‘मुसलमान एवं ईसाई उनके हित का ध्यान रखनेवालों को ही मत देते हैं; जबकि हिन्दू बुद्धिप्रमाणवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार मत देते हैं । इस कारण उनके मत विभाजित हो जाते हैं । इसलिए भारत में उनका कोई मूल्य नहीं रह गया । हिन्दुओं को धर्म सिखाने पर ही उनके मत अन्य धर्मों की भांति एकत्र होंगे ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले