लोकतंत्र में किसी भी समस्या के मूल में जाकर समाधान नहीं ढूंढा जाता, ऊपरी समाधान ढूंढा जाता है । भ्रष्टाचार के कारण यह भी निरर्थक सिद्ध होता है,उदा. किसी अपराधी का अपराध ध्यान में आने पर उसे पकडा जाता है । तदुपरांत अनेक वर्षों तक न्यायालयीन प्रक्रिया चलती है और अंत में उसे दंड दिया जाता है । कारागृह से बाहर आने पर उसके स्वभाव में परिवर्तन न होने से पुन: वह बार–बार अपराध करता रहता है । अपराधी को अपराध करने की बुद्धि ही न हो; इसलिए कुछ भी नहीं सिखाया जाता । परिणामस्वरूप सर्व प्रकार के अपराधों की संख्या बढ गई है । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
निरर्थक लोकतंत्र
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