अनेक बार ऐसा दिखाई देता है कि सन्त किसी कार्यक्रमका उद्घाटन फीता काटकर करते हैं । विविध सम्प्रदायोंके नियतकालिकोंमें भी वैसा दर्शानेवाले छायाचित्र होते हैं । उन्हें इस बातका भी भान नहीं रहता कि पाश्चात्त्योंके समान फीता काटकर उद्घाटन करनेसे दर्शनार्थी हिन्दुओंपर हम अयोग्य संस्कार कर रहे हैं !
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ऐसे सन्त हिन्दुओंके समक्ष आचारधर्मका आदर्श कैंसे रखेंगे ?
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