१. पाश्चात्य (पश्चिमी) संस्कृति के अंधानुकरण का दुष्परिणाम
वर्तमान में प्रत्येक क्षेत्र में, पश्चिमी संस्कृति ने अपना स्थान बना लिया है । वेशभूषा, आहार अथवा शिक्षा, सभी पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव दिखाई दे रहा है ।
१ अ. वेशभूषा
हमारी संस्कृति, रीति-परंपराएं आदि लुप्त हो रही हैं । साडी और धोती का स्थान जीन्स-शर्ट ने, तो जूडा-चोटी का स्थान बॉबकट और पोनीटेल ने ले लिया है ।
१ आ. आहार
आजकल की लडकियां अनाज अथवा मोटा अनाज नहीं पहचान पातीं । क्योंकि, अब बाजरा, कुलिथ और मूंग का स्थान जैम और सॉस ने तथा दाल-भात-रोटी का स्थान पिज्जा-बर्गर ने ले लिया है । इस बदले हुए आहार से विविध प्रकार की नई व्याधियों को निमंत्रण मिल रहा है, जिससे हमारी आयु घटती जा रही है ! आज शतायु होना भूल ही जाइए; साठ वर्ष जीनेवाला भी अपनेआप को भाग्यशाली समझता है । यह अलग बात है कि उसके साथ औषधरूपी मित्र होते हैं !
१ इ. शिक्षा
आजकल का अध्यापन, व्यापार बन गया है । इसलिए, कुछ विद्यार्थी बुद्धिमान होने पर भी, वे उच्च शिक्षा नहीं ले पाते । इसी प्रकार, हमारे पराक्रमी वीरों की कथा आजकल इतिहास से मिटाई जा रही है । मां शब्द का स्थान मॉम ने तथा पिता शब्द का स्थान डैड ने ले लिया है ।
शिक्षा का आरंभ, छोटे बच्चों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है । शिक्षा के माध्यम से ही बालकों के मन पर अपनी संस्कृति तथा गौरवशाली इतिहास अंकित किया जाता है । परंतु, आजकल की शिक्षापद्धति में यह विशेषता नहीं है । इसमें तो बच्चों का बचपन ही छिन जाता है और भावी पीढी को श्रेष्ठ भारतीय संस्कार नहीं मिल पाते ।
२. हिन्दू संस्कृति के अनुसार आचरण न करने से होनेवाले दुष्परिणाम
दूसरी ओर से भी इसका दुष्प्रभाव हमें दिखाई दे रहा है । अभिभावक और बच्चों में बढती मानसिक दूरी, बढता तनाव तथा असुरक्षा की भावना के कारण आत्महत्या, महिलाआें पर अत्याचार आदि दिनोंदिन बढ रहे हैं ।
३. भारतीयों को पाश्चात्य संस्कृति के
अंधानुकरण से बचाने के लिए धर्मशिक्षा की आवश्यकता
हिन्दुओ, कोई पौधा यदि जड से काटा जाता है, तो वह वृक्ष नहीं बन पाता । अतः, उसे जड से न काटें, उसका विकास करने के लिए उसे खाद-पानी से सीचें । ये दोनों बातें समान महत्त्व की हैं । इसी प्रकार, अपनी भावी पीढी को यदि पाश्चात्यों के अंधानुकरण से बचाना है, तो उन्हें धर्मशिक्षा देना आवश्यक है ।
धर्मशिक्षा का अर्थ है, अपनी संस्कृति, परंपरा, रीति और संस्कार इन सबकी रक्षा करना और पुष्ट करना, आज की आवश्यकता है । भारतीय संस्कृति के अनुसार आचरण करने पर तनावरहित जीवन, पहले-जैसी संपन्नता और समृद्धि प्राप्त होगी ! तो फिर आइए, आज से ही हम जन्महिन्दू नहीं, कर्महिन्दू (हिन्दू संस्कृति के अनुसार आचरण करनेवाला) बनकर आनंदमय जीवन जीएं !
४. धर्माचरण कर, जीवन आनंदमय जीएं !
होकर कटिबद्ध, प्रयत्न धर्माचरण का करें ।
अनुभवों से अपने, तनावरहित जीवन जीएं ॥ १ ॥
करें हम पालन अपनी संस्कृति और परंपरा ।
अपनेआप मिलेगा वहां सद्गुणों को आसरा ॥ २ ॥
मांगे उसके लिए भगवान से आशीर्वाद ।
श्रद्धा रखकर मन में, दूर रखें विवाद ॥ ३ ॥
ऐसा कर हम बनें कर्महिन्दू ।
मिलकर सबजन आनंद से रहें साथ-साथ ॥ ४ ॥
– कु. शर्वरी बाकरे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१३.२.२०१६)
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात