स्वामी विवेकानंद ने भारत की संस्कृति को एक वाक्य में स्पष्ट किया है और वह है, ‘गुरु-शिष्य परंपरा !’ इस पवित्र परंपरा और सभ्य आचार का जन्म, भारत के अध्यात्म से हुआ है । भारत अध्यात्म है और अध्यात्म ही भारत है ! यही एक पहचान सब दृष्टि से और सभी अर्थों में भारतीयों का परिचय कराने के लिए पर्याप्त है । प्राचीन काल से ही भारत और भारतीयों की पहचान आध्यात्मिक देश और व्यक्ति के रूप में रही है । देश को अध्यात्मशास्त्र भिन्न प्रकार से सिखाने की अथवा समझाने की आवश्यकता नहीं थी । बाल्यावस्था से ही व्यक्ति के प्रत्येक आचरण में आध्यात्मिक दृष्टिकोण रहता था । व्यावहारिक कार्य भी में अध्यात्म प्रत्येक पल स्वाभाविकरूप से रहता था । विचार और आचार में उचित मेल होने से विरोध के लिए विरोध नहीं होता था । परिणामत:, सभी का जीवन आनंदमय और संतोषमय होता था ।
ऐसे आध्यात्मिक तेज से चमकनेवाले भारतीय समाज को आज अध्यात्म शब्द से घृणा क्यों हो गई है, यह विचार करने की बात है । इस घृणा के मूल में कुछ वैचारिक दोष और कालपरिवर्तन, ये दो बातें प्रमुख हैं । पिछले २ हजार से अधिक वर्षों के यवनों के आक्रमणों में वैदिक संस्कृति को अनेक बार अग्निपरीक्षा देनी पडी है और वह प्रत्येक बार और अधिक निखरी है । इन विदेशी आक्रमणकारियों ने अपनी रज-तमात्मक विचारधाराआें से भारतीयों को प्रभावित किया । इससे भारतीयों को अपनी मूल प्रवृत्ति का विस्मरण हुआ, अपनी संस्कृति का अभिमान नहीं रहा और मन में हीन भावना घर कर गई ।
आज जीवन के प्रत्येक अंग को विदेशी दृष्टिकोण से देखा जाता है । इस विचार से प्रभावित भारतीय, आज अपना त्यागमय अध्यात्म भूलकर, विदेशियों का भोगमय जीवन जी रहे हैं । यद्यपि आधुनिक वैज्ञानिक मानते हैं कि सूक्ष्मतम अथवा अति सूक्ष्म बातें मानवीय जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं; फिर भी वे अध्यात्म के नियमों को नहीं मानते । आज अपौरुषेय अध्यात्मशास्त्र को विदेशी दृष्टि से नहीं, वैदिक धर्म की दृष्टि सेे देखने की आवश्यकता है । अध्यात्मशास्त्र इतना व्यापक है कि उसमें संपूर्ण विज्ञान समाहित हो सकता है । अध्यात्म कठिन नहीं है । यह जीवन की कठिनाइयां सुलझाता है । प्राथमिक अवस्था में, अध्यात्मशास्त्र में निहित विज्ञान को समझते हुए अभ्यास करने पर, यह पता चलेगा कि यह शास्त्र अति प्रगत विज्ञान ही है । बुद्धिवादी और विज्ञानवादी यह न समझें कि अध्यात्म बहुत कठिन है । यह सरल है, इसका आचरण करें । क्योंकि, यह आचरण का शास्त्र है । अध्यात्मशास्त्र में बताई गई बातें आचरण में लाने पर ही समझ में आता है कि जीवन को कैसे समृद्ध और सुखी बनाया जा सकता है । वर्तमान में हमारा जीवन विज्ञानमय बन गया है । परंतु, जबतक इसे अध्यात्ममय नहीं बनाया जाएगा, तबतक अध्यात्म को ठीक से नहीं समझा जा सकेगा ।
– श्रीमती श्रद्धा मुकुल जोशी, पुणे
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात