वृक्षों में दैवीतत्त्व और औषधीय गुण होते हैं । इसलिए जब हम इन्हें लगाते हैं, तब वातावरण में दैवी और औषधीय तत्त्व बढता है । इससे सबको लाभ होता है । निर्जीव अथवा सजीव द्रव्य अपने त्रिगुणों के माध्यम से सकारात्मक अथवा नकारात्मक ऊर्जा निरंतर प्रक्षेपित करते रहते हैं । इसी प्रकार, वनस्पतियों में स्थित औषधीय और दैवी तत्त्वों के प्रक्षेपण से वातावरण शुद्ध रहता है । इस शुद्ध वातावरण से जीवों को अनेक प्रकार के लाभ होते हैं । यह लाभ आगे बता रहे हैं ।
१. वनस्पतियों से मानव को होनेवाले लाभ
वनस्पतियों से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं, वातावरण में तमोगुण घटता है तथा सत्त्वगुण बढने में सहायता होती है । विदेशी वृक्ष वायुमंडल में तमोगुण छोडते हैं, परंतु भारतीय वृक्ष सत्त्वगुण छोडते हैं ।
२. व्यक्ति में सत्त्व, रज और तम गुणों के लक्षण (चिन्ह)
२ अ. सत्त्वगुण
सत्त्वगुणी वातावरण से जीव के तमोगुण का परिवर्तन रजोगुण में तथा रजोगुण का परिवर्तन सत्त्वगुण में होता है ।
२ आ. रजोगुण
रजोगुणी जीव में चंचलता, घबराहट, अस्थिरता और द्विधा मनःस्थिति दिखाई देती है ।
२ इ. तमोगुण
मन पर तमोगुण का प्रभाव अधिक होता है । ऐसे व्यक्ति के मन में हिंसा, निराशा, निरुत्साह, नकारात्मकता आदि से संबंधित विचार उत्पन्न होते हैं ।
३. अपने घर के आसपास सात्त्विक वृक्ष का एक पौधा तो अवश्य लगाएं !
प्रकृति और कभी-कभी दैवी वृक्षों के कारण दैवी वातावरण बनने में सहायता होती है । वृक्ष-लताआें की औषधीय गुणों से युक्त दैवीशक्ति आसपास के वातावरण में प्रक्षेपित होती है । इसलिए यह शक्ति श्वासमार्ग से हमारे शरीर में जाती है । इससे व्यक्ति को अनिष्ट शक्तियों से होनेवाला कष्ट घटता है । अतः, अपने घर के आसपास सात्त्विक वृक्ष का एक पौधा तो अवश्य लगाएं !
४. सात्त्विक वृक्षों के नाम और उनसे प्रक्षेपित होनेवाले दैवी तत्त्व
वृक्ष | तत्त्व |
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तुलसी | श्रीकृष्ण |
पारिजात (हरसिंगार) | श्रीकृष्ण |
मौलसिरी | श्री लक्ष्मी |
नीम | प्रजापति |
अश्वत्थ (पीपल) | भगवान श्रीविष्णु |
बिल्व (बेल) | भगवान शिव |
उदूंबर (गूलर) | भगवान दत्तात्रेय |
दूर्वा | श्री गणेश |
५. सुगंधित और सात्त्विक फूल
सात्त्विक फूल, उनके रंग और आकार से सात्त्विक भाव उत्पन्न होते हैं । कुछ अपवाद के रूप में सदाफुली जैसे पुष्पवृक्षों से कडवी गंध आती है; परंतु वे सात्त्विक होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से युक्त भी होते हैं । चंपा, कनकचंपा, मोगरा, जूही, चमेली, गुडहल, गेंदा, मंजुला आदि पुष्पवृक्ष सात्त्विक होते हैं । – श्रीमती रंजना गौतम गडेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
६. सात्त्विक वनस्पति : तुलसी
६ अ. सात्त्विकता के कारण इसका धार्मिक कार्य में भी उपयोग
तुलसी को स्पर्श कर बहनेवाली वायु जहां जाती है, वहां पवित्र भावना उत्पन्न होती है और सात्त्विकता बढती है । मन साधना की ओर मुडता है । इसीलिए तुलसी का आध्यात्मिक जगत में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
६ अ १. तुलसी रक्त शुद्ध कर, रोग प्रतिकारक शक्ति बढाती है
शरीर के लिए सब प्रकार से लाभदायक होती है ! : प्रातः शीघ्र उठकर, स्नानादि कर्मों से निवृत्त होकर, स्वच्छ आसन पर तुलसी के पास बैठकर, प्राणायाम करें । पश्चात, जितना हो सके उतना समय तुलसी की सुगंध नाक से खींचें । यह वायु शरीर में जितना भीतर तक जा सके, जाने दें । आपके रक्त में तुलसी की सुगंध समाने दें । यह दिव्य सुगंध रक्त शुद्ध करेगी । इस शुद्ध रक्त से शरीर को तेज और नवजीवन मिलेगा ।
६ आ. आधुनिक काल में पहाडों पर महंगे सेनेटोरियम बनाए जाते हैं
एवं क्षयरोगियों को वहां निवास करने के लिए परामर्श दिया जाता है । खुले स्थान पर तुलसी का सेनेटोरियम बनाया गया, तो रोगी की आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, वह उसका लाभ ले सकेगा । छोटे भूखंड में तुलसी के बहुत-से पौधे लगाएं । उसमें बीच-बीच में बांस की झोपडियां बनाएं । इन झोपडियों की भूमि और दीवारें तुलसी के पौधों के नीचे की मिट्टी से लीपें । ऐसे स्थान पर रहकर रोगी, तुलसी से निर्मित आरोग्यदायक वातावरण में सांस ले सकेगा । इससे उसका रक्तपरिसंचरण अच्छा होगा और शरीर की सब पेशियां निरोगी होंगी । ऐसे तुलसी सेनेटोरियम में रहकर और तुलसी-मिश्रित औषधियों का सेवन कर, रोगी अल्प धन व्यय कर ही, स्वस्थ हो सकेगा ।
६ इ. अनेक रोगों पर उपयोगी तुलसी को अमृत कहा गया है !
जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी के पांच पत्ते खाएगा, वह अनेक रोगों से बचा रहेगा; उदा. हिचकी, खांसी, कफ, ज्वर, विशूचिका (हैजा), दमा, श्वसन के अन्य विकार, वात, संधिवात, जोडों की पीडा, दंतशूल तथा मुख, गला, नाक, आंख के रोग, सूज, खाज, कोढ, त्वचारोग, अर्श (गुदा पर होनेवाला नलिकाकार फोडा), अजीर्ण, पेट-छाती में जलन, बालतोड (बाल की जड में होनेवाला फोडा अथवा फुन्सी), ऊष्माघात, पेट, पाचनसंस्था, अंतडी और गुदा के रोग, स्नायुपीडा, क्षयरोग, पथरी, स्वप्नदोष, मूर्च्छा, विषबाधा इत्यादि । तुलसी के सेवन से पेट कृमिमुक्त होता है और शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति बढती है । कर्क (कैन्सर) रोग में भी तुलसी लाभप्रद हो सकती है । इस प्रकार, हम स्त्रियों और बालकों के सर्वसाधारण रोगों की तुलसीचिकित्सा करने में प्रवीण हो गए, तो इन सब रोगों की स्वयं ही परीक्षा कर सकेंगे । इसलिए तुलसी को अमृत कहा गया है । (संदर्भ : तुलसी, लेखक : यश राय)
७. बहु उपयोगी नीम
नीम, आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत गुणकारी वृक्ष है । उसके पत्ते अथवा रस पानी में मिलाकर स्नान करने से त्वचारोग ठीक होता है । इससे दांत स्वच्छ करने पर, वे सडते नहीं । इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है । इसी प्रकार, नीम के कारण अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होने में सहायता मिलती है ।
८. औषधीय वनस्पतियां लगाने से देश के सभी लोगों को सात्त्विक वातावरण मिलेगा और निसर्गदेवता की कृपा होगी !
प्राकृतिक वनस्पतियों से शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक लाभ होने के लिए वर्षा ऋतु में सात्त्विक वृक्ष-पौधे लगाएं । अपने घर के पास की भूमि पर तुलसी की क्यारियां बनाएं । इसी प्रकार, दूसरों को इसका महत्त्व बताकर, उन्हें भी ऐसे दैवी और औषधीय वृक्ष लगाने के लिए प्रेरित करें । इसके लिए अपने आसपास के लोगों से मिलकर; विद्यालयों, चिकित्सालयों, कार्यालयों में अधिकारियों से मिलकर प्रयत्न कर सकते हैं । इससे, आपका गांव, जनपद, राज्य और आपके देश के सभी को आरोग्यदायक वातावरण मिलेगा । इससे उन्हें भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से लाभ होगा तथा निसर्गदेवता की कृपा भी होगी । (आयुर्वेदिक और सात्त्विक वनस्पतियों के रोपण के विषय में जानकारी और मार्गदर्शन सनातन के आगामी ग्रंथ सात्त्विक वनस्पतियों का रोपण करें में उपलब्ध है ।)
– श्रीमती रंजना गौतम गडेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.