अत्यधिक लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि, भक्तियोग में केवल व्यष्टि साधना होती है । परंतु प्रत्यक्ष में वैसा नहीं है, अपितु भक्त की ओर अन्य लोग आकर्षित होते हैं एवं उनके मार्गदर्शनानुसार साधना करने लगते हैं । इसलिए उनकी समष्टि साधना भी होती है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले