भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय, अर्थात वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण; कालिदास तथा भवभूति, आदिके संस्कृत नाटक, काव्य, रामायण, महाभारतादि वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा तथा लगन जर्मनीमें है; किंतु भारतके नेता, समाजकल्याणकर्ता तथा सुधारक किसीको भी संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । Sanskrit is dead language अर्थात संस्कृत मृत भाषा है, ऐसा कहकर, वे संस्कृत भाषासे घृणा करते हैं । कितना घोर पतन !
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (संदर्भ : मासिक घनगर्जित, मार्च २०१३)