‘प्रत्येक पीढी अगली पीढ़ी को समाज, राष्ट्र और धर्म के संदर्भ में अपेक्षा से देखती है । इसके स्थान पर प्रत्येक पीढी को ‘हम क्या कर सकते हैं ?’, ऐसे विचार कर ऐसा कार्य करना चाहिए कि अगली पीढ़ी को उसके संदर्भ में कुछ भी करने की आवश्यकता ही न हो और इस कारण वे अपना सारा समय साधना हेतु दे सकेंगे !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले