चेन्नई : १७ सितम्बर २०१७ यह दिन तमिळ पंचांग के अनुसार पुरट्टासी माह का प्रथम दिन था । कलियुग में श्रीमत्नारायण ने चेन्नई के निकटवाले तिरुपति में ‘श्रीनिवास’ इस नाम से अवतार लिया । आगे उसे वेकंटेश्वर स्वामी तथा बालाजी इस नाम से संबोधित किया गया । श्रीनिवास अवतार का जन्मदिन होने के कारण पुरट्टासी माह को विशेष दिन के रूप में माना जाता है । ऐसे शुभ दिन पर श्रीकृष्ण के प्रति उत्कट भाव होनेवाली चेन्नई की सनातन की साधिका श्रीमती उमा रविचंद्रन् ने ७१ प्रतिशत स्तर प्राप्त किया है । इस दिन सनातन के सुवर्णमय इतिहास में उनके ७० वी समष्टि संत के रूप में विराजमान होने की आनंददायी घोषणा की गई । यहां संपन्न हुए एक सत्संग समारोह में सनातन के ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के श्री. विनायक शानभाग ने श्रीमती उमा रविचंद्रन् ने संतपद प्राप्त करने के संदर्भ की परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा भेजा गया संदेश पढने के पश्चात् उपस्थित साधकों का भाव जागृत हुआ । ६७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले सनातन के साधक श्री. पट्टाभिराम प्रभाकरन् ने पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन् को श्रीफल तथा भेंटवस्तु देकर, तो ६४ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की साधिका श्रीमती सुगंधी जयकुमार ने उनका पुष्पहार पहनाकर आदर किया ।
सत्संग समारोह के प्रारंम में उपस्थितों को ८.९.२०१७ को रामनाथी आश्रम में श्रीमती उमा रविचंद्रन् द्वारा प्रस्तुत की गई वीणावादन की ध्वनिचित्रचक्रिका प्रसारित की गई । तत्पश्चात् रामनाथी आश्रम के साधक श्री. राम होनप को उनके वीणावादन के संदर्भ में प्रतीत हुए कुछ विशेष सूत्रं तथा उन्हें सूक्ष्म में प्रतीत हुआ ईश्वर प्राप्त ज्ञान सुनाया ।
वीणावादन के अनुसार ही बालकभाव में रहकर पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन् द्वारा अंकित किए गए श्रीकृष्ण के अत्यंत बोलकी तथा भावोत्कट छायाचित्र साधकों का भाव जागृत करते हैं ।
इन छायाचित्रों का सनातन-निर्मित ग्रंथ बालकभाव में छायाचित्र भाग १ तथा २ वर्ष २०१३ में प्रकाशित किए गए हैं । स्थान-स्थान पर हिन्दूत्वनिष्ठों का संगठन कर उन्हें हिन्दुत्व के कार्य में सम्मिलित करना, किसी भी परिस्थिती में गुरुसेवा में शतप्रतिशत एकरूप होकर समष्टि सेवा में रत रहना, यही पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन् की कुछ विशेषताएं हैं । व्यष्टि साधना के अंतर्गत अत्युच्च भाव तथा समष्टि साधना के अंतर्गत गुरुसेवा की तीव्र लगन, इस प्रकार व्यष्टि-समष्टि का सुरेख संगम पू. (श्रीमती) उमाक्का में दिखाई देता है ।
बालक भाव के सुंदर छायाचित्र मुद्रित कर साधकों का भाव जागृत करनेवाली तथा हिन्दूत्वनिष्ठों में धर्मकार्य की लगन वृद्धिगंत करनेवाली श्रीमती उमा रविचंद्रन् !
चित्रकला की पढाई न होते हुए भी कलात्मक दृष्टि तथा ईश्वरप्रति होनेवाला उत्कट एवं निरागस भाव के कारण श्रीमती उमा रविचंद्रन् ने बालक भाव के अनेक सुंदर छायाचित्र मुद्रित किए हैं । उनके ये छायाचित्रं अर्थात् कृष्णभक्ति का एक अनोखा अविष्कार है । उन्होंने सहजता से मुद्रित किए गए सभी छायाचित्रों में अतीव सजीवता आई है । पूरे विश्व के साधकों को यह अनुभूति आती है कि, अपने मन का भाव इस छायाचित्र द्वारा व्यक्त होता है । यहीं उनके सर्वागस्पर्शी चित्रकला की विशेषता है ।
चित्रकला के साथ उन्हें वीणावादन तथा गायन कला भी ज्ञात है । वह सुनते समय हम कुछ पृथक भाव में जाते हैं । नम्रता, वात्सल्यभाव, तत्त्वनिष्ठता इत्यादि गुणों से संपन्न श्रीमती उमा रविचंद्रन् में धर्मकार्य के प्रति तीव्र लगन है । अपनी लगन तथा उत्तम नेतृत्वगुण के कारण उन्होंने तमिळनाडु के अनेक हिन्दूत्वनिष्ठ एवं धर्मप्रेमी व्यक्तियों को धर्मकार्य से जोड़ा है । ऐसा नहीं कि, उनमें से अनेक व्यक्तियों में केवल धर्मकार्य की ही लगन बढ गई है, तो श्रीमती उमा रविचंद्रन् ने उनमें साधना की रूची भी निर्माण की है । साथ-साथ उनमें पारिवारिक संबंध भी निर्माण हुए हैं । तमिळनाडु का प्रसारकार्य श्रीमती उमा रविचंद्रन् की लगन का फल है । इतना ही नहीं, तो अमरिका में तथा कॅनडा में वे उनकी लडकी के यहां जाती है, तो वहां भी वे धर्मकार्य का प्रसार करती हैं ।
१०० प्रतिशत एकरूप होकर सेवा करते समय भी वे अपना पारिवारिक दायित्व उतनी ही कुशलता से करती हैं । प्रत्येक पल उन्हें साधना में तथा सेवा में सहकार्य करनेवाले उनके पति श्री. रविचंद्रन् की भी जितनी प्रशंसा करेंगे, उतनी न्यून होगी । इन सभी गुणों के कारण श्रीमती उमा रविचंद्रन् की आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र गति से हो रही है । वर्ष २०१२ में उन्होंने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया था तथा आज ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर वे सनातन के ७० वे समष्टि संतपद पद विराजमान हुई हैं ।
उनका आगे का मार्गक्रमण इसी प्रकार शीघ्र गति से हो, ऐसी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना है !
— (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी
पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन् ने साधकों को यह संदेश दिया कि, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा आरंभ किए गए धर्मकार्य में सम्मिलित होने के कारण ही हम पर ईश्वरी कृपा होगी !
हम सभी का परमभाग्य है कि, हम सनातन संस्था में आए हैं । केवल इतना ही नहीं, तो हम साक्षात् महर्षि ने जिनका विवरण श्रीमत्नारायण स्वरूप किया है, वे परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी हमें गुरु के रूप में प्राप्त हुए हैं । ५० जन्मों का पुण्य होने के कारण हमें पृथ्वी पर प.पू. गुरुदेव के साथ जन्म प्राप्त हुआ है; इसलिए हम निरंतर कृतज्ञता भाव में रहेंगे । हम प.पू. गुरुदेवजी के चरणों में केवल कृतज्ञता ही व्यक्त कर सकते हैं । जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में बासरी रहती है, उसके समान हम सभी होने का प्रयास करेंगे । बासरी केवल रिक्त रहती है । हम कुछ भी नहीं है, कर्ता-करविता प.पू. गुरुदेव ही हैं । हम कुछ भी नहीं कर सकते । धर्म की घडी ठीक करने के लिए ही प.पू. डॉक्टरजी ने पृथ्वी पर जन्म लिया है । श्रीगुरुचरणों में कृतज्ञताभाव रखकर उनके इस कार्य में सम्मिलित रहेंगे । उस से ही हम पर ईश्वर की कृपा होगी । हम भगवान श्रीकृष्ण के हाथ की कठपुतली बाहुली के समान हैं ।
पू. (श्रीमती ) उमा की साधना के कारण दुर्धर व्याधी से मुझे पुनर्जन्म प्राप्त हुआ ! — श्री. रविचंद्रन् (पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन् के पति )
उमा आज संत हुई है, इसलिए मुझे अत्यंत आनंद प्रतीत हो रहा है । वह शीघ्र ही संत बनेगी, इस बात की कल्पना मुझे कुछ मात्रा में आई थी । उमा प्रत्येक कृती अपेक्षा विरहित करती है । उसके कारण (उसकी साधना के कारण ) मुझे दुर्धर व्याधी से पुनर्जन्म प्राप्त हुआ है । प.पू. गुरुदेव के कारण यह बात मेरे ध्यान में आई । वर्ष २००३ में सनातन संस्था के संपर्क में आने के पश्चात् उसकी साधना आरंभ हुई थी । उस समय से आज तक एक बार भी वह साधना में न्यून नहीं हुई । उसके कारण मैंने भी साधना आरंभ की । आज भगवान श्रीकृष्ण तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति जितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करेंगे, उतनी अल्प ही होगी । गुरुदेवजी को मेरा शिरसाष्टांग नमस्कार !
पू. (श्रीमती) उमाक्का सर्व हिन्दूत्वनिष्ठों का आधारस्तंभ ! — श्री. जी. राधाकृष्णन् (६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले चेन्नई के हिन्दूत्वनिष्ठ )
आज तमिळनाडु के सर्व धर्मप्रेमी तथा हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए आज का दिन आनंद का दिन है । ऐसा प्रतीत होता था कि, उम्माक्का शीघ्र ही संत बनेगी । क्योंकि उनकी आंखों से ही एक पृथक-सा चैतन्य प्रतीत होता था । आजकल वह अधिक बातें भी नहीं करती थी, किंतु उनकी आंखें ही बहुत कुछ बताती थी । उमाक्का हम सभी हिन्दूत्वनिष्ठों का आधारस्तंभ हैं । वे प.पू. गुरुदेवजी का प्रतिरूप ही हैं । उमाक्का की ओर देखने से ही हमें आनंद प्राप्त होता है ।
पू. उमाक्का में संतों के समान गुण बचपन से ही विद्यमान हैं ! — श्री. गणेश राधाकृष्णन् (पू. (श्रीमती ) उमा रविचंद्रन् के कनिष्ठ भाई )
उमाक्का कभी भी क्रोधित नहीं होती । यदि सामनेवाला क्रोधित हुआ, तो उसे उचित प्रतिसाद किस प्रकार देना, इस की कला उनमें बचपन से है । ऐसा प्रतीत होता था कि, उमाक्का शीघ्रातिशीघ्र संतपद प्राप्त करेंगी । गत ५० वर्षों से उमाक्का को मैंने निकट से देखा है । वह बचपन में पृथक ही थी । संतों के समान गुण उस समय भी उन में विद्यमान थे । प.पू. गुरुदेवजी के चरणों में कोटी कोटी कृतज्ञता !
श्री. रविचंद्रन् का भाव जागृत हुआ है, यह देखकर पू. (श्रीमती) उमाक्का ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए
‘आज पतिदेव की आंखों में पहली ही बार मैंने आसूं देंखे । वे भावाश्रू हैं । मुझे यह कभी भी प्रतीत नहीं हुआ था कि, जीवन में भगवंत के प्रती कृतज्ञता से वे इतने भावविभोर होंगे ? आज उनकी भावजागृती हो रही है, वे ईश्वर के लिए रो रहे हैं, इस के अतिरिक्त मेरे लिए भाग्य की क्या बात होगी ? यह सभी प.पू. गुरुदेवजी की कृपा ही है । उस के लिए मैं परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।’ — (पू.) श्रीमती उमा रविचंद्रन्
क्षणिकाएं
१. आज का यह सत्संग समारोह पू. (श्रीमती) उमाक्का के ही घर में आयोजित किया गया था । उसकी सिद्धता भी पू. उमाक्का ने भावपूर्ण की थी ।
२. समारोह के प्रारंभ में सभी साधकों को पृथक-सा वातावरण प्रतीत हो रहा था । अन्य समय चेन्नई में अत्यंत उष्ण वातावरण रहता है । किंतु आज प्रातः से ठंडा वातावरण प्रतीत हो रहा था । पूरे दिन ठंडी हवा की झोंके वातावरण आल्हाददायी कर रही थी ।
३. कार्यक्रम के प्रारंभ में अनिष्ट शक्ति के कारण तांत्रिक अडचनें आई; किंतु साधकों ने प्रार्थना एवं नामजप करने के पश्चात् सर्व तांत्रिक अडचनें दूर हुई तथा समारोह अच्छी तरह से संपन्न हुआ ।
४. समारोह के समय ही सभी साधकों को यह प्रतीत हो रहा था कि, यह समारोह पू. (श्रीमती) उमाक्का के घर में नहीं; तो यह रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में संपन्न हो रहा है ।
५. अन्य समय चेन्नई में सत्संग समारोह के लिए अधिक से अधिक २१ साधक उपस्थित रहते हैं; किंतु आज के सत्संग समारोह के लिए ३१ साधक उपस्थित थे । कुछ साधकों को यह प्रतीत हो रहा था कि, ‘आज कुछ पृथक- सा घटनेवाला है ।’ तो कुछ साधक प्रातः से पृथक-सा आनंद अनुभव कर रहे थे ।’