१. पुजारी तथा व्यवस्थापक सब सरकारी नौकर होते हैं; इसलिए, उनमें सरकारी नौकरों के सब होते हैं ।
२. अनेक राजनेता शासन से संबंधित व्यक्तियों को घूस देकर अथवा अनुचित कारणों से न्यासी बन बैठे हैं । अतः वे श्रध्दालुओं की सुविधा एवं मंदिर की पवित्रता की ओर ध्यान नहीं देते ।
३. मंदिरों में आनेवाले अर्पण तथा धन के संदर्भ में भीषण भ्रष्टाचार हो रहा है ।
४. हिन्दुओं द्वारा मंदिरों में अर्पण किया गया धन मुसलमान तथा ईसाईयों के धार्मिक शैक्षणिक केंद्र, प्रार्थनास्थल तथा तीर्थयात्रा हेतु उपयोग किया जाता है ।
५. मितव्ययिता के नाम पर उपासनाविधि, धार्मिक कृत्य अथवा मंदिरों की सुरक्षा हेतु आवश्यक निधि में कटौती की गई है ।
६. पुरातन के पूजा करनेवाले पुजारियों का व्यवहार कैसा भी हो, किंतु वे कर्मकांड उचित प्रकार से करते थे । वर्तमान के नए पुजारियों को कर्मकांड के
संदर्भ में कुछ भी पता नहीं है । अतः मंदिरों का शेष चैतन्य भी शीघ्र ही नष्ट होगा ।’