‘ युगों युगों से संस्कृत व्याकरण वैसी ही है । इसका कारण वह पहले से ही परिपूर्ण है । इसके विपरीत संसार की सभी भाषाओं के व्याकरण में परिवर्तन होता है ।’
-(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘ युगों युगों से संस्कृत व्याकरण वैसी ही है । इसका कारण वह पहले से ही परिपूर्ण है । इसके विपरीत संसार की सभी भाषाओं के व्याकरण में परिवर्तन होता है ।’
-(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले