सात्त्विकता और चैतन्य की अनुभूति देनेवाला
और विश्वदीपबना हुआ रामनाथी (गोवा) का सनातन आश्रम
परात्पर गुरु डॉ. आठवले (प.पू. डॉक्टर) की कृपा से रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में रहने का भाग्य प्राप्त हुआ । जिन्होंने आश्रम नहीं देखा है, वे आश्रम की कल्पना कर सकें, इस उद्देश्य से लिखा गया यह लेख गुरुचरणों में अर्पण किया हुआ कृतज्ञता पुष्प है । हे ईश्वर आप इसका स्वीकार करेंगे न !
१. प्रेम दें और प्रेम लें । प्रेम निरपेक्ष हो ॥
इस प्रकार रामनाथी आश्रम में अतिथियों का स्वागत होना
भगवान श्रीकृष्ण के बिना ऐसा प्रेम कौन कर सकता है ? किसी के आने की सूचना मिले, तो उन्हें लाने के लिए स्थानक पर वाहन भेजा जाता है । उनके लिए कक्ष, कक्ष के कपाट (अलमारी) में स्थान तथा यदि रात्रि में आनेवाले हों, तो बिस्तर आदि सभी सिद्ध होता है !
आश्रम में प्रवेश करते ही हंसकर स्वागत होता है । बिना बताए ही सामान कक्ष में रखने हेतु सहायता की जाती है । साधक यह सर्व इतने प्रेम, सहजता और शीघ्र गति से करते हैं, कि आनेवाला देखते ही रह जाता है । कुछ पूछना नहीं पडता न ही कुछ मांगना पडता है ।
कलियुग में इतना प्रेम देखकर अतिथि अभीभूत होकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं और कहते हैं, अरे इतना प्रेम ! कृतार्थ हो गए । धन्य हो गए ! यह प्रेम सभी को प.पू.डॉक्टरजी ने अपने आचरण से सिखाया है । प्रेम देना चाहिए और प्रेम लेना चाहिए । प्रेम निरपेक्ष होना चाहिए ॥
२. आश्रम में सात्त्विकता, चैतन्य और
निरपेक्ष प्रेम के कारण तनाव रहित आनंद का अनुभव होना
अतिथियों को पहले आश्रम दिखाया जाता है । विविध सेवाएं और उसकी बारीकियां सिखाई जाती हैं । निवास कक्ष और आश्रम स्तर के नियम बताए जाते हैं । आश्रम की सात्त्विकता, चैतन्य और प्रीति (निरपेक्ष प्रेम) के कारण आश्रम में हम तनाव रहित आनंद का अनुभव करते हैं । आश्रम की सेवाआें के नियोजन के कारण सेवा में हमारी एकाग्रता और क्षमता बढ जाती है । सत्संग में सेवाआें में हुई चूकें और गुरुसेवा का ब्यौरा लिया जाता है तथा उसमें से सीखने के आनंद का अनुभव करना भी सिखाया जाता है ।
३. संसार में कहीं न मिलनेवाला निरपेक्ष भक्तिप्रेम आश्रम में अपरिचित व्यक्ति
को भी मिलना और यह अनमोल प्रीति के क्षण अतिथियों के हृदय में स्थायी रूप से घर कर जाना
किसी अतिथि साधिका का जन्मदिन हो, तो उस साधिका को नौ गज की साडी पहनाना, उसे अपने आभूषण पहनने के लिए देना, उसकी आरती करना, उसके गुण विशेषताएं देखकर कविता रचना, उसे शुभकामनापत्र देना, भ्रमणभाष पर उन आनंददायी क्षणों के छायाचित्र खींचना, उसे चाकलेट अथवा अन्य मिठाई देना आदि सभी कुछ १५ से २० मिनट में उत्साहपूर्ण वातावरण में संपन्न हो जाता है । इस अवसर पर ज्येष्ठ व्यक्ति उसे शुभेच्छापत्र देकर जीवन में आए हुए नए वर्ष का ध्येय अवश्य पूछते हैं । इस प्रकार साधना में ध्येयपूर्ति का स्मरण करवाया जाता है । तत्पश्चात मिष्ठान्न से प्रीतिभोजन होता है । यह विश्वकुटुंब है । यहां दादा-दादी, माता-पिता, दीदी-भैया, चाचा-चाची, मामा-मामी आदि सभी प्रकार के संबंध हैं । सभी शुभकामनाएं देते हैं । अपरिचित व्यक्ति पर भी इस प्रीति की वर्षा होती है, ये प्रीति के अनमोल क्षण अतिथियों के हृदय में स्थायी रूप से घर कर जाते हैं । संसार में कहीं भी न मिलनेवाला निरपेक्ष भक्तिप्रेम यहां ओतप्रोत मिलता है । इस आकर्षण से ही संसार के असंख्य लोग बार-बार आश्रम में आते हैं ।
४. आश्रम में प्रत्येक साधक आनंद से और अत्यधिक प्रेमपूर्वक सभी प्रकार की सेवाएं
गुरुसेवा मानकर करता है, इसलिए आश्रम में प्रारब्धभोग भोगते हुए भी आनंद ही मिलना
यहां सद्गुणों का स्वागत होता है, तो अहं और स्वभावदोषों का निरंतर निर्मूलन होता है । प्रत्येक साधक अपनी ओर से सहायता ही करता है; परंतु यदि कोई अस्वस्थ हो, तो उन्हें परहेज का भोजन देना, महाप्रसाद की थाली स्वच्छ करना, कपडे धोना आदि सेवाएं गुरुसेवा मानकर आनंद से करते हैं । यहां के साधक ध्वनिक्षेपक अथवा भ्रमणभाष पर नामजप लगाना, सात्त्विक इत्र, कर्पूर, उदबत्ती आदि द्वारा आध्यात्मिक उपचार करना, दादा-दादी को चिकित्सालय से लाई हुई औषधि लेने हेतु स्मरण करवाना आदि अत्यधिक प्रेमपूर्वक करते हैं । ईश्वर भी उनकी सभी प्रकार से सहायता करते हैं । इसलिए यहां प्रारब्धभोग भोगने में भी आनंद ही मिलता है ।
५. आश्रम से प्रस्थान करते समय अतिथियों को
प्रेम से ओतप्रोत स्थिति में साधक देते हैं ऐसी बिदाई !
आश्रम में ४ दिन वास्तव्य करने के पश्चात श्रीमती विजया काळे दादी (आयु ७९ वर्ष) (वर्तमान पू. काळे दादी) और उनके पति (८८ वर्ष) भाई (आयु ९० वर्ष), पुत्री और नातिन आदि परिवार पुणे घर जाने के लिए निकले । दादी चार पहिया वाहन में बैठीं । तब सभी आयुवर्ग के साधक उन्हें बिदा करने हेतु एकत्रित हुए थे ।
दादी पीने का पानी रखा है न ? कुछ सामग्री रह तो नहीं गई ? घर पहुंचने पर दूरभाष करिए । दादी पुनः शीघ्र आइए । प्रेम से ओतप्रोत इन शब्दों को दादी भी उसी उत्कटता से प्रतिसाद दे रही थीं । छोटी लडकियां झुककर प्रणाम कर रही थीं ।
दादी प्रसाद ले लिया न ! दादाजी, अपने स्वास्थ्य की चिंता कीजिए ! शिवांजली (दादी की नातिन) पाठशाला में छुट्टियां होने पर आना !
कुछ साधक नमस्कार की मुद्रा में, तो कुछ हाथ हिलाकर बिदाई दे रहे थे ।
सबने भावपूर्ण प.पू.भक्तराज महाराज की जय का जयघोष किया । कृष्णाय वासुदेवाय… यह श्लोक प्रारंभ हुआ और सबने प्रस्थान किया, तब भी सबके हाथ चार पहिया वाहन अदृश्य होने तक बिदाई देने हेतु हिल रहे थे ।
दादी और उनके परिजनों के मुखमंडल का भाव, बिदा करनेवाले साधकों का भाव, आनंद, उत्साह और निर्मल प्रेम से डबडबाई हुई आंखें । केवल ५ से १० मिनट की यह बिदाई थी; परंतु प्रीति के सप्तसिंधुआें में जैसे ज्वार आ गया था ! (पुणे की श्रीमती विजया काळे दादी उनके पति के निधन से पूर्व परिजनों सहित रामनाथी (गोवा) में आश्रमदर्शन हेतु आई थीं, उस समय घटित प्रसंग यहां शब्दबद्ध किया है । – संकलनकर्ता)
भगवान, यह कैसा प्रेम है ? इस पूर्ण समारोह का मैं अनुभव कर रही थी । देवताआें के राजा इंद्र को भी ईर्ष्या हो, ऐसा यह प्रेम रामनाथी के गोकुल का है । यह भगवान श्रीकृष्ण का, श्रीकृष्ण के समष्टि रूप का प्रेम है । ऐसा निरपेक्ष प्रेम मिलना परमभाग्य ही है । यहां आनेवाले प्रत्येक को यह मिलता है । वास्तव में उसका अनुभव करने के लिए ही सबको रामनाथी के गोकुल में आना होता है ।
६. रामनाथी में प्रीति की सुगंध से सारे जीव आकर्षित होना और उन्होंने
अपने घर को रामनाथी आश्रम बनाने का ध्येय रखकर पुनः लौटने के लिए आश्रम से बिदा लेना !
घर में रहने पर आपसी मतभेद और द्वेष मत्सर करनेवाले तथा घर में एक अतिथि आने पर भी चिडचिड करनेवाले हम साधक यहां आश्रम में आने पर प्रेमपूर्वक बर्ताव कर सकते हैं, बोल सकते हैं, रह सकते हैं, वह केवल प.पू.डॉक्टरजी की कृपा के कारण ! यह सर्व उन्होंने अपने कृत्यों से साधकों के मन पर अंकित किया है । ईश्वर की यह देन, सोने की थाली पर मोतियों के दाने उगें, वैसी यह उपज रामनाथी आश्रम में अधिक उगती है, वह केवल गुरुकृपा से ! यहां की प्रीति की सुगंध से सारे जीव आकर्षित होते हैं । यहां के चैतन्य से वे प्रभावित होते हैं और आनंद का मधु चखकर तृप्त होते हैं तथा अपने घर को रामनाथी आश्रम बनाने का ध्येय रखकर पुनः लौटने के लिए आश्रम से बिदा लेते हैं ।
यह लिखकर संतुष्टि नहीं हुई, इसलिए भगवान ने कविता की पंक्तियां सुझाईं ।
७. विश्व का यह विश्वदीप, जग में करेगा नाम !
गोवा की पुण्यभूमि पर, है एक सनातन आश्रम !
प.पू.(टिप्पणी १) के संकल्प को, प.पू.बाबा के (टिप्पणी २) आशीर्वचन ॥
विश्व का यह विश्वदीप, जग में करेगा नाम ।
वसुधैव कुटुंबकम् ही इसका तत्त्वज्ञान ॥ १ ॥
रामनाथी का यह सनातन आश्रम ।
है हिन्दू राष्ट्र का उद्गम स्थान ॥
जहां अवतरित हुए प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण भगवान ।
करने हिन्दू धर्म का अभ्युत्थान ॥ २ ॥
रामनाथी का यह सनातन आश्रम । है महाविष्णु का धाम ।
क्या करूं उसका वर्णन । शेषनाग भी होते हैं नतमस्तक (टीप ३) ॥
रामनाथी का यह आश्रम । पूर्ण चैतन्य चैतन्य ॥
जहां माता लक्ष्मी दबाती । श्रीविष्णु के दिव्य चरण ॥
भूमि पर नंदनवन । गोकुल का वृंदावन ॥
संतों का निवासस्थान । विश्व का मोक्षधाम ॥
जगत का तीर्थस्थान । उसके दर्शन करने, दूर-दूर से आते हैं जन ॥
प.पू. डॉक्टरजी का निवासस्थान । देखकर होते वे धन्य-धन्य ॥
टिप्पणी १ – परात्पर गुरु डॉ.आठवले
टिप्पणी २ – परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी के गुरु प.पू.भक्तराज महाराज
टिप्पणी ३ – रामनाथी का सनातन आश्रम महाविष्णु का धाम है और महाविष्णु जिस पर लेटे हुए हैं, वस शेषनाग ने भी इस विष्णुधाम का वर्णन करते हुए थककर नतमस्तक हुआ है, तब भी इस विष्णुधाम का वर्णन पूर्ण नहीं हुआ, यह इस पंक्ति से व्यक्त हो रहा है ।
८. शब्दातीत रामनाथी के सनातन आश्रम का वर्णन
शब्दों में करना असंभव है, यह ध्यान में आना
यह लिखकर भी मुझे संतुष्टि नहीं मिली । तब मेरे ध्यान में आया कि यह अनुभूति का विषय है; क्योंकि शब्दातीत अर्थात शब्दों से परे का वर्णन करना असंभव ही होता है ।
प.पू.डॉक्टरजी, आपके आश्रम का वर्णन (अनुभूति देकर) केवल आप ही कर सकते हैं, अन्य कोई नहीं, यह मैं जान चुकी हूं और हे भगवान मैं आपके चरणों में शरण आई हूं ।
– गुरुचरणों में शरणागत, श्रीमती शालिनी मराठे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (५.६.२०१५)