श्री तनोटमाता मंदिर, राजस्थान राज्य के जैसलमेर जनपद से १३० किलोमीटर दूर थार मरुस्थल (रेगिस्तान) में भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है । भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय हुई अद्भुत घटनाओं के कारण यह मंदिर विख्यात है । साथ ही, भारत के सैनिकों के लिए श्री तनोटमाता मंदिर अत्यंत श्रद्धा का स्थान है । श्री तनोटमाता को हिंगलाज माता का ही दूसरा रूप माना जाता है । हिंगलाज माता मंदिर, वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है । भाटी राजपूतों के राजा तणुराव ने इसवी सन ८२८ में यह मंदिर बनवाकर इसमें प्रतिमा स्थापित की थी ।
मंदिर स्थापना का इतिहास
मंदिर के एक पुजारी से मिली जानकारी के अनुसार, अनेक वर्ष पहले मामडिया नामक एक चारण (इस शब्द का अर्थ है, गोपालक अथवा भाट) था । उसे संतान नहीं थी; इसलिए संतानप्राप्ति हेतु उसने हिंगलाज माता की ७ बार पदयात्रा की । इससे देवी प्रसन्न हुर्इं और चारण के सपने में आकर पूछा, ‘लडका चाहिए अथवा लडकी ?’ तब चारण ने देवी से विनती की कि ‘हे देवी ! आप ही मेरे घर जन्म लीजिए !’ तत्पश्चात्, उस चारण के घर ७ लडकियों तथा १ लडके का जन्म हुआ । उनमें से एक ‘आवड माता’ का जन्म विक्रम संवत ८०८ में हुआ । इन्हें ही ‘तनोट माता’ माना जाता है । इस माता ने जन्म से ही चमत्कार दिखाना आरंभ किया था । अन्य ६ बेटियों ने हूणों के आक्रमण से माड प्रांत की रक्षा की थी । इन ६ बेटियों में भी दैवी शक्ति थी । आवड माता, अर्थात तनोट माता की कृपा से माड प्रदेश पर राजपूतों का राज्य स्थापित हुआ । भाट राजा तणुराव ने माड को राज्य की राजधानी बनाकर, तनोटमाता को सोने का सिंहासन अर्पित किया ।
भारत-पाकिस्तान युद्ध तथा तनोट माता मंदिर के विषय में चमत्कार
वर्ष १९६५ में भारत तथा पाकिस्तान के युद्ध में मंदिर में अनेक चमत्कारिक घटनाएं घटीं । युद्ध के समय राजस्थान परिसर में बलपूर्वक घुसे पाकिस्तानी सेना को पराजित करने में तनोटमाता मंदिर का योगदान महत्त्वपूर्ण था । युद्ध के समय देवी ने भारतीय सेना की सहायता की । इसलिए, पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पडा ।
इससे संबंधित घटना इस प्रकार है – १७ से १९ नवंबर १९६५ में पाकिस्तान की सेना तीन दिशाओं से तनोट पर तोपों से गोले बरसाने लगी । उस समय तनोट क्षेत्र की रक्षा के लिए मेजर जयसिंह के नेतृत्व में १३ ‘ग्रेनेडिअर’ की एक टुकडी तथा सीमा सुरक्षा बल की दो टुकडियां शत्रुसेना के साथ लड रही थीं । १६ नवंबर को पाक सेना ने भारत में प्रवेश कर, १५० किलोमीटर तक का क्षेत्र अपने अधिकार में लिया था । शत्रु सेना ने तनोटमाता मंदिर पर ३००० तथा मंदिर के परिसर में ४५० बम गिराए; किंतु एक भी बम नहीं फटा । पाकिस्तानी सेना ने भी इस घटना को देखा था । पाकिस्तानी सेना से मिली सूचना के अनुसार, वह जब विमान से इस मंदिर पर बम गिराने का प्रयास करती, तब मंदिर नहीं दिखाई दे रहा था । वहां जलाशय (तालाब) के निकट एक लडकी बैठी दिखाई दे रही थी । इस मंदिर में छिपकर बैठे भारतीय सैनिकों के लिए तनोटमाता मंदिर एक कवच सिद्ध हुआ था । कुछ जीवित बम आज भी इस मंदिर के संग्रहालय में रखे हुए हैं ।
युद्ध के पश्चात्, सीमा सुरक्षा बल ने मंदिर का दायित्व ले लिया है । आज इस मंदिर में सेना की ओर से प्रतिदिन नियमपूर्वक पूजा की जाती है । मंदिर के निकट ही सेना की छावनी है । वर्ष १९६५ के युद्ध के पश्चात पंजाब रेजिमेंट तथा सीमा सुरक्षा बल ने मिलकर लोंगेवाला स्थित पाकिस्तानी छावनी जीतने की स्मृति में मंदिर-परिसर में ही एक विजयस्तंभ का निर्माण किया । वहां प्रति वर्ष १६ दिसंबर को उत्सव मनाया जाता है तथा आश्विन और चैत्र की नवरात्रि में मेला लगता है ।