पाश्चात्त्य सिद्धांतों के अनुसार पाश्चात्त्य मनुष्य स्वयं के संबंध में कहते समय प्रथम अपने शरीर को प्राधान्य देता है तथा तत्पश्चात् आत्मा को । अपने सिद्धांतों के अनुसार मनुष्य प्रथम आत्मा है तथा तत्पश्चात् उसे एक देह भी है । इन दो सिद्धांतों का परीक्षण करने के पश्चात् आप के ध्यान में यह बात आएगी कि, भारतीय तथा पाश्चात्त्य विचारप्रणाली में अधिक अंतर है; अतः जितनी संस्कृति भौतिक सुख तथा स्वच्छंदता की नीव पर खडी थी; वे सभी अल्पसमय अस्तित्व में रहकर एक-एक कर विश्व से नष्ट हुई; किंतु भारतीय संस्कृति आज भी अस्तित्व में है । किसी का अंधानुकरण न करे; क्योंकि यह मनुष्य के अधःपतन का लक्षण है । जब उसे अपने पूर्वजों को आदर करने में लज्जा प्रतीत होती है, तब यह निश्चित है कि, उसका विनाश समय समीप आया है । मैं मेरे धर्म को तथा पूर्वजों के गौरव को मेरा गौरव प्रतीत करता हूं । ‘हिन्दु’ इस नाम से परिचय देते समय मुझे एक प्रकार का अभिमान प्रतीत होता है । हम सभी उस आर्य ऋषिओं के वंशज हैं, जिनके महानता की तुलना करना असंभव है । धीरज रखते हुए प्रतीक्षा करें, आप का भविष्य उज्ज्वल है ।’ – स्वामी विवेकानंद
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‘हिन्दु’ इस नाम से परिचय देते समय मुझे अभिमान प्रतीत होता है !
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