१. परमेश्वर की शक्ति का अस्तित्व वैज्ञानिक कसौटियों पर सिद्ध करना पडना
लगभग ३० वर्ष पूर्व परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है, यह कहने के लिए साहस की आवश्यकता पडती थी; परंतु आज के यांत्रिक युग में परमेश्वर का अस्तित्व है, यह कहने के लिए साहस की आवश्यकता है । अलग-अलग वैज्ञानिक कसौटियों पर खरे उतरनेवाले सिद्धांत निर्माण कर परमेश्वरीय शक्ति है, यह सिद्ध करना पडता है ।
२. अनाकलनीय बातें भी विज्ञान का ही अविभाज्य भाग बनने लगना
केवल दृढ श्रद्धा से प्रार्थना कर मृत्यु के द्वार से लौटनेवाले रोगी तथा उनकी कथाएं नई नहीं हैं । उनमें अलग इतना ही है कि ऐसी अनाकलनीय बातें विज्ञान का ही भाग नहीं, अपितु अविभाज्य भाग बन रही हैं ।
३. वैज्ञानिक प्रयोग
३ अ. रोगनिवारण होना
चिकित्सा प्रोफेसर डॉ. डेल मैथ्यू कहते हैं, परमेश्वर ही रोग ठीक करते हैं, ऐसा हम वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध कर दिखा नहीं सकते; परंतु परमेश्वर पर रखी गई दृढ श्रद्धा रोग ठीक होने में निश्चित ही उपयोगी होती है ।
३ आ. रोगनिवारण में दृढ श्रद्धा का महत्त्व
रोग निवारण में दृढ श्रद्धा कैसे उपयोगी होती है एवं उनका एक दूसरे से कैसा संबंध होता है, इस पर लगभग ३० प्रयोग किए गए, उनमें से कुछ प्रयोगों का सारांश यहां दिया है ।
३ आ १. अल्प मृत्यु का प्रमाण
कैलिफोर्निया के ५ हजार २८६ निवासियों में से कुछ चर्च के सभासद थे तथा कुछ नहीं थे । इनमें से चर्च के सभासदों में, यद्यपि वे धूम्रपान तथा मद्यपान करते थे, उनमें मोटापा था; तब भी मृत्यु का प्रमाण अल्प पाया गया ।
३ आ २. श्रद्धा एवं प्रार्थना के कारण रोगी का स्वास्थ्य सुधरना
कैन्सर (कर्करोग) के ८ में से ७ रोगियों के अध्ययन में श्रद्धा एवं प्रार्थना के कारण उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था । इसी प्रकार उच्च रक्तचाप के ५ में से ४ रोगी, हृदयविकार के ६ में से ४ रोगी तथा ५ में से ४ सामान्य रोगी, ये सभी श्रद्धा एवं प्रार्थना के कारण ठीक हो रहे थे ।
३ आ ३. धर्म पर दृढ श्रद्धा रखनेवाले लोगों में व्यसनाधीनता तथा आत्महत्या का प्रमाण अत्यल्प होना
कुछ समय पूर्व हुए एक शोध में सिद्ध हुआ है कि जिन लोगों की अपने धर्म पर दृढ श्रद्धा है, ऐसे लोगों की प्रवृत्ति निराशा, आत्महत्या, अतिरिक्त मद्यपान इन बातों की ओर अल्प होती है ।
३ आ ४. धर्म पर श्रद्धा के कारण पुराने रोग ठीक होकर रोगी स्वस्थ होना
चिकित्सकीय प्रोफेसर जेफ्रे एस. लेविन द्वारा किए २०० शोधपरक प्रकरणों में प्रौढ कैथोलिक्स, जापानी बुद्धिस्ट तथा इस्राईली ज्यू ये सभी वर्ष १९३० से १९८० में पुराने रोगों का धैर्यपूर्वक सामना कर ठीक हुए । उनके स्वस्थ होने का कारण था उनकी धर्म पर दृढ श्रद्धा ।
४. प्रार्थना से होनेवाले लाभ
४ अ. मन प्रसन्न रहकर निराशा दूर होना
सत्संग में रहने से एवं सात्त्विक तथा सत्प्रवृत्त लोगों से संबंध आने के कारण मानसिक आधार मिलकर मन प्रसन्न रहता है । उसका प्रभाव स्वास्थ्य पर होता है तथा स्वास्थ्य एवं दीर्घायु मिलती है । श्रद्धा के कारण मनुष्य आशावादी बनता है । तनाव एवं निराशा दूर होती है ।
४ आ. मानसिक बल मिलना
डॉ. हैरॉल्ड कोईनीग कहते हैं श्रद्धा एवं प्रार्थना मनुष्य को दुःख, बीमारी तथा किसी भी संकट का सामना करने के लिए धैर्य एवं मानसिक बल देते हैं ।
४ इ. व्यक्ति निरोगी रहकर मन का तनाव दूर होना
हॉर्वर्ड मेडिकल संस्था के डॉ. हर्बर्ट बेन्सन के अनुसार रक्तचाप, पचन, हृदय के स्पंदन, एवं श्वासोच्छ्वास की मात्रा प्रार्थना के कारण व्यवस्थित रहती है तथा व्यक्ति निरोगी रह पाता है । सामुदायिक प्रार्थना, जप एवं ध्यान करने से मन का तनाव दूर होता है । एक दूसरे के आधार की भावना होने के कारण मन सदैव प्रसन्न रहता है अर्थात ईश्वर अथवा परमेश्वर पर दृढ श्रद्धा हो, तो जप अथवा प्रार्थना का अधिक उपयोग होता है ।
अब दूसरों द्वारा रोगियों के लिए की गई प्रार्थना का कितना एवं कैसा उपयोग होता है, वह देखते हैं ।
५. प्रत्यक्ष प्रयोग
५ अ. रोगी के लिए अन्य व्यक्ति द्वारा प्रार्थना करने से रोगी
के कष्ट अल्प होकर एंटीबायोटिक्स औषधि का प्रमाण भी अल्प होना
डॉ. बेन्सन एवं उनके सहयोगी ने कॉरोनरी बायपास किए हुए रोगी एवं डॉ. मॅथ्यूज ने हृमॅटॉईट ऑथ्रराईटस के रोगियों का अध्ययन किया । डॉ. बायर्ड ने ३९३ हृदयविकार के रोगियों का अध्ययन किया । एक गुट के रोगियों के लिए उस गांव के कुछ धार्मिक लोगों ने प्रार्थना की तथा दूसरे गुट के लिए किसी ने भी प्रार्थना नहीं की । दोनों गुटों के लोगों को इस प्रयोग के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी । जिस गुट के लिए प्रार्थना की थी, उनमें रोग के कष्ट घटे एवं एंटीबायोटिक्स औषिधियों की मात्रा भी घट गई ।
५ आ. व्रण (घाव) शीघ्र सूखना
प्रार्थना के कारण दूसरी महत्त्वपूर्ण बात दिखाई दी, प्रयोगशाला में बैक्टीरिया की वृद्धि शीघ्र हुई तथा चूहों को हुए व्रण शीघ्र ठीक हुए ।
‘प्रेयर इज गुड मेडिसिन’ इस पुस्तक के लेखक डॉ. लरी डोसे को प्रार्थना के अच्छे परिणामों की इतनी निश्चिती हुई कि वे अपने चिकित्सा व्यवसाय के अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से अपने रोगियों के लिए प्रार्थना करते थे ।
६. अमेरिकन लोगों का अनुभव
६ अ. परमेश्वर पर रखी जानेवाली दृढ श्रद्धा ही रोग निवारण के लिए अधिकाधिक सहायक होना
हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल एवं मेयो क्लीनिक ये दोनों संस्थाएं अध्यात्म एवं स्वास्थ्य पर परिषद, चर्चा, सभा, परिसंवाद आयोजित करती हैं । अमेरिका के आधे से अधिक चिकित्सा महाविद्यालयों में इस विषय पर अलग अलग पाठ्यक्रम रखे हैं । वर्ष १९९६ की अमेरिकन एकेडमी ऑफ फिजिशियन की सभा में २६९ चिकित्सकों में से ९९ प्रतिशत चिकित्सकों के अनुसार परमेश्वर के प्रति दृढ श्रद्धा ही रोगनिवारण के लिए अधिकाधिक सहायता करती है ।
टाईम, सी.एन.एन एवं यू.एस.ए.वीकएंड द्वारा किए गए निरीक्षण में ८० प्रतिशत अमेरिकन जनता श्रद्धावादी एवं प्रार्थना पर विश्वास रखनेवाली है ।
६ आ. चिकित्सा व्यवसाय दिन प्रतिदिन मनुष्य के मन से दूर एवं केवल शरीर तक यांत्रिक होने के
कारण मन के घाव न दिखना तथा उसके लिए परमेश्वर पर दृढ श्रद्धा एवं उनकी प्रार्थना ही सर्वोत्तम उपाय होना
डॉ. कोइनीग के अनुसार श्रद्धा मनुष्य के शरीर की अपेक्षा उसके मन पर नियंत्रण रखती है । इससे मनुष्य का स्वभाव सकारात्मक बनता है । चिकित्सा व्यवसाय दिन प्रतिदिन मनुष्य के मन से दूर तथा केवल शरीर तक सीमित रह गया है । अलग अलग यंत्रों के कारण शरीर की त्रुटियां एवं कमियां दिखती हैं; परंतु मन के व्रण नहीं दिखते । उसके लिए परमेश्वर पर दृढ श्रद्धा रखना एवं प्रार्थना करना ही सर्वोत्तम उपाय है ।
(रीडर्स डायजेस्ट, नवं १९९९ के FFaaiitthh iiss PPoowweerr MMeeddiicciinnee इस लेख के आधार पर)
सौ. अपर्णा भाटवडेकर (संदर्भ : मासिक संतकृपा, मार्च २००१)