आज के समय में ‘काल के अनुसार ‘उत्तम कर्म’ करना ‘उत्तम ध्यान’ है । केवल ध्यान से प्रगति नहीं होती; क्योंकि हममें ध्यान लगने योग्य सात्त्विकता नहीं होती । उसे उत्तम कर्म कर प्राप्त करना पडता है । उत्तम आचरण, उत्तम विचार तथा भगवान के उत्तम सान्निध्य के कारण देह सात्त्विक होने लगती है । ऐसी देह ही ‘उत्तम ध्यान’ कर सकती है ।
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२८.४.२०२०)