राजनीतिज्ञ जनता को पैसे देकर एवं वाहन की सुविधा कर सभा में आमंत्रित करते हैं । इसके विपरीत भक्त संतों के पास एवं धार्मिक उत्सव में उन्हें बिना आमंत्रित किए ही लाखों की संख्या में आते हैं एवं पैसे अर्पण करते हैं ! इससे ध्यान में आएगा कि संतों की तुलना में ‘राजनीतिज्ञों का महत्त्व शून्य है’, ।
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संतों की तुलना में राजनीतिज्ञों का महत्त्व शून्य
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