घर के द्वार पर टंगे हुए आकाशदीप से घर के आसपास का वायुमंडल शुद्ध होता है । इसीको वास्तु में टंगाने का दूसरा रूप है, नंददीप !
१. इतिहास
पहली बार त्रेतायुग में आकाशदीप जलाने का विचार हुआ था । रामराज्याभिषेक के समय श्रीराम के चैतन्य से पावन हुए वायुमंडल का भी स्वागत करने के लिए प्रत्येक घर के सामने आकाशदीप जलाया गया था ।
२. रचना
आकाशदीप का मूल आकार कलशसमान होता है । यह मुख्यतः चिकनी मिट्टी का बना होता है । इसके मध्य पर तथा ऊपरी भाग पर गोलाकार रेखा में एक-दो इंच के अंतर पर अनेक गोलाकार छेद होते हैं । इसके भीतर मिट्टी का दीप रखने के लिए स्थान होता है ।
३. आकाशदीप टांगने की पद्धति
इसे घर के प्रवेशद्वार के दाईं ओर (सक्रिय शक्ति के प्रतीक के रूप में) टांगा जाता है । तीनों संध्या के समय उसमें थोडे अक्षत रखते हैं, पश्चात उसपर घी का जलता दीया रखकर, मिट्टी के विशेष प्रकार के ढक्कन से ढंक दिया जाता है ।
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, १३.१.२००५, दोपहर १२.०२)
४. त्रेतायुग में रामराज्याभिषेक के समय आंगन में लटकाया हुआ आकाशदीप, ‘ज्योतिकलश’
अंधेरी रात में आकाशदीप को दूर से देखने पर मिट्टी का कलश नहीं दिखाई देता; परंतु, कलश के प्रत्येक छेद से निकलनेवाले प्रकाश के कारण अनेक दीप जलने का आभास होता है । कलश के चारों ओर विरल प्रभावलय होने के कारण प्रतीत होता है कि उससे प्रकाश का प्रवाह उफन कर बाहर गिर रहा है । अंधेरे में यह दृश्य बहुत मनोहारी दिखाई देता है । इसलिए, त्रेतायुग में रामराज्याभिषेक के समय आंगन में लटकाए हुए आकाशदीप का नाम ‘ज्योति-कलश’ रखा गया था ।
– ब्रह्मतत्त्व (श्रीमती पाटील के माध्यम से, १८.२.२००४, दोपहर ३.०५)
आकाशदीप का अनिष्ट शक्तियों पर प्रभाव !
घी के दीये की ओर ब्रह्मांड में स्थित देवताओं की सात्त्विक तरंगें आती हैं और ढक्कन के सिरे पर बने छेदों से फुहारे समान वातावरण में जाती दिखाई देती हैं । इससे, वातावरण में सात्त्विक तरंगों का सूक्ष्म-छत बनता है । घी के दीये के नीचे रखे हुए अक्षत इन सात्त्विक तरंगों को ग्रहण कर, नीचे की ओर प्रक्षेपित करते हैं । इससे भूमि पर सात्त्विक तरंगों का सूक्ष्म आच्छादन (चादर) बिछ जाता है । मिट्टी के कलश के छेदों से निकलनेवाली वेगवान प्रकाश-किरणों से और उनसे उत्पन्न होनेवाले सूक्ष्म नाद से अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होता है । इसलिए, अनिष्ट शक्तियां आकाशदीप के पास आने से बचती हैं । तब, स्वाभाविक ही अनिष्ट शक्तियों का घर के पास आना घट जाता है । चिकनी मिट्टी में पृथ्वी-तत्त्व से अधिक आप-तत्त्व होता है । इसलिए, उसमें सात्त्विक तरंगें प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होती है । इसीलिए, दीप चिकनी मिट्टी से बनाए जाते हैं । आकाशदीप आकाश में टंगा होने के कारण, वायुमंडल की ऊर्ध्वगामी और अधोगामी तरंगें एक साथ शुद्ध होती हैं । कुछ समय पश्चात, दीप और अक्षतों से प्रक्षेपित होनेवाली सात्त्विक तरंगों से घर के चारों ओर रक्षाकवच बन जाता है । इस कवच के कारण, तीनों संध्या समय अधिक मात्रा में सक्रिय होनेवाली अनिष्ट शक्तियों से, घर की रक्षा होती है ।
Its really a new idea for Akashdeep. I like it.