‘नेता जनता को पैसा देकर अथवा वाहन की सुविधा देकर सभा में बुलाते हैं । इसके विपरीत संतों के पास तथा धार्मिक उत्सव में बिना बुलाए लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और धन अर्पण करते हैं ! इससे यह ध्यान में आता है कि संतों की तुलना में नेताओं का महत्त्व शून्य है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले