साहित्य में १ अप्रैल का उल्लेख सर्वप्रथम वर्ष १९३२ में कँटरबरी टेल्स नामक पुस्तक में हुआ ऐसा कहा जाता है । इसे सत्य माना जाए, तो मूर्खता को वर्ष में एक दिन सम्मानपूर्ण स्थान देने की इस परंपरा को इस वर्ष लगभग ८० वर्ष हो गए है (वर्ष २०१७ में इस परंपरा को ८५ वर्ष हो गए । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) अन्य कुछ समझदारों ने अपना समय व्यर्थ किया और खोज की कि वर्ष १५६४ में फ्रान्स ने अपनी दिनदर्शिका बदली । तब तक वहां नव वर्ष का आरंभ १ अप्रैल से होता था । मार्च मास में पुराना पूरा हिसाब चुकता कर नया हिसाब आरंभ होता था । वर्ष १५६४ में इसमें परिवर्तन कर जनवरी को वर्ष का आरंभ माना जाने लगा । इस नए वर्ष का जिन्हें विस्मरण होता था, उनका उपहास करने हेतु उसकी पीठ पर कागद की मछली चिपकाई जाती और उसे अप्रैल फिश कहकर चिढाया जाता था । इस फिश का फूल कब हुआ, इसकी खोज कोई समझदार अभी तक नहीं कर पाया और मूर्ख ऐसी खोज में समय व्यर्थ करने की मूर्खता के चक्कर में नहीं पडते । वर्षारंभ के लिए जनवरी मास सर्वत्र स्वीकार किया गया है, फिर भी मार्च समाप्ति की (एन्डिंग) पद्धति चल रही है । (दैनिक लोकसत्ता, २.४.२०११)
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात