१. स्थूलदेह, मनोदेह और सूक्ष्मदेह के संदर्भ में कुछ लक्षण
‘कुदृष्टि लगना, इस प्रकार में जिस जीव को कुदृष्टि लगी हो, उसके सर्व ओर रज-तमात्मक इच्छाधारी स्पंदनों का वातावरण बनाया जाता है । यह वातावरण रज-तमात्मक नाद तरंगों से दूषित होने के कारण उसके स्पर्श से उस जीव की स्थूल देह, मनोदेह और सूक्ष्म देह पर अनिष्ट परिणाम हो सकता है ।
अ. स्थूलदेह
जिस समय स्थूलदेह रज-तमात्मक इच्छाधारी तरंगों से दूषित होता है, उस समय वह जीव अनेक शारीरिक व्याधियों से त्रस्त होता है । शारीरिक व्याधियों के अंतर्गत सिर, कान एवं आंखों में वेदना होना, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना, हाथ-पैर में झुनझुनी होना, हृदय की गति तेज होना, हाथ-पांव ठंडे होकर सुन्न हो जाना इत्यादि कष्ट होते हैं । ऐसे लक्षण दिखाई देने पर तुरंत कुदृष्टि उतारनी चाहिए । इससे कष्ट घट जाते हैं ।
आ. मनोदेह
जब रज-तमात्मक इच्छाधारी तरंगों की शक्ति प्रबल होकर गति से कार्य करने लगती है, तब इन तरंगों का संक्रमण जीव की मनोदेह पर अपना प्रभाव दर्शाता है । मनोदेह की रज-तमात्मक धारणा के कारण मन में अनावश्यक विचार और शंका-संदेह उभरना, उससे घर में कलह होना तथा इन विचारों के प्रभाव में रहकर कार्य करने से उन में मारपीट करने तक का साहस होना, विचार आने पर अचानक घर छोड कर निकल जाना तथा वेग से गाडी चलाने पर अपघात होना जैसी घटनाओं का समावेश होता है ।
इ. सूक्ष्मदेह
कालांतर में सूक्ष्मदेह पर इन तरंगों के प्रभाव से व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है ।’
२. कुछ समस्या स्वरूप लक्षण
शारीरिक समस्याएं
व्यसनाधीनता, निरंतर अस्वस्थ रहना, औषधियों का सेवन करने के पश्चात भी साधारण रोगों का ठीक न होना (उदा. ज्वर, सर्दी, खांसी, उदरपीडा, कोई शारीरिक कारण न होने पर भी अनेक दिनों तक थकान का अनुभव होना अथवा शरीर दुबला होना, पुनः-पुनः त्वचा-विकार होना इत्यादि ।)
मानसिक समस्याएं
निरंतर तनाव और निराशा, अति भयभीत रहना, अकारण नकारात्मक विचार आकर मन विचलित होना इत्यादि ।
शैक्षिक समस्याएं
अच्छी पढाई करने पर भी परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना, कुशाग्र बुद्धि होते हुए भी पढा हुआ पाठ ध्यान में न आना इत्यादि ।
आर्थिक समस्याएं
काम (नौकरी) न लगना, व्यवसाय न चलना, निरंतर आर्थिक हानि होना अथवा फंसाया जाना इत्यादि ।
वैवाहिक एवं पारिवारिक समस्याएं
विवाह न होना, पति-पत्नी की आपस में अनबन होना, गर्भधारण न होना, गर्भपात हो जाना, शिशु का जन्म समय से पूर्व होना, मंद बुद्धि अथवा विकलांग संतान होना, बाल्यावस्था में ही संतान की मृत्यु हो जाना इत्यादि ।
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘कुदृष्टि (नजर) उतारने की पद्धतियां (भाग १) (कुदृष्टिसंबंधी अध्यात्मशास्त्रीय विवेचनसहित)’