कुछ दिन पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने महाविद्यालयों में जंक फूड खाने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है । इससे, महाविद्यालयों में खुलकर जंक फूड बेचने पर रोक लगेगी । महाविद्यालयों में हाथठेलों पर लगनेवाली चीनी तथा अन्य जंक फूड की दुकानें नहीं लगेंगी, यह अच्छी बात है । इस निर्णय की कार्यवाही मुंबई के कुछ महाविद्यालयों में आरंभ हो गई है । विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की दृष्टि से शासन का लिया हुआ यह निर्णय अभिनंदनीय है । परंतु, इससे विद्यार्थियों के जीवन से जंक फूड समाप्त नहीं होगा । इसलिए, शासन को इस निर्णय तक ही न रुककर, उसका पालन कठोरता से हो तथा देश के अन्य स्थानों पर भी जंक फूड के ठेले न लगें, इसके लिए आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए ।
जंक फूड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यह बात अबतक के अनेक शोधों से सिद्ध हो चुकी है । जंक फूड खाने से बुद्धि दुर्बल होती है, शरीर में अनावश्यक वात तथा चरबी जमा होती है, जिससे शरीर में आलस बढता है । आज की युवा पीढी के साथ-साथ विद्यालयों के लडके भी जंकफूड के चंगुल में फंसे हुए हैं । जंकफूड का चलन इतना बढ गया है कि इससे सात्त्विक तथा पौष्टिक अन्न खाने का संस्कार ही धीरे-धीरे समाप्त हो सकता है । जंक फूड का प्रभाव रोकना हो, तो केवल महाविद्यालयों में उसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने से काम नहीं बनेगा । लडके, महाविद्यालय के बाहर जाकर भी जंकफूड खा सकते हैं । इसलिए, पूरे देश में जंक फूड निर्माण पर तथा जंक फूड बेचनेवाली गाडियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए । जंक फूड सेवन से शारीरिक क्षमता के साथ-साथ विचार करने की क्षमता भी बहुत घट जाती है । अतः, जंकफूड का चलन रोकने के लिए शीघ्रातिशीघ्र उचित समाधान निकालना आवश्यक है ।
हमारी युवा पीढी जंक फूड खाने की अभ्यस्त हो गई है । इससे शरीर की हानि होती यह, पता होने पर भी भोगवाद की प्रवृत्ति बन जाने से, जबतक शरीर को गंभीर रोग नहीं लग जाता, तबतक व्यक्ति नहीं चेतता । वह समझता है कि जीवन मौज-मजा करने के लिए ही है । आजकल के अधिकतर लोग जानते ही नहीं कि अन्न पूर्णब्रह्म है । आयुर्वेद कहता है कि शरीर को पालने के लिए भोजन करना आवश्यक है । हिन्दू धर्म हमें बताता है कि भोजन करना, पेट भरना नहीं है । यह यज्ञकर्म है । जो लोग अपनी वासना पर नियंत्रण पाना चाहते हैं, वे मन को यह बात बताते हुए अन्नग्रहण करें । इसी प्रकार, हमें अपने शरीर का पालन क्यों करना चाहिए ? क्योंकि हमारा शास्त्र हमें बताता है, शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् । अर्थात, शरीर धर्मपालन (ईश्वरप्राप्ति) का मूल साधन है । इसलिए, इसका पालन करना आवश्यक है । परंतु, आज इस महान सीख को अधिकतर लोग भूल-से गए हैं । मनुष्य की प्रवृत्ति जीभ का स्वाद बनाना होने से, जंक फूड का जन्म हुआ, यह कहना अनुचित न होगा । पैसा होने पर भी घटिया पदार्थ खाना, विचारों का दिवालियापन दर्शाता है ।
जंक फूड त्यागकर, आयुर्वेद अपनाएं, यही इसका सबसे अच्छा उपाय है । आयुर्वेद न केवल शरीर, अपितु मन एवं बुद्धि का भी उत्तम पालन-पोषण हो, इसके लिए सात्त्विक अन्न ग्रहण करने के लिए कहता है । किसी ने कहा भी है, जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन । मन, बुद्धि तथा शरीर बलवान चाहिए, तो उत्तम अन्न खाना पडेगा । उससे भी आगे की बात यह है कि अन्न में पौष्टिक तत्त्व अधिक मात्रा में आने के लिए भूमि उपजाऊ होनी चाहिए । भूमि उपजाऊ होने के लिए जैविक खाद का उपयोग तथा कीटनाशकों का त्याग करना चाहिए । इस प्रकार, आयुर्वेदिक (प्राकृतिक) जीवनशैली अपनानी चाहिए । तभी हम जंक फूड के चंगुल से निकल पाएंगे । इसके लिए, आज के राज्यकर्ता वैसी इच्छाशक्ति दिखाएंगे, तो बलवान तथा बुद्धिमान पीढी का निर्माण होगा ।
– श्रीमती प्राजक्ता पुजार, पुणे