कोजागरी पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा)

कोजागरी पूर्णिमा के दिन रात्रि को लक्ष्मी तथा इंद्र की पूजा की जाती है । कोजागरी पूर्णिमा की कथा इस प्रकार है कि, बीच रात्रि में लक्ष्मी पृथ्वी पर आकर जो जागृत है, उसे धन,अनाज तथा समृद्धी प्रदान करती है । इस लेख द्वारा इस दिन का महत्त्व तथा पूजाविधी की जानकारी देखेंगे ।

 

१. तिथी

कोजागरी पूर्णिमा का उत्सव आश्विन पूर्णिमा इस तिथी को मनाया जाता है ।

 

२. इतिहास

श्रीमत्भागवत के कथनानुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने व्रजमंडल मेंरासोत्सव मनाया था ।

 

३. अश्‍विन पूर्णिमा के विविध नामों का अर्थ

अश्‍विन पूर्णिमा को ‘शरद (कोजागरी) पूर्णिमा’, ‘नवान्‍न पूर्णिमा’ अथवा ‘शरद पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है । जिस दिन पूर्णिमा पूर्ण होती है, उस दिन ‘नवान्‍न पूर्णिमा’ मनाई जाती है ।

अ. अश्‍विन पूर्णिमा की उत्तररात्रि को लक्ष्मीदेवी ‘को जागरति’ अर्थात ‘कौन जाग रहा है ?’, ऐसा पूछती हैं; इसलिए इस पूर्णिमा को ‘कोजागरी पूर्णिमा’ कहते हैं ।

आ. किसान अश्‍विन पूर्णिमा को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्‍यक्‍त करने के लिए नए अनाज की पूजा कर उसका भोग लगाते हैं; इसलिए इस पूर्णिमा को ‘नवान्‍न पूर्णिमा’ कहते हैं ।

इ. अश्‍विन पूर्णिमा शरदऋतु में आती है; इसलिए इस पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ कहते हैं ।

 

४. महत्त्व

अ. संपूर्ण वर्ष में इस दिन मूल चंद्रतत्त्व का अर्थात् ‘चंद्रमा’ का प्रतिनिधीत्व करनेवाला तथा हमें दिखाई देनेवाला चंद्र ‘चंद्रमा’ के अनुसार शीतल एवं आल्हाददायक है । साधक चंद्र के समान शीतलता ईश्वर के अवतारों सेअनुभव कर सकते हैं; अतएव रामचंद्र, कृष्णचंद्र के समान नाम राम-कृष्ण कोदिए गए हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता में (१०:२१) बताया है कि,‘चंद्र के इन गुणों के कारण ही ‘नक्षत्राणामहं शशि’ अर्थात् ‘नक्षत्रों में मैं चंद्र हूं।’

आ. बीच रात्रि श्री लक्ष्मी चंद्रमंडल से भूतल पर आकर ‘को जागर्ति’ अर्थात् ‘कौन जागृत है ?’, यह पूछकर जो जागृत होगा, उसे धन तथा अनाज से संतुष्ट करती है ।

इ. इस दिन ब्रह्मांड में आदिशक्तीरूपी धारणा की श्री लक्ष्मीरूपी इच्छाशक्तिके स्पंदन कार्यरत रहते हैं । इस दिन धनसंचय के संदर्भ में सकाम विचारधारणा पूर्णत्व की ओर ले जाती है । इस धारणा के स्पर्श से स्थूलदेह, साथ ही मनोदेह की शुद्धी होने के लिए सहायता होती है एवं मन को प्रसन्नधारणा प्राप्तहोती है । इस दिन कार्य को विशेष धनसंचयात्मक कार्यकारी बल प्राप्त होता है।

ई. कोजागरी पूर्णिमा को वातावरण में प्रक्षेपित होनेवाली लहरी

लहरी मात्रा (प्रतिशत)
भाव २५
चैतन्य २०
आनंद ३०
शांति २५
कुल मिलाकर १००

 

५. भावार्थ

कोजागरी की रात्रि जो जागृत तथा सावध रहता है, उसे ही अमृतप्राशन का लाभप्राप्त होता है ! कोजागर = को ± ओज ± आगर । इस दिन चंद्र के किरणोंद्वारा सभी को आत्मशक्तिरूपी (ओज) आनंद, आत्मानंद, ब्रह्मानंद पूरीतरह सेप्राप्त होता है; किंतु यह अमृत प्राशन करने के लिए ऋषि कहते हैं कि, ‘कोजागर्ति ?, अर्थात् कौन जागृत है ? कौन सावध है ? कौन इसके माहात्म्य के बारे में परिचित है ? जो जागृत एवं सावध है तथा जो इसके माहात्म्य के बारेमें जानता है, वही इस अमृतप्राशन का लाभ प्राप्त कर सकता है !’ – प.पू.परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल ।

 

६. उत्सव मनाने की पद्धति

‘इस दिन नवान्न (नए पके हुए अनाज की) रसोई सिद्ध की जाती है । श्रीलक्ष्मी तथा ऐरावत पर आरुढ इंद्र की पूजा रात्रि के समय की जाती है । पूजाके पश्चात् पोहे तथा नारियल पानी देव तथा पितरों को समर्पित कर पश्चात् नैवेद्य के रूप में अपने घर के उपस्थित सभी को देकर ग्रहण किया जाता है ।शरद ऋतु की पूर्णिमा के स्वच्छ चांदणें में आटीव दूध बनाकर चंद्र को उसीका नैवेद्य दिखाया जाता है । पश्चात् नैवेद्य के रूप में वही दूध ग्रहण कियाजाता है । चंद्र के प्रकाश में एक प्रकार की आयुर्वेदिक शक्ति रहती है । अतः यह दूध आरोग्यदायी है । इस रात्रि को जागर करते हैं । मनोरंजन हेतु पृथकप्रकार के बैठे खेल खेले जाते हैं । दूसरे दिन प्रातः पूजा का पारणं करते हैं ।

 

७. कोजागरी पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी तथा इंद्र
की पूजा की जाती है । उसके कारण इस इस प्रकार हैं ..

अ. इन दो देवताओं को पृथ्वी पर तत्त्व रूप से अवतरने के लिए चंद्रआग्रहात्मक आवाहन करता है ।

आ. लक्ष्मी आल्हाददायक तथा इंद्र शीतलतादायक देवता है । इस दिनवातावरण में ये दो देवताएं तत्त्वरूप से आती हैं तथा उनका तत्त्व अधिक मात्रामें कार्यरत रहने के कारण उनकी पूजा की जाती है ।

 

८. लक्ष्मी तथा इंद्र का पूजाविधी

अ. लक्ष्मी तथा इंद्र की पूजा में पोहा तथा नारियल पानी का उपयोग करते हैं । पोहे आनंद देनेवाला, तो नारियल पानी शीतलता प्रदान करनेवाला है । अतः इन दो घटकों का उपयोग कर जीव स्वयं की ओर आनंद एवं शीतलता की लहरी आकर्षित करता है ।

आ. चंद्र को गाढा किए हुए दुध का नैवेद्य दिखाया जाता है; क्योंकि दुध में चंद्र काप्रतिबिंब देखने से उससे प्रक्षेपित होनेवाले चंद्रतत्त्व का हमें लाभ होता है । इसदुध में स्थूल तथा सूक्ष्म रूप से चंद्र का रूप तथा तत्त्व आकर्षित होता है ।

इ. जागर : बीच रात्रि में लक्ष्मी चंद्रमंडल से भूतल पर आती है तथा जो जागृतहोगा, उस पर संतुष्ट होकर उसे कृपाशीर्वाद देकर जाती है । अतः कोजागरीकी रात्रि जागर किया जाता है ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘सण, धार्मिक उत्सव तथा व्रतं’

 

९. शरद (कोजागरी) पूर्णिमा को चंद्रमा देखने का ज्‍योतिषशास्‍त्रीय महत्त्व

इस दिन देवी लक्ष्मी और इंद्रदेवता का पूजन किया जाता है । इस कारण लक्ष्मीजी की कृपा से सुखसमृद्धि प्राप्‍त होती है । रात्रि को दूध में चंद्रमा का दर्शन करने से चंद्रमा की किरणों के माध्‍यम से अमृतप्राप्‍ति होती है ।‘अश्‍विन पूर्णिमा’ को चंद्रमा अश्‍विनी नक्षत्र में होता है । अश्‍विनी नक्षत्र के देवता ‘अश्‍विनीकुमार’ हैं । अश्‍विनीकुमार सर्व देवताओं के चिकित्‍सक हैं । अश्‍विनीकुमार की आराधना करने से असाध्‍य रोग ठीक होते हैं । इसलिए वर्ष की अन्‍य पूर्णिमाओं की तुलना में अश्‍विन पूर्णिमा को चंद्रमा के दर्शन से कष्‍ट नहीं होता ।

ज्‍योतिषशास्‍त्र में चंद्रमा ग्रह को मन का कारक माना गया है । इसलिए हमारी मानसिक भावनाएं, निराशा और उत्‍साह चंद्रमा से संबंधित हैं । जिनकी जन्‍मकुंडली में चंद्रमा बल न्‍यून होता है, उन्‍हें पूर्णिमा के आसपास मानसिक कष्‍ट होने की मात्रा बढती है । जिनकी जन्‍मकुंडली में चंद्रमा का बल अच्‍छा है, उनकी प्रतिभा पूर्णिमा के चंद्रमा, चांदनी के वातावरण में जागृत होती है । उन्‍हें काव्‍य सूझता है ।

चंद्रमा मातृकारक ग्रह है, अर्थात कुंडली के चंद्रमा से माता के सुख का अध्‍ययन करते हैं । अश्‍विन पूर्णिमा को चंद्रमा की साक्षी से माता कृतज्ञताभाव से अपनी ज्‍येष्‍ठ संतान की आरती उतारती है; क्‍योंकि प्रथम संतान के जन्‍म के उपरांत स्‍त्री को मातृत्‍व का आनंद प्राप्‍त होता है ।’

– श्रीमती प्राजक्‍ता जोशी, ज्‍योतिष फलित विशारद, वास्‍तु विशारद, अंक ज्‍योतिष विशारद, रत्नशास्‍त्र विशारद, अष्‍टकवर्ग विशारद, सर्टिफाइड डाउसर, रमल पंडित, हस्‍ताक्षर मनोविश्‍लेषणशास्‍त्र विशारद, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, रामनाथी, फोंडा, गोवा.(११.१०.२०२०)

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