‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है । संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही इसे महत्व दिया गया है; इसलिए भारत में सर्वत्र वेदों का उच्चारण समान और परिणामकारक है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले