‘अनेक बार कुछ संतों का आचरण देखकर कुछ लोगों को लगता है, ‘क्या वे मनोविकार से पीडित हैं ?’, ऐसे समय में यह ध्यान रखना चाहिए कि संतों का मनोलय हो चुका होता है । इसलिए उन्हें कभी भी मनोविकार नहीं होते । उनका आचरण उस परिस्थिति के लिए आवश्यक अथवा उनकी प्रकृतिनुसार होता है । सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि संत ईश्वर के सगुण रूप होते हैं, इसलिए उनके आचरण का कार्यकारणभाव सामान्य व्यक्ति द्वारा समझ पाना कठिन होता है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१८.११.२०२१)