‘कुछ हिन्दू लोग संतों के पास जाने के पश्चात अथवा संतोें के मार्गदर्शन के पश्चात उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं । किसी व्यावहारिक
कार्य संपन्न होने के पश्चात उसे सहायता करनेवाले के प्रति औपचारिकता के रूप में आभार व्यक्त किए जाते हैं । इसके विरुद्ध जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के लिए संतों द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त होना, यह हम पर किया गया उपकार ही है । उस उपकार का बदला ‘आभार’ के समान औपचारिक शब्दों
से नहीं दिया जा सकता, अपितु उनके द्वारा किए गए उपकारों का स्मरण कर कृतज्ञता व्यक्त करना अधिक श्रेयस्कर सिद्ध होगा है ।
अर्थात कृतज्ञता भी केवल शब्दों द्वारा व्यक्त करने की अपेक्षा ‘संतों द्वारा बताए गए साधनामार्ग का आचरण कर जीवनमुक्त होना’ ही वास्तव में उन
संतों के प्रति सच्ची कृतज्ञता है तथा संतों को भी ऐसी ही सक्रिय कृतज्ञता पंसद है ।’
-(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले