तिथि
भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी
इतिहास और उद्देश्य
असुरों से पीडित सर्व स्त्रियां श्री महालक्ष्मी गौरी की शरण में गईं और उन्होंने अपना सुहाग अक्षय करने के लिए उनसे प्रार्थना की । श्री महालक्ष्मी गौरीने भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन असुरों का संहार कर शरण में आईं स्त्रियों के पतियों को तथा पृथ्वी के प्राणियों को सुखी किया । इसीलिए अखंड सुहाग की प्राप्ति हेतु स्त्रियां ज्येष्ठा गौरी का व्रत करती हैं ।
व्रत करने की विधि
१. यह व्रत तीन दिनों का होता है । प्रांतभेदानुसार यह व्रत करने की विविध पद्धतियां हैं । इस में धातुकी, मिट्टी की प्रतिमा बनाकर अथवा कागज पर श्री लक्ष्मी का चित्र बनाकर उस चित्रका, तथा कई स्थानों पर नदी के तट से पांच कंकड लाकर उनका गौरी के रूप में पूजन किया जाता है । महाराष्ट्र में अधिकतर स्थानों पर पांच छोटे मिट्टी के घडे एक के ऊपर एक रखकर उस पर मिट्टी से बना गौरी का मुखौटा रखते हैं । कुछ स्थानों पर सुगंधित फूल देनेवाली वनस्पतियों के पौधे अथवा गुलमेहंधी के पौधे एकत्र बांधकर उनकी प्रतिमा बनाते हैं और उस पर मिट्टी से बना मुखौटा चढाते हैं । उस मूर्ति को साडी पहनाकर अलंकारों से सजाते भी हैं ।
२. गौरी की स्थापना के दूसरे दिन उनका पूजन कर नैवेद्य निवेदित किया जाता है ।
३. तीसरे दिन गौरी का नदी में विसर्जन करते हैं । लौटते समय उस नदी की रेत अथवा मिट्टी घर लाकर पूरे घर में छिडकते हैं ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’
संकटकाल में ज्येष्ठा गौरी व्रत किस प्रकार करें ?
कुछ घरों में भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन ज्येष्ठा गौरी का पूजन किया जाता है । इसे कुछ घरों में खडियों के स्वरूप में, तो कुछ घरों में मुखौटे बनाकर उनकी पूजा की जाती है । जिन्हें प्रतिवर्ष की भांति खडिया मिट्टी अथवा मुखौटों के स्वरूप में उनकी पूजा करना संभव नहीं है, वे अपने घर में स्थित देवी की किसी मूर्ति अथवा चित्र की पूजा कर सकते हैं ।