राई-नमक से कुदृष्टि उतारने की पद्धति

‘कुदृष्टि उतारने हेतु प्रयुक्त घटक में रज-तमात्मक तरंगें आकर्षित कर, उन्हें घनीभूत कर, उनका उच्चाटन करने की क्षमता होनी आवश्यक है, तब ही यह उपाय प्रभावकारी होता है । मुख्यरूप से राई-नमक, नमक-सूखी लाल मिर्च, राई-नमक-सूखी लाल मिर्च, नींबू तथा कच्चा नारियल आदि घटकों से कुदृष्टि उतारते हैं । प्रायः कार्य की गति बढाने के लिए दो घटकों का संयोजन किया जाता है । राई, नमक, सूखी लाल मिर्च और नारियल आदि घटक अपने गुणधर्म के कारण रज-तमात्मक तरंगें स्वयं में घनीभूत कर उन्हें संग्रहित करने का सामर्थ्य दर्शाते हैं । इसलिए इन घटकों का उपयोग विशेषरूप से किया जाता है ।

 

१. नमक और राई एकत्रित

नमक और राई की सहायता से कुदृष्टि उतारने पर स्थूलदेह पर आया रज-तमात्मक आवरण नमक की सहायता से खींचकर राई में गतिमान तरंगों की सहायता से घनीभूत कर, तत्पश्चात अग्नि में जलाकर नष्ट कर दिया जाता है । स्थूलदेह पर आया आवरण नष्ट हो जाने से कुदृष्टि उतारने के पश्चात शरीर में हलकापन अनुभव होता है तथा शरीर के सुन्न होने की मात्रा भी घट जाती है ।

 

२. राई-नमक से कुदृष्टि उतारना

विशेषताएं

‘नमक और राई काली शक्ति के आवरण को खींच लेते हैं । तदुपरांत अग्नि के स्पर्श से उस आवरण को तुरंत त्याग देते हैं ।’

पद्धति

१. नमक एवं राई मिला लें । नमक की मात्रा अधिक व राई की मात्रा अल्प हो ।

२. पांचों उंगलियां जोडकर, उसमें जितना समाए उतना राई-नमक दोनों हाथों में लेकर, मुट्ठी बना लें ।

३. दोनों मुट्ठियां नीचे की ओर अर्थात भूमि की ओर कर एवं हाथों की स्थिति ‘गुणाकार’ के चिह्न समान कर खडे हो जाएंं ।

४. इसके पश्चात अपने हाथ नीचे से ऊपर की दिशा में गोलाकार पद्धति से भीतर से बाहर की ओर घुमाएं ।

५. कुदृष्टि उतारने के पश्चात नमक एवं राई अंगारे पर जलाएं ।

 

३. नमक के उपयोग का महत्त्व

शुष्क नमक का गुणधर्म है, वायु की सहायता से रज-तम गुणों को घनीभूत करना । पानी में घुला नमक संपर्कजन्यता के स्तर पर (स्पर्श के माध्यम से ) अधिक उपयुक्त होता है । नमक के सर्व ओर विद्यमान आर्द्रता दर्शक वायुकोष, देह पर आए काली शक्ति के रज-तमात्मक आवरण को खींचने में अग्रणी और सक्षम होता है । नमक हाथ में लेकर ओइंछने की क्रिया से कार्यरत रजोगुणी तरंगों के स्पर्श से आर्द्रताजन्य वायुकोष सक्रिय हो जाता है और जीव की देह पर आया रज-तमात्मक आवरण खींचकर अपने कोष में घनीभूत और बद्ध करके रखता है । इसके पश्चात इस नमक का आर्द्रताजन्य कोष अग्नि के संपर्क में आने पर नष्ट हो जाता है । इस प्रकार उसमें विद्यमान रज-तमात्मक तरंगों का विघटन होता है । कुदृष्टि उतारने की प्रक्रिया में नमक का आर्द्रताजन्य कोष मुख्यतः विघटन करने की प्रक्रिया पूरी होने तक रज-तमात्मक तरंगों का एकत्रित वहन करने में अत्यंत उपयुक्त होता है ।

साधारण नमक की तुलना में समुद्री नमक अधिक उपयुक्त क्यों है ?

१. साधारण नमक पर की गई रासायनिक प्रक्रिया के कारण उसकी अनिष्ट स्पंदन खींचने की मात्रा खडे नमक की तुलना में अल्प होती है ।

२. समुद्री नमक मोटा होता है । इसलिए उसमें साधारण नमक की तुलना में अनिष्ट स्पंदनों को संजोए रखने की क्षमता अधिक होती है ।’

 

४. अग्नि का महत्त्व

‘अग्नि’ विघटन के लिए पूरक होने के साथ ही उस विशिष्ट स्थान पर घनीभूत ऊर्जा भंडार को उद्दीप्त भी करती है । इस कारण नमक और राई में आकर्षित अनिष्ट तरंगें अग्नि के स्पर्श से प्रवाही बनकर उसमें विद्यमान तेज से भस्म हो जाती हैं । विघटनात्मक प्रक्रिया के समय काली शक्ति की तीव्र दुर्गंध आती है ।

 

५. कुदृष्टि की तीव्रता कैसे पहचानें ? (कुदृष्टि की तीव्रतानुसार दुर्गंध की मात्रा)

कुदृष्टि नहीं लगी है, तो : यदि कुदृष्टि नहीं लगी है, तो नमक और राई के ही जलने की गंध आती है । यह गंध दुर्गंधरहित होती है ।

मंद कुदृष्टि : कभी-कभी कोई भी गंध नहीं आती, उस समय राई और नमकद्वारा खींची गई रज-तमात्मक तरंगों की मात्रा नगण्य होने के कारण वे अग्नि में तुरंत भस्म हो जाती हैं । इसलिए अत्यल्प दुर्गंध आती है । उस समय मंद मात्रा में कुदृष्टि लगी होती है ।

तीव्र कुदृष्टि : दुर्गंध की मात्रा अधिक हो, तो तीव्र मात्रा में कुदृष्टि लगी होती है ।’

उपर्युक्त सूत्र में बताए अनुसार कुदृष्टि न लगी हो, तो नमक और राई के जलने पर दुर्गंध नहीं आएगी । इसका अर्थ है, ‘व्यक्ति को आध्यात्मिक कष्ट नहीं है’; परंतु इसके उपरांत भी व्यक्ति को स्थूल से कष्ट के लक्षण प्रतीत हो रहे होें, तब समझना चाहिए कि ‘कुदृष्टि उतरी ही नहीं’ और एक-एक घंटे उपरांत कुदृष्टि उतारते रहें । तब भी यदि कुदृष्टि न उतरे, तो कुदृष्टि उतारने के लिए अगले चरण के घटक (उदा. नारियल) का उपयोग करें । इतना करने के उपरांत भी यदि कष्ट दूर न हो, तो उस विषय में अध्यात्म के ज्ञाता अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्ति से पूछें । उनके बताए अनुसार आध्यात्मिक उपाय करें ।

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘कुदृष्टि (नजर) उतारने की पद्धतियां (भाग १) (कुदृष्टिसंबंधी अध्यात्मशास्त्रीय विवेचनसहित)?’

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