तिथि
भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी
ऋषि
अर्थात सप्तर्षि – कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं वसिष्ठ ।
उद्देश्य
१. ‘जिन ऋषियोंने अपने तपोबल से विश्व के मानव पर अनंत उपकार किए हैं, जीवन को उचित दिशा दी है । उन ऋषियों का इस दिन स्मरण किया जाता है ।
२. मासिक धर्म, अशौच व स्पर्शास्पर्श का स्त्रियों पर होनेवाला परिणाम इस व्रत से तथा गोकुलाष्टमी के व्रत से भी न्यून होता है । (पुरुषों पर होनेवाला परिणाम क्षौरादि प्रायश्चित कर्म से तथा वास्तु पर होनेवाला परिणाम उदकशांति से न्यून होता है ।)
व्रत करने की विधि
१. इस दिन स्त्रियां सवेरे आघाडे की लकडी से दांत घिसें ।
२. स्नान के उपरांत पूजा के आरंभ में ‘माहवारी के समय जाने-अनजाने में हुए स्पर्श के कारण जो दोष लगता है, उसके निराकरण हेतु अरुंधति सहित सप्तर्षियों को प्रसन्न करने हेतु मैं यह व्रत कर रही हूं’, ऐसा संकल्प करें ।
३. पीढे पर चावल की आठ डेरियां बनाकर उस पर आठ सुपारियां रखकर कश्यप आदि सात ऋषि एवं एक अरुंधति का आवाहन कर उनकी षोडशोपचार पूजा करें ।
४. इस दिन कंदमूल का आहार करें एवं बैलों के श्रम का कुछ भी न खाएं ।
५. दूसरे दिन कश्यपादि सात ऋषि एवं अरुंधति का विसर्जन करें ।
बारह वर्ष उपरांत अथवा पचास वर्ष की आयु हो जाने पर इस व्रत का उद्यापन करने में आपत्ति नहीं । उद्यापन के उपरांत भी यह व्रत जारी रख सकते हैं ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’