श्री यमराज धर्मके श्रेष्ठ ज्ञाता एवं मृत्युके देवता हैं । असामयिक मृत्युके निवारण हेतु यमतर्पणकी विधि बताई गई है । नरक चतुर्दशी के दिन यह विधि अभ्यंगस्नान के उपरांत की जाती है ।
१. अभ्यंगस्नानके उपरांत की
जानेवाली महत्त्वपूर्ण धार्मिक विधि, यमतर्पण
श्री यमराज धर्मके श्रेष्ठ ज्ञाता एवं मृत्युके देवता हैं । प्रत्येक व्यक्तिकी मृत्यु अटल है । प्रत्येक व्यक्ति इस सत्यका स्वीकार करता है; परंतु असामयिक अर्थात अकाल मृत्यु किसीको भी स्वीकृत नहीं होती । असामयिक मृत्युके निवारण हेतु यमतर्पणकी विधि बताई गई है । इस विधिमें इन चौदह नामोंका उच्चारण कर तर्पण किया जाता है, १.यम, २. धर्मराज ३. मृत्यु ४. अंतक ५. वैवस्वत ६. काल ७. सर्वभूतक्षयकर ८. औदुंबर ९. दध्न १०. नील ११. परमेष्ठिन १२. वृकोदर १३. चित्र १४. चित्रगुप्त ।
इसमें यमराजके साथ उनके कार्यमें सहायक अन्य देवताओंके नामोंका भी उच्चारण कर तर्पण करते हैं । प्रत्येक देवताके नामके उच्चारणके साथ उस संबंधित देवताका तत्त्व ब्रह्मांडमें साकार होता है और उसके द्वारा तर्पण करनेवाले व्यक्तिकी ओर आशीर्वादात्मक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं ।
२. दीपावलीमें यमतर्पण विधि बतानेका कारण
दीपावलीके कालमें यमलोकसे सूक्ष्म यमतरंगें भूलोक की ओर अधिक मात्रामें आकृष्ट होती हैं । इसलिए इस कालमें यह विधि विशेष रूपसे करनेका विधान है । नरक चतुर्दशी के दिन यह विधि अभ्यंगस्नान के उपरांत की जाती है । अभ्यंगस्नान अर्थात तेल-उबटन इत्यादि से मर्दन अर्थात मालीश करनेके उपरांत किया गया स्नान । तर्पणका जल स्नानगृहके पानीके साथ न बहे, इस हेतु तर्पण विधि करनेके लिए ताम्रपात्रका उपयोग करते हैं ।
यमतर्पण करते समय प्रथम अभ्यंगस्नानपूर्तिका संकल्प पूर्ण होनेके लिए ताम्रपात्रमें जल छोडनेसे व्यक्तिके प्राणमयकोष एवं मनोमय कोषकी शुद्धि होती है । स्नानके मध्यमेंही गीले वस्त्रोंसहित यमतर्पण करते हैं । उसके उपरांत स्नानविधि पूर्ण करते हैं; परंतु स्नानगृहमें यम-तर्पण करना संभव न हो, तो बाहर आकर यम-तर्पण कर सकते हैं; परंतु इसके पश्चात पुन: स्नान करना चाहिए ।
स्नानके उपरांत स्नानकर्ता यमादि देवताओंका नाम लेकर ताम्रपात्रमें जल छोड़ता है । तदुपरांत जिसके पिता जीवित हैं, वह स्नानकर्ता यमादि देवताओंका नाम लेकर श्वेत अक्षत एवं जल छोड़ता है ।
जिनके पिता नहीं हैं, वे जलमें थोड़े काले तिल डालें । अपसव्य करें अर्थात् जनेऊ को दाहिने कंधेपर रखें । काले तिल मिश्रित जल आचमनीमें लें । यह जल आचमनीमें लेकर पितृतीर्थसे अर्थात् अंगूठेकी ओरसे ताम्रपात्रमें छोडें । पितृतीर्थसे अर्थात् अंगूठेकी ओरसे ताम्रपात्रमें छोडें । ताम्रपात्रमें जल छोडते समय यमादि देवताओंके नाम लेकर मंत्रोंच्चार करते हैं ।
जिनके पिता जीवित हैं तथा जिनके पिता जीवित नहीं हैं उनके द्वारा की जानेवाली यमतर्पणकी कृतिमें भिन्नता होती है ।
इसके पश्चात् दक्षिण दिशाकी ओर मुख कर खड़े होते हैं । दोनों हाथ ऊपर कर, एक श्लोक दस बार बोलते हैं । जिनके पिता नहीं हैं, उनके लिए भी इस श्लोकका उच्चारण करना अनिवार्य है ।
`यमो निहन्ता पितृधर्मराजो वैवस्वतो दण्डधरश्च काल: ।
भूताधिपो दत्तकृतानुसारी कृतान्त एतद्दशभिर्जपन्ति।। – पूजासमुच्चय’
इसका अर्थ है, यम, निहन्ता, पिता, धर्मराज, वैवस्वत अर्थात सूर्यपुत्र, दण्डधर, काल, भूताधिप अर्थात प्राणिमात्रके स्वामी, दत्तकृतानुसारी अर्थात वे जो उन्हें मृत्युहरणका दिया हुआ कार्य करते हैं, तथा कृतान्त इन दस नामोंसे यमदेवका जप करते हैं ।
यमतर्पणसे वर्षभरके पाप नष्ट हो जाते हैं । दीपावलीके दिन अभ्यंगस्नान करनेसे देहकी शुद्धि होती है; परंतु वायुमंडलमें कार्यरत अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षण यमतर्पणके माध्यमसे होता है । इससे व्यक्तिके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति होती है ।
३. अभ्यंगस्नानके पश्चात यमतर्पण करनेके परिणाम
१. असामयिक मृत्यु न आए इसलिए व्यक्ति अभ्यंगस्नानके उपरांत दूतोंसह यम और चित्रगुप्तसे भावपूर्ण प्रार्थना करता है । उस समय व्यक्तिमें भावका वलय निर्माण होता है ।
२. अभ्यंगस्नानके उपरांत व्यक्तिमें ईश्वरीय तत्त्वका प्रवाह आकृष्ट होता है और ईश्वरीय तत्त्वके वलय निर्मित होते हैं ।
३. व्यक्तिमें चैतन्यके प्रवाह आकर्षित होते हैं एवं चैतन्यके वलय घनीभूत होते हैं ।
४. अन्य परिणाम
४ अ. यमादि देवताओंसे शक्तिका प्रवाह व्यक्तिकी ओर आकृष्ट होता है और उन देवताओंकी शक्तिके वलय निर्मित होते हैं ।
४ आ. यमादि देवताओंको यमतर्पण अर्थात अक्षत और जल अर्पण करते समय ताम्रपात्रसे व्यक्तिकी ओर शक्तिके प्रवाहका वहन होता है ।
४ इ. व्यक्तिके देहमें शक्तिके कण कार्यरत स्वरूपमें घूमते रहते हैं ।
४ ई. अनिष्ट शक्तियोंसे व्यक्तिका रक्षण होकर उसके देहके चारों ओर सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।
इस विधिके माध्यमसे व्यक्तिद्वारा पितृधर्मका पालन होता है । इस विधिसे अधिक मात्रामें शक्तिके स्पंदनोंकी निर्मिति होती है ।
यमतर्पणके अंतमें किए जानेवाले
श्लोकपठणके कारण होनेवाली सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया
दक्षिण दिशाकी ओर मुखकर दोनो हाथ ऊपर उठाकर श्लोक उच्चारण करनेसे दक्षिण दिशाकी ओर से आनेवाली यमतरंग मंत्रशक्तिके कारण व्यक्तिको प्राप्त होती हैं ।
ये तरंगें हाथोंके माध्यमसे संपूर्ण देहमें प्रवाहित होती हैं । हाथोंको ऊपर उठानेकी यह कृति अन्टीनासमान कार्य करती है । यम तरंगें देहमें प्रवाहित होनेसे देहके चारों ओर सुरक्षाकवच निर्मित होता है ।
यमतर्पणसे व्यक्तिको प्राप्त लाभकी मात्रा, एक सारणीद्वारा
घटक |
लाभकी मात्रा |
|
---|---|---|
१. |
ईश्वरीय तत्त्व |
१.२५ |
२. |
चैतन्यका |
२ |
३. |
शक्ति |
३.२५ |
इससे यमतर्पण विधिका महत्त्व ध्यानमें आता है । कुछ स्थानोंपर यमतर्पण के उपरांत नरकासुर-वधके प्रतीकस्वरूप कारीट नामका एक कडवा फल पैरसे कुचलते हैं, तो कुछ लोग इसका रस जीभपर लगाते हैं ।
यमतर्पणकी विधि पूर्ण होनेके पश्चात स्नान कर नए वस्त्र परिधान करनेपर पुन: औक्षण करते हैं अर्थात आरती उतारते हैं । औक्षण करते समय घरकी वयोवृद्ध स्त्रीद्वारा प्रथम क़ुमकुम एवं अक्षत लगाई जाती है । उपरांत अर्धवर्तुलाकार पद्धतीसे तीन बार घुमाकर सुपारी एवं अंगुठी उतारी जाती है । अंतमें अर्धवर्तुलाकार पद्धतीसे तीन बार घुमाकर आरती उतारी जाती है ।
५. श्लोकपठनके कारण होनेवाली सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया
अ. दक्षिण दिशाकी ओर मुख कर दोनो हाथ ऊपर उठाकर श्लोक उच्चारण करनेसे दक्षिण दिशाकी ओरसे आनेवाली यमतरगें मंत्रशक्तिके कारण व्यक्तिको प्राप्त होती हैं ।
आ. ये तरंगें हाथोंके माध्यमसे संपूर्ण देहमें प्रवाहित होती हैं । हाथोंको ऊपर उठानेका यह कृत्य ऐन्टीनासमान कार्य करता है ।
इ. यमतरंगें देहमें प्रवाहित होनेसे देहके सर्व ओर सुरक्षाकवच बनता है ।
ई. यमतर्पणसे वर्षभरके पाप नष्ट हो जाते हैं ।
उ. दीपावलीके दिन अभ्यंगस्नान करनेसे देहकी शुद्धि होती है, परंतु वायुमंडलमें कार्यरत अनिष्ट शक्तिसे यमतर्पणकेद्वारा रक्षण होता हैं ।
६. यमतर्पणसे व्यक्तिको प्राप्त लाभकी मात्रा
यम तर्पण करनेसे व्यक्तिको ईश्वरीय तत्वका १.२५ प्रतिशत शक्तिका ३.२५ प्रतिशत तथा चैतन्यका २ प्रतिशतकी मात्रामें लाभ मिलता है ।