभाग १ चम्मच मिश्रण सवेरे खाली पेट गुनगुने पानी में लें । फिर आधा घंटा कुछ खाएं-पीएं नहीं । | ३ माह |
आ. केश काले होनेके लिए | सवेरे खाली पेट १ चम्मच आंवला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें । इसके उपरांत आधे घंटे तक कुछ भी न खाएं-पीएं । इसके साथ सप्ताह में २ बार एक लोहे की कडाही में २ से ४ चम्मच आंवला चूर्ण थोडे से पानी में रातभर भिगोकर रखें । सवेरे यह काला हुआ मिश्रण केश में आधा घंटा लगाकर रखें । तदुपरांत केश धोएं । | सदैव |
इ. सिर दर्द | सुबह खाली पेट १ चम्मच आंवला चूर्ण १ चम्मच घी एवं १ चम्मच मिश्री का मिश्रण खाएं । | ३ से ५ दिन |
ई. सिर गरम होना | जब कष्ट हो तब पर्याप्त मात्रा में आंवला चूर्ण दूध में पीसकर ललाट पर लेप लगाएं । एक घंटे के बाद लेप गुनगुने पानी से धो लें । | तात्कालिक |
उ. नेत्रविकार | रात को सोते समय १ चम्मच चूर्ण आधा चम्मच घी व १ चम्मच मधु के साथ लें । | ३ माह |
ऊ. नाकसे रक्तस्राव होना | सुबह एवं सायंकाल आधा चम्मच आंवला चूर्ण आधी कटोरी पानी में मिलाकर लें, साथही पर्याप्त मात्रा में आंवला चूर्ण घी में भूनकर उसमें छाछ मिलाकर ललाट पर गाढा लेप करें ।यह लेप १ घंटे के उपरांत पानी से धो लें । | ३ से ५ दिन |
ए. गला सूखना | १० मनुका एवं १ चम्मच आंवला चूर्ण एकत्रित पीसकर उसकी चटनी बनाएं । इसकी छोटी गोलियां बनाकर वह दिन में ३- ४ बार चूसें । | ७ दिन |
ऐ. पित्त के कारण उलटियां होना | १ चम्मच आंवला चूर्ण, आधा चम्मच चंदन पाउडर या चंदन काष्ठ घिसकर मिला लेप एवं आधा चम्मच मधु (शहद) का मिश्रण चाटकर खाएं । | तात्कालिक |
ओ. कोष्ठबद्धता | दोनों भोजन से पूर्व १ चम्मच चूर्ण आधी कटोरी गुनगुने पानी के साथ लें । | १५ दिन |
औ. मधुमेह | सवेरे एवं सायं. १ चम्मच आंवला चूर्ण एवं १ चम्मच गीली हलदी के टुकडे सुखाकर बनाया चूर्ण एक कटोरी पानी के साथ लें । तदुपरांत आधे घंटे तक कुछ खाएं-पीएं नहीं । | ३ मास |
अं. मूत्र खुलकर न होना, मूत्रमें जलन होना, मूत्र अल्प मात्रामें होना एवं श्वेतप्रदर (स्त्रियों के योनीमार्ग से श्वेत स्राव होना) | १ चम्मच आंवला चूर्ण रात्रि पानी में भीगाकर उसमें सुबह आधा चम्मच जीरे का चूर्ण एवं १ चम्मच मिश्री डालकर मिश्रण बना लें । इसी प्रकार सुबह आंवला चूर्ण भीगाकर सायंकाल में लें । | ५ से ७ दिन |
क. हाथ-पैर में जलन होना, चक्कर आना, आंखों के सामने अंधेरा छाना तथा मासिक धर्मके समय अधिक रक्तस्राव होना | दिन में २ – ३ बार १ चम्मच आंवला चूर्ण एवं १ चम्मच मिश्री १ कटोरी पानी में मिलाकर पीएं । | ७ दिन |
ख. खुजली | दिन में २ – ३ बार पर्याप्त मात्रा में आंवला चूर्ण पानी में मिलाकर खुजली के स्थानपर पतला लेप लगाएं । १ घंटे बाद यह लेप गुनगुने पानी से धो लें । | ५ से ७ दिन |
ग. असमय वृद्धत्व न आएं, इस हेतु साथही शरीर स्वस्थ रहनेके लिए | सुबह खाली पेट १ चम्मच आंवला चूर्ण गुनगुने पानी में लें । इसके आधे घंटे तक कुछ भी न खाएं-पीएं । | ३ माह |
२. सूचना
आयुवर्ग ३ से ७ के लिए चौथाई एवं ८ से १४ के लिए औषधि आधी मात्रा में लें ।
३. औषधि का सुयोग्य परिणाम होने हेतु यह न करें !
मैदा और बेसन के पदार्थ; खट्टे, नमकीन, अति तैलीय और तीखे पदार्थ, आईस्क्रीम, दही, पनीर, चीज, बासी, असमय और अति भोजन, धूप में घूमना तथा रात्रि जागरण
४. औषधि लेते समय उपास्य देवता से प्रार्थना करें !
हे देवता, यह औषधि मैं आपके चरणों में अर्पण कर आपका ‘प्रसाद’ समझकर ग्रहण कर रहा हूं । इस औषधि से मेरे विकार दूर होने दें । ’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (११.६.२०२१)