हिन्दुओं, काल के अनुरूप साधना परिवर्तित होती है, यह समझ लो !

‘शांतिकाल में, अर्थात पूर्व के युगों में ‘गोदान करना’, साधना थी । अभी आपातकाल में गायों के अस्तित्व का प्रश्न निर्माण हो गया है । ऐसे में ‘गोदान करना’ नहीं; अपितु ‘गोरक्षा करना’ महत्त्वपूर्ण है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

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