१. वर्ष २०१३ तक : ‘सनातन संस्था द्वारा बताई गई साधना भक्तियोग के नामजप से आरंभ होती है । उसमें कर्मकांड में भक्तियोग की पूजा, धर्मग्रंथों का पठन, विधि, तिथिनुसार उपासना, यज्ञयाग, इत्यादि कुछ नहीं था । इतने वर्ष सूक्ष्म का महायुद्ध आरंभ था । इस युद्ध के आयुध थे नामजप, ध्यान, संतों के संकल्प, आशीर्वाद इत्यादि ।
२. वर्ष २०१३ से : अब स्थूल का युद्धसमय निकट आया है, इसलिए हम भी अधिकारी व्यक्ति के कथनानुसार यज्ञयाग इत्यादि कर रहे हैं अथवा करवा कर
लेते हैं । इसे ही ‘कालमाहात्म्य’ कहते हैं ।
३. कालमाहात्म्यानुसार साधकों को होनेवाले कष्ट : पहले साधकों को मानसिक स्तर पर अधिक मात्रा में कष्ट होते थे । वे नामजपादि उपायों से दूर
रहते थे । अब सैकडों साधकों को पीठदर्द, थकान, इत्यादि अनेक शारीरिक कष्ट अधिक मात्रा हो रहे हैं । इस संदर्भ में भी कर्मकांड की साधना उपयोग
में आ रही है ।’