‘आदि शंकराचार्य तथा समर्थ रामदास स्वामी के समय बुद्धिप्रमाणवादी नहीं थे, यह अच्छा हुआ ,अन्यथा वे बच्चों द्वारा घर-परिवार छोडकर आश्रम में जाकर साधना करने का विरोध करते और संसार उनके अनुपम ज्ञान से सदा के लिए वंचित रह जाता ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले