पाश्चात्त्यों द्वारा दी जानेवाली सभी शिक्षा बाल्यावस्था जैसी है । यहां उसके केवल ३ उदाहरण दिए गए हैं, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में यही बात है ।
१. आधुनिक वैद्यों को रोगी की प्रकृति वात, पित्त अथवा कफप्रधान है, यह ज्ञात नहीं होता । अतः वो सभी प्रकृतिवाले रोगियों को एक जैसी ही औषधियां देते हैं ।
२. पाश्चात्त्यों को रोगी की ग्रहस्थिति के विषय में कुछ ज्ञात नहीं होता । अतः ग्रहों के होनेवाले परिणामों को ध्यान में न लेकर वो रोगियों का उपचार करते हैं ।
३. अनिष्ट शक्तियों के कारण कष्ट होते हैं, यह भी उनको ज्ञात न होने के कारण उसपर के उपाय भी उनको ज्ञात नहीं होते हैं ।
हिन्दू राष्ट्र में बाल्यावस्था में ही सभी को हिन्दू धर्म की शिक्षा दी जाएगी । उससे रोगियों के अल्पावधी में अच्छे होने हेतु सहायता मिलेगी ।