‘बाल मंदिर में पढनेवाला बच्चा और स्नातकोत्तर शिक्षा लेनेवाला युवक, इन दोनों की शिक्षा समान है ; ऐसा हम नहीं कह सकते। ऐसी ही स्थिति अन्य तथाकथित धर्म एवं हिन्दू धर्म के बीच भी है, तब भी ‘सर्वधर्म समभाव’ की घोषणा करना, इससे बडा अज्ञान कोई नहीं । यह बात विभिन्न पन्थों का अध्ययन करने पर कोई भी समझ सकता है; परंतु अध्ययन न होने के कारण ‘प्रकाश और अंधकार समान है’, ऐसा कहनेवाले अंधे की भांति ‘सर्वधर्म समभावी’ बन गए हैं !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले